Shri ram 🙏
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Пікірлер
@NehaRoshanMagarde.....
@NehaRoshanMagarde..... Жыл бұрын
kzbin.info/www/bejne/q5-cq3dtj8mbaas
@hajong011
@hajong011 Жыл бұрын
Jai Shree Krishna Chaitanya Prabhu Nityananda 🌺🌺🌺🙏🌺🌻🌺🙏
@hajong011
@hajong011 Жыл бұрын
Jai Shree Ram Jai bajrang bali ❤️🥰🙏
@kewalkrishan4720
@kewalkrishan4720 Жыл бұрын
🌹🌹Jyoti Maa Teri Ka Noor Jag Ka Kare Andhera Door🌹🌹
@policelovers2027
@policelovers2027 Жыл бұрын
Jai shree ram
@user-vh5tc9sx2s
@user-vh5tc9sx2s Жыл бұрын
🙏🙏🙏🙏🙏🙏
@user-vh5tc9sx2s
@user-vh5tc9sx2s Жыл бұрын
🙏🙏
@chandankumarkumarchaban8275
@chandankumarkumarchaban8275 Жыл бұрын
Jai shree ram ji
@shantikaam3795
@shantikaam3795 Жыл бұрын
🚩⚜️🌹🕉️🚩⚜️🌹🕉️🚩 *पर्व का मर्म* *🚩⚜️भारत सदियों से पर्व-त्योहारों की भूमि रहा है। इन पर्वों का मकसद जहां सामाजिक समरसता का संदेश रहा है, वहीं ऋतुओं के अतिरेक से उत्पन्न एकरसता को तोड़कर जीवन में उल्लास भरना भी रहा है। जब वर्षा ऋतु के दौरान सामाजिक निष्क्रियता और बरसात में होने वाली व्याधियों से जनमानस उबरता है तो गुलाबी ठंड की दस्तक के साथ पर्वों की शृंखला शुरू होती है। जन्माष्टमी, रक्षाबंधन के बाद रामलीलाओं का मंचन होता है।* *⚜️🚩सदियों से मंचित की जा रही रामलीलाओं के जरिये जीवन की मर्यादाओं का पाठ जनमानस को स्मरण कराने का प्रयास किया जाता है। मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाने वाले श्रीराम के संपूर्ण जीवन में मर्यादाओं का पालन अभीष्ट रहा है। वे कठोरता से जीवन की मर्यादाओं का पालन करते हैं और मर्यादा तोड़ने वालों को दंडित करते हैं। अब चाहे ऋषि-मुनियों की तपस्या भंग करने वाले असुर हों या फिर भाई का हक मारने वाले बाली को दंड देना। पिता के वचनों की मर्यादा को पूरा करने के लिये राजपाट छोड़कर वन गमन करते हैं। सबरी के बेर खाकर सामाजिक समरसता का संदेश देते हैं। वनवासियों व आदिवासियों के साथ समता का व्यवहार करके उन्हें अपना साथी बनाते हैं।* *🚩⚜️वनवास के दौरान रावण द्वारा छल करके सीता के हरण के बाद वे लंका पर चढ़ाई करके रावण को स्त्री अस्मिता से खिलवाड़ के लिये दंडित करते हैं।* *⚜️🚩दरअसल, पूरी रामलीला हमें व्यावहारिक जीवन में मर्यादाओं के पालन व सदाचारी जीवन जीने की प्रेरणा देती है। उसी कड़ी में असत्य पर सत्य की जीत के रूप में दशहरा पर्व हमारे समक्ष एक प्रेरणा व सीख के रूप में उपस्थित होता है। यही वजह है कि सदियों से दशहरे पर रावण दहन की परंपरा देश में जारी है, जिसके समाज के लिये गहरे निहितार्थ हैं कि असत्य सदा हारता है। अन्याय पर न्याय की जीत होती है।* *🚩⚜️पूरा देश इसे एक उत्सव की तरह मनाता है। जात-पात व धर्म के भेदों से इतर यह पर्व सामाजिक समरसता का भी संदेश देता है।