@@Bharat_barah जी धन्यवाद गुरुजी आपका नल और नील को किस ऋषि या मुनि ने श्राप या आशिर्वाद दिया था। उनके द्वारा फेंकी गई कोई भी वस्तु पानी में तैरेगी उन ऋषि या मुनि का नाम क्या था।
@Bharat_barah11 күн бұрын
@ नमस्ते जी 🙏🏻 आपके प्रश्न का उत्तर थोड़ा बड़ा है। कृपया पूरा जरूर पढ़ियेगा। १. नल और नील के बारे में एक कथा प्रचलित है:- दोनों भाई वानर स्वभाव होने के कारण बहुत चंचल थे, वे ऋषिओं के पूजा पाठ का सामान लेकर नदियों में फेंक दिया करते थे। ऋषियों ने तंग आकर उनको श्राप दिया कि आप दोनों पानी में जो भी वस्तु डालोगे वह नहीं डूबेगी। ऐसा कहतें हैं यह श्राप ऋषि विश्वामित्र ने दिया है। २. दूसरी कथा यह भी प्रचलित है: नल और नील के गुरु ऋषि मुनीन्द्र ने वरदान दिया था, की जिस वस्तु को स्पर्श करके पानी में डालोगे वह तैरती रहेगी। * अब बात करतें हैं श्री गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस की ** नल और नील के बारे में रामचरितमानस के सुंदरकांड में लिखा है: नाथ नील नल कपि द्वौ भाई।लरिकाई रिषि आसिष पाई॥ तिन्ह के परस किएं गिरि भारे। तरिहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे॥ चौपाई का अर्थ, हे नाथ नील और नल दो वानर भाई हैं, उन्होंने बचपन में ऋषि से आशीर्वाद पाया था। उनके स्पर्श कर लेने से भारी भारी पहाड़ भी आपके प्रताप से समुद्र पर तैर जाएँगे। ** ऋषि श्री वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण में लिखा है: श्लोक अयं सौम्य नलो नाम तनयो विश्वकर्मणः। पित्रा दत्तवरः श्रीमान् प्रीतिमान् विश्वकर्मणः॥ एष सेतुं महोत्साह: करोतु मयि वानर:। तमहं धारयिष्यामि यथा ह्येष पिता तथा॥ अर्थ सौम्य! आपकी सेना में जो नल नामक वानर है, साक्षात विश्वकर्मा पुत्र है, इन्हें इनके पिता ने यह वर दिया है कि तुम मेरे समान समस्त शिल्प कला में निपुण होओगे। प्रभो आप भी इस विश्व के स