* *🚩⚜️यह विडंबना है कि देश में कोरोना संकट की दस्तक ने हमें भारतीय पर्व-त्योहारों को परंपरागत उल्लास से मनाने के प्रति सचेत किया है। वह भीड़ जो कभी सामाजिक उल्लास व समरसता के पर्व की पर्याय थी, अब सुरक्षित दूरी की नसीहत है। तीसरी लहर की आशंकाओं के बीच यह सावधानी भी जरूरी है। इसके बावजूद सर्वकालिक पर्व दशहरे की महत्ता कम नहीं होती। सुरक्षित दूरी के साथ हमें इस त्योहार को मनाना ही नहीं है बल्कि इसके गहरे निहितार्थों को अंगीकार भी करना है। यह पर्व हमें आत्ममंथन का मौका देता है।* *🚩⚜️हम रावण के व्यक्तित्व को सिरे से खारिज नहीं कर सकते। वह एक प्रकांड विद्वान भी था। उसकी लंका में अकूत संपदा थी, जिसको उसने सोने से गढ़ा था। लेकिन जब एक स्त्री का अपहरण कर उसकी अस्मिता से खिलवाड़ किया तो उसका त्याग, तप व पुरुषार्थ राख बन गया।* *🚩⚜️हर साल रावण दहन का यही सामाजिक संदेश लोगों को देने का प्रयास किया जाता है। लेकिन विडंबना यही है कि भारतीय समाज में लोगों ने रावण दहन का उल्लास तो मनाया, मगर उसके गहरे निहितार्थ को अंगीकार नहीं किया, जिसके चलते आज गली-गली में रावण संस्कृति के लोग स्त्री अस्मिताओं से खिलवाड़ कर रहे हैं। आये दिन स्त्रियों से होने वाली यौन हिंसा उसकी गवाही दे रही है।* *🚩⚜️कन्या पूजन वाले देश में स्त्रियों के खिलाफ लगातार बढ़ते अपराध जहां एक कानूनी समस्या है, वहीं एक बड़ी सामाजिक समस्या भी है कि हम नैतिक पतन की किस डगर पर बढ़ चले हैं। दुनिया की कोई पुलिस व कानून तब तक इस तरह के अपराध पर अंकुश नहीं लगा सकते जब तक हम इन अपराधों की मानसिकता वाले समाज पर अंकुश न लगाएं।* *🚩⚜️कहते हैं कि भ्रमण पर निकले नारद मुनि ने एक बार रावण की लंका की संपदा व ऐश्वर्य देखकर भविष्यवाणी की थी कि रावण का पतन निश्चित है क्योंकि देश में मधुशाला व आयुधशाला का तो निर्माण हुआ है, लेकिन चरित्र निर्माणशाला नहीं बनी है।* 🚩⚜️🕉️🌹🚩⚜️🕉️🌹🚩
@user-vh5tc9sx2s
@user-vh5tc9sx2s Жыл бұрын
🙏🙏🙏🙏🙏🚩
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@Aditya-1567 Жыл бұрын
Jai shree ganpati bappa morya ji 🙏💐👏💕❤️🙏
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@dippaul6025 Жыл бұрын
Joy shree hanuman
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@chetangautam664 Жыл бұрын
जय श्री राम भगवन🙏👍👍🙏🙏
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@shivprimemusic Жыл бұрын
kr diya hai
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@rohitdhuriya333 Жыл бұрын
Jay Mata Di
@Aditya-1567
@Aditya-1567 Жыл бұрын
Jai shree ganpati bappa morya ji 🙏💐👏💕❤️🙏💐
@anishayadav6989
@anishayadav6989 Жыл бұрын
Jai Mata di 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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@shivprimemusic Жыл бұрын
jai hanuman .... sport plis
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@user-hm5js8nl3t Жыл бұрын
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@maheshvhosagoudar9516 Жыл бұрын
Jai Shri Ram Jai Jammanakatti Hanuman Ji ki Jai 🚩🚩🚩
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@shivprimemusic Жыл бұрын
jai mata di
@Souravgm10
@Souravgm10 Жыл бұрын
Jai shree Ram Jai Jai Hanuman 👏❤️❤️🙏
@divyamakode499
@divyamakode499 Жыл бұрын
Nice
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@user-hm5js8nl3t Жыл бұрын
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@ritupanhazarika6435 Жыл бұрын
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@odishatalent565 Жыл бұрын
Jay shree ram
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@shantikaam3795 Жыл бұрын
**🙏 समर्पण 🙏* एक बार नारद जी ने द्वारकाधीश से पूछा- "प्रभु! क्या कारण है की सर्वत्र संसार में राधे-राधे हो रहा है। आपकी महापटरानी 'रुकमणी' और अन्य रानियों को तो ब्रज तक में कोई याद नहीं करता।" कृष्ण यह सुनकर नारद के सामने ही पलंग पर धड़ाम से गिर गए। घबराए हुए नारद ने पूछा- क्या हुआ प्रभु ! तब श्री कृष्ण ने कहा- नारद मेरे सिर में बहुत तेज दर्द हो रहा है,तुम कुछ करो। नारद को आश्चर्य हुआ। वे बोले- कि आप त्रिलोकीनाथ हो, आप ही बताओ मैं क्या कर सकता हूं? कृष्ण बोले -"मेरे किसी सच्चे भक्त के पास जाकर,उसके चरणों की रज लेकर आओ, उसे मेरे मस्तक पर लेप करूंगा, तो दर्द ठीक हो जाएगा।" नारद जी असमंजस में वहां से दौड़े और सबसे पहले रुक्मणी के पास जाकर, उन्हें अपने चरणों की धूलि देने को कहा। रुक्मणी ने अपने पांव पीछे खींच लिए। वे बोली कि, "यह आप क्या कर रहे हो ? कृष्ण मेरे पति हैं, मेरे चरणों की रज यदि उनके माथे पर लगी, तो मुझे नर्क में जाना पड़ेगा!" यही जवाब अन्य रानियों ने भी दिया। नारद निराश हो गए और तुरंत मन की गति से राधा जी के पास पहुंच कर, उन्हें सारी बात बतलाई। राधा अत्यंत व्याकुल हो गई और नारद से पूछा -मेरे प्रभु को सर में दर्द हुए कितनी देर हो गई ? नारद ने बतलाया कि, यही कोई दो घंटे हुआ है। इस पर राधा नारद जी पर नाराज हो गई। उन्होंने कहा- "मेरे प्रियतम को दो घंटे से जो वेदना हो रही है, उसके लिए आप ही जिम्मेवार हो। आप मेरे चरणों की रज लेने तुरंत ही क्यों नहीं आए। अभी जितनी ले जाना हो, ले जाओ। उसके बदले में मुझे, एक बार तो क्या, हजार बार भी नरक जाना पड़े,तो स्वीकार है।" राधा की चरण रज लेकर नारद कृष्ण के पास पहुंचे । कृष्ण ने उस रज का अपने मस्तक पर लेप किया और सिर दर्द ठीक हो गया। कृष्णजी ने नारद से पूछा- "कुछ समझ में आया कि, सर्वत्र राधे-राधे क्यों हो रहा है?" नारद बोले कि, हां समझ में आ गया प्रभु! "🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉
@anuchoudhary6839
@anuchoudhary6839 Жыл бұрын
Jai mata di 👏👏👏👏👏
@bhaktikishakti255
@bhaktikishakti255 Жыл бұрын
🙏Jai mata di 🙏
@shantikaam3795
@shantikaam3795 Жыл бұрын
*जय श्री राम🚩🙏🚩 सीताराम जी* हनुमानजी को प्रभु श्रीराम संगम तट पर मिल जाते, तो रामायण-? प्रयाग के दक्षिणी तट पर झूंसी नामक स्थान है जिसका प्राचीन नाम पुरुरवा था। कालांतर में इसका नाम उलटा प्रदेश पड़ गया। फिर बिगड़ते बिगड़ते झूंसी हो गया। उल्टा प्रदेश पड़ने का कारण यह है कि यहां शाप के चलते सब कुछ उल्टा पुल्टा था। यहां के महल की छत नीचे बनी है जो आज भी है। इसकी खिड़कियां ऊपर तथा रोशन दान नीचे बने हैं। यानी कि सब कुछ उलटा। मान्यता अनुसार उलटा प्रदेश इसलिए पड़ा, क्योंकि यहां भगवान शिव अपनी पत्नीं पार्वती के साथ एकांत वास करते थे तथा यहां के लिए यह शाप था कि जो भी व्यक्ति इस जंगल में प्रवेश करेगा वह औरत बन जाएगा। मतलब उल्टा होगा। त्रेतायुग में श्रीराम को जब अपनी माता कैकेयी के शाप से वनवास हुआ तो उनके कुल पुरुष भगवान सूर्य बड़े ही दुखी हुए। उन्होंने हनुमान जी को आदेश दिया कि वनवास के दौरान राम को होने वाली कठिनाईयों में सहायता करोगे। चूंकि हनुमान ने भगवान सूर्य से ही शिक्षा दीक्षा ग्रहण की थी। अतः अपने गुरु का आदेश मान कर वह प्रयाग में संगम के तट पर आकर उनका इंतजार करने लगे। कारण यह था कि वह किसी स्त्री को लांघ नहीं सकते थे। गंगा, यमुना एवं सरस्वती तीनों नदियां ही थी। इसलिए उनको न लांघते हुए वह संगम के परम पावन तट पर भगवान राम की प्रतीक्षा करने लगे। जब भगवान राम अयोध्या से चले तो उनको इस झूंसी या उलटा प्रदेश से होकर ही गुजरना पड़ता, लेकिन प्रचलित मान्यता अनुसार शिव के शाप के कारण उन्हें स्त्री बनना पड़ता। इसलिए उन्होंने रास्ता ही बदल दिया। एक और भी कारण भगवान राम के रास्ता बदलने का पड़ा। यदि वह सीधे गंगा को पार करते तो यहां पर प्रतीक्षा करते हनुमान सीधे उनको लेकर दंडकारण्य उड़ जाते तथा बीच रास्ते में अहिल्या उद्धार, शबरी उद्धार तथा तड़का संहार आदि कार्य छूट जाते। यही सोच कर भगवान श्रीराम ने रास्ता बदलते हुए श्रीन्गवेर पुर से गंगाजी को पार किया। चूंकि भगवान श्रीराम के लिए शर्त थी कि वह वनवास के दौरान किसी गांव में प्रवेश नहीं करेगें तो उन्होंने इस शर्त को भी पूरा कर दिया। इस बात को प्रयाग में तपस्यारत महर्षि भारद्वाज भली भांति जानते थे। वह भगवान श्रीराम की अगवानी करने के पहले ही श्रीन्गवेरपुर पहुंच गए, भगवान राम ने पूछा कि हे महर्षि! मैं रात को कहां विश्राम करूं? महर्षि ने बताया कि एक वटवृक्ष है। हम चल कर उससे पूछते हैं कि वह अपनी छाया में ठहरने की अनुमति देगा या नहीं। कारण यह है कि तुम्हारी माता कैकेयी के भय से कोई भी अपने यहां तुमको ठहरने की अनुमति नहीं देगा। सबको यह भय है कि कही अगर वह तुमको ठहरा लिया, तथा कैकेयी को पता चल गाया तो वह राजा दशरथ से कहकर दंड दिलवा देगी। इस प्रकार भगवान राम को लेकर महर्षि भारद्वाज उस वटवृक्ष के पास पहुंचे। भगवान राम ने उनसे पूछा कि क्या वह अपनी छाया में रात बिताने की अनुमति देगें। इस पर उस वटवृक्ष ने पूछा कि मेरी छाया में दिन-रात पता नहीं कितने लोग आते एवं रात्री विश्राम करते हैं लेकिन कोई भी मुझसे यह अनुमति नहीं मांगता। क्या कारण है कि आप मुझसे अनुमति मांग रहे हैं? महर्षि ने पूरी बात बताई। वटवृक्ष ने कहा, 'हे ऋषिवर! यदि किसी के दुःख में सहायता करना पाप है। किसी के कष्ट में भाग लेकर उसके दुःख को कम करना अपराध है तो मैं यह पाप और अपराध करने के लिये तैयार हूं। आप निश्चिन्त होकर यहां विश्राम कर सकते हैं और जब तक इच्छा हो रह सकते हैं।' यह बात सुन कर भगवान राम बोले 'हे वटवृक्ष! ऐसी सोच तो किसी मनुष्य या देवता में भी बड़ी कठनाई से मिलती है। आप वृक्ष होकर यदि इतनी महान सोच रखते हैं तो आप आज से वटवृक्ष नहीं बल्कि 'अक्षय वट' हो जाओ। जो भी तुम्हारी छाया में क्षण मात्र भी समय बिताएगा उसे अक्षय पुण्य फल प्राप्त होगा और तब से यह वृक्ष पुराण एवं जग प्रसिद्ध अक्षय वट के नाम से प्रसिद्ध होकर आज भी संगम के परम पावन तट पर स्थित है। जय श्री राम🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
@gkundukundu437
@gkundukundu437 Жыл бұрын
*"*"JAI SRI RAM🙏🙏*"*"🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
@ratanabaiprajapat2999
@ratanabaiprajapat2999 Жыл бұрын
Jai shri ram🙏🙏🙏🙏
@cartoonvideos1996
@cartoonvideos1996 Жыл бұрын
Jai mata di
@indffod
@indffod Жыл бұрын
Jay Shree ram ❤️🙏🙏
@SantoshRathod-uc9eu
@SantoshRathod-uc9eu Жыл бұрын
Jai Shree Ram,,,🙏🙏🚩🚩🌹🌹🌷🌷🌼🌼🌺🌺
@jashwantmahapatra61
@jashwantmahapatra61 Жыл бұрын
Jai Siya Ram. Jai Hanuman 🌷🚩💐🌺🌹🙏❤
@odishatalent565
@odishatalent565 Жыл бұрын
Jay shree ram Jay hanuman
@sachinchoudhary6657
@sachinchoudhary6657 Жыл бұрын
प्रेम से जय माता राधाकृष्ण जी🌺🕉️🙏🏻
@attitudekiduniya8979
@attitudekiduniya8979 Жыл бұрын
Jay shree ram
@shantikaam3795
@shantikaam3795 Жыл бұрын
*हे परम् आदरणीय पूर्वजों........ सात सौ साल तक इस्लामिक और दो सौ साल के ईसाई आक्रांताओं से संघर्ष के बाद भी आज हम सनातनी अपने हर त्यौहार मना पाते हैं...अपने देवी देवताओं की पूजा कर पाते हैं, परम्पराएँ निभा पाते है और अपने देश मे गर्व से रह पाते हैं, ये सब इसीलिए सम्भव हो पाया क्योंकि आपने तलवार के डर अथवा पैसों के मोह में अपना धर्म नहीं बदला । शीश कटे पर झूके नहीं , बेटों ने घास की रोटियां खाई पर निज गौरव और अभिमान कम न होने दिया...मलेक्ष आक्रांताओं की दासिता स्वीकार न कर बेटियों ने अपनी सभ्यता और संस्कृति की रक्षार्थ आत्म सम्मान के लिए मुँह में तुलसी पत्ती और गंगाजल रखकर जय हर का घोष करते हुए अग्नि का वरण कर लिया..जो योद्धा बन लड़े तो ऐसे की जीते जी स्वयं का श्राद्ध और तर्पण किया, हर हर महादेव...जय भवानी का जयघोष करके अंतिम सांस तक लड़ते रहे विदेशी आक्रांताओं से, बर्बर कौमो से हिंदुत्व के लिए, सनातन धर्म की रक्षा के लिए..! हे सनातन धर्म, हिन्दुस्तान, संस्कृति और सभ्यता की रक्षा के लिए सर्वस्व समर्पित करने वाले सभी आदरणीय ज्ञात अज्ञात पूर्वजों..हम आपके गौरवान्वित वंशज आपको शत शत नमन, करते है..! अंतिम श्वास तक सदैव आपके ऋणी रहेंगे, ये #पितृपक्ष आपके अदम्य शौर्य और निःस्वार्थ भक्ति को समर्पित....! शास्त्रों में स्पष्ट शब्दों में पितरों के पूजन, श्राद्ध, तर्पण का विधान है...यथा सम्भव उनकी स्मृति में अपने सामर्थ्य के अनुसार तीर्थ क्षेत्रों में तर्पण, ब्रम्हभोज, दान पुण्य हर हिन्दू को करना चाहिए..!*🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
@anilkumar400racer3
@anilkumar400racer3 Жыл бұрын
Jai shree ram jai bajrangbali Balaji Maharaj ki Jai Ho 🙏🙏🙏
@cartoonvideos1996
@cartoonvideos1996 Жыл бұрын
Om shree ganeshay namah 🙏
@shantikaam3795
@shantikaam3795 Жыл бұрын
*🌳 रामायण की एक चौपाई का रहस्य 🌳* *बहुत कम लोगो को इसकी जानकारी है* श्रीरामकथा में श्रीराम के एवं भरतजी के चरित्र की मार्मिक कथाएँ पत्थर को भी पिघलाने वाली हैं। श्रीराम के वनगमन हो जाने तथा महाराज दशरथजी के परलोक गमन के पश्चात् भरत और शत्रुघ्न के ननिहाल से लौटने के उपरान्त ही भरतजी के चरित्र की विशेषताओं की झलक मानस में यत्र-तत्र-सर्वत्र अपनी अमित छाप छोड़ती चली जाती है। भरत श्रीराम को महल में न देखकर अत्यन्त ही दु:खी हो जाते हैं। माता कैकेयी भरत को प्रसन्न करने के लिये सारी कथा सुना देती हैं। तब भरत दु:खी होकर उससे कहते हैं- *बर माँगत मन भइ न पीरा।* *गरि न जीह मुँह परेउ न कीरा।।* अरि बेरिन महाराज दशरथजी से दो वर माँगते हुए तुझे पीड़ा नहीं हुई। प्रथम वर में राज्य माँगते हुए तेरी जिव्हा गल क्यों नहीं गई तथा दूसरे वर में श्रीराम को वनवास माँगते हुए तेरे मुँह में कीड़े क्यों नहीं पड़ गये। भरतजी ने मात्र इतना ही नहीं उससे भी अधिक माता कैकेयी को जो कुछ कहा वह श्रीरामचरित मानस में गूढ़ गम्भीर-चिन्तन-मनन करने का विषय है- *हंसबंसु दशरथु जनकु, राम लखन से भाइ।* *जननी तूँ जननी भई, बिधि सन कछु न बसाइ।।* भरत जी माता कैकेयी से कहते हैं मुझे सूर्यवंश, दशरथजी जैसे पिता और श्रीराम-लक्ष्मण जैसे भाई मिले, किन्तु हे जननी। मुझे जन्म देने वाली माता तू हुई। क्या किया जाय विधाता के आगे किसी का कुछ भी वश नहीं चलता है- इस दोहे को वाल्मीकि रामायण के अयोध्याकाण्ड में सर्ग 35 के सन्दर्भ में देखा जाए तो ऐसा भी संकेत एवं भावार्थ हो सकता है। भरत अपनी माता कैकेयी से कहते हैं कि हे माँ तू अपनी माता (नानी) के समान हो गई तथा जैसी तेरी माता माता न होकर कुमाता थी, तू ऐसी ही हो गई। इस कुमाता के प्रसंग को वाल्मीकि रामायण में श्रीराम के वनगमन के प्रसंग में मंत्री सुमंत्र एवं कैकेयी के बीच एक अन्तर्कथा के माध्यम से किया गया है- ऐसी कथा आती है कैकयी के पिता अश्वपति को एक महात्मा से वरदान मिला था वह पृथ्वी पर जितने भी जीव-जन्तु, कीड़े- मकोड़े, पशु-पक्षी सभी की आवाज सुन और समझ सकते थे,,लेकिन इस वरदान के साथ एक श्राप भी था कि.. वह इन सब की बाते किसी को भी बताएंगे तो उनकी उसी वक्त मृत्यु हो जाएगी.. एक बार कैकय नरेश कैकयी की माँ पृत्वी के साथ चौके में बैठकर भोजन कर रहे थे। एक चींटी चावल का एक दाना लेकर जा रही थी चौके के बाहर दूसरी चीटी ने विनम्रता पूर्वक कहा-ये दाना मुझे दे दो, वो बोली-तुम अंदर जाकर ले आओ, उसने कहा कि मै गन्दगी से गुजरकर आई हूं अतः अपवित्र हूं, चौके मैं नहीं जा सकती। पहली चींटी ने सहृदता का परिचय देकर दाना उसे सौप दिया और फिर दूसरा दाना लेने चौके में लौट आई। यह संवाद सुनकर कैकय नरेश ने अनुभव किया कि मेरे राज्य की चींटियां भी पवित्रता-अपवित्रता का कितना ख्याल करती है। वे एकाएक हंसने लगे। महारानी पृथ्वी ने उनकी प्रसन्नता का कारण जानना चाहा,,महाराज ने कहा में अगर बताऊंगा तो मेरी मृत्यु हो जाएगी लेकिन कैकयी की माँ को कुछ संदेह था और वो हठ करने लगी जिद्द पर अड़ गई मुझे बताइए,,बार बार राजा के समझाने पर भी रानी पृथ्वी ने हठ नही छोड़ी,,यहाँ तक कह दिया तुम जियो या मरो मुझे कोई फर्क नही पड़ता किन्तु मुझे ये चींटिया क्या बोल रही थी वो बताओ,,,तुरन्त राजा उन महात्मा जी के पास गए और सारी कहानी महात्मा जी को बताई कैसे रानी कोप भवन में जिद्द पर अड़ी बैठी है,,,महाराज कोई उपाय बताइए,,महात्मा जी ने पुनः दोहराया राजन वचन बदला नही जा सकता,,,यह सत्य है अगर आपने किसी को कुछ भी बताया तो उसी वक्त आपकी मृत्यु हो जाएगी अब निर्णय आपको लेना है,,,बहुत सोच विचार कर राजा ने रानी का परित्याग कर राज्य से बाहर कर दिया वे जान गए थे मेरी पत्नी को मेरे जीवन मेरी भलाई की कोई चिंता नही है,,इसी बात को भरत जी कहते है,,तुम्हारे पिता तो सही समय पर उचित निर्णय लेकर बच गए किन्तु मेरे पिता महाराज दशरथ तो बड़े सीधे और भोले है तेरी कुटिलता को समझ नही पाए तेरे पिता की तरह अगर निर्णय ले लेते तो उनके भी प्राण बच जाते,,,जननी तू जननी भई...🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉
@shantikaam3795
@shantikaam3795 Жыл бұрын
*🌳 रामायण की एक चौपाई का रहस्य 🌳* *बहुत कम लोगो को इसकी जानकारी है* श्रीरामकथा में श्रीराम के एवं भरतजी के चरित्र की मार्मिक कथाएँ पत्थर को भी पिघलाने वाली हैं। श्रीराम के वनगमन हो जाने तथा महाराज दशरथजी के परलोक गमन के पश्चात् भरत और शत्रुघ्न के ननिहाल से लौटने के उपरान्त ही भरतजी के चरित्र की विशेषताओं की झलक मानस में यत्र-तत्र-सर्वत्र अपनी अमित छाप छोड़ती चली जाती है। भरत श्रीराम को महल में न देखकर अत्यन्त ही दु:खी हो जाते हैं। माता कैकेयी भरत को प्रसन्न करने के लिये सारी कथा सुना देती हैं। तब भरत दु:खी होकर उससे कहते हैं- *बर माँगत मन भइ न पीरा।* *गरि न जीह मुँह परेउ न कीरा।।* अरि बेरिन महाराज दशरथजी से दो वर माँगते हुए तुझे पीड़ा नहीं हुई। प्रथम वर में राज्य माँगते हुए तेरी जिव्हा गल क्यों नहीं गई तथा दूसरे वर में श्रीराम को वनवास माँगते हुए तेरे मुँह में कीड़े क्यों नहीं पड़ गये। भरतजी ने मात्र इतना ही नहीं उससे भी अधिक माता कैकेयी को जो कुछ कहा वह श्रीरामचरित मानस में गूढ़ गम्भीर-चिन्तन-मनन करने का विषय है- *हंसबंसु दशरथु जनकु, राम लखन से भाइ।* *जननी तूँ जननी भई, बिधि सन कछु न बसाइ।।* भरत जी माता कैकेयी से कहते हैं मुझे सूर्यवंश, दशरथजी जैसे पिता और श्रीराम-लक्ष्मण जैसे भाई मिले, किन्तु हे जननी। मुझे जन्म देने वाली माता तू हुई। क्या किया जाय विधाता के आगे किसी का कुछ भी वश नहीं चलता है- इस दोहे को वाल्मीकि रामायण के अयोध्याकाण्ड में सर्ग 35 के सन्दर्भ में देखा जाए तो ऐसा भी संकेत एवं भावार्थ हो सकता है। भरत अपनी माता कैकेयी से कहते हैं कि हे माँ तू अपनी माता (नानी) के समान हो गई तथा जैसी तेरी माता माता न होकर कुमाता थी, तू ऐसी ही हो गई। इस कुमाता के प्रसंग को वाल्मीकि रामायण में श्रीराम के वनगमन के प्रसंग में मंत्री सुमंत्र एवं कैकेयी के बीच एक अन्तर्कथा के माध्यम से किया गया है- ऐसी कथा आती है कैकयी के पिता अश्वपति को एक महात्मा से वरदान मिला था वह पृथ्वी पर जितने भी जीव-जन्तु, कीड़े- मकोड़े, पशु-पक्षी सभी की आवाज सुन और समझ सकते थे,,लेकिन इस वरदान के साथ एक श्राप भी था कि.. वह इन सब की बाते किसी को भी बताएंगे तो उनकी उसी वक्त मृत्यु हो जाएगी.. एक बार कैकय नरेश कैकयी की माँ पृत्वी के साथ चौके में बैठकर भोजन कर रहे थे। एक चींटी चावल का एक दाना लेकर जा रही थी चौके के बाहर दूसरी चीटी ने विनम्रता पूर्वक कहा-ये दाना मुझे दे दो, वो बोली-तुम अंदर जाकर ले आओ, उसने कहा कि मै गन्दगी से गुजरकर आई हूं अतः अपवित्र हूं, चौके मैं नहीं जा सकती। पहली चींटी ने सहृदता का परिचय देकर दाना उसे सौप दिया और फिर दूसरा दाना लेने चौके में लौट आई। यह संवाद सुनकर कैकय नरेश ने अनुभव किया कि मेरे राज्य की चींटियां भी पवित्रता-अपवित्रता का कितना ख्याल करती है। वे एकाएक हंसने लगे। महारानी पृथ्वी ने उनकी प्रसन्नता का कारण जानना चाहा,,महाराज ने कहा में अगर बताऊंगा तो मेरी मृत्यु हो जाएगी लेकिन कैकयी की माँ को कुछ संदेह था और वो हठ करने लगी जिद्द पर अड़ गई मुझे बताइए,,बार बार राजा के समझाने पर भी रानी पृथ्वी ने हठ नही छोड़ी,,यहाँ तक कह दिया तुम जियो या मरो मुझे कोई फर्क नही पड़ता किन्तु मुझे ये चींटिया क्या बोल रही थी वो बताओ,,,तुरन्त राजा उन महात्मा जी के पास गए और सारी कहानी महात्मा जी को बताई कैसे रानी कोप भवन में जिद्द पर अड़ी बैठी है,,,महाराज कोई उपाय बताइए,,महात्मा जी ने पुनः दोहराया राजन वचन बदला नही जा सकता,,,यह सत्य है अगर आपने किसी को कुछ भी बताया तो उसी वक्त आपकी मृत्यु हो जाएगी अब निर्णय आपको लेना है,,,बहुत सोच विचार कर राजा ने रानी का परित्याग कर राज्य से बाहर कर दिया वे जान गए थे मेरी पत्नी को मेरे जीवन मेरी भलाई की कोई चिंता नही है,,इसी बात को भरत जी कहते है,,तुम्हारे पिता तो सही समय पर उचित निर्णय लेकर बच गए किन्तु मेरे पिता महाराज दशरथ तो बड़े सीधे और भोले है तेरी कुटिलता को समझ नही पाए तेरे पिता की तरह अगर निर्णय ले लेते तो उनके भी प्राण बच जाते,,,जननी तू जननी भई...🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉
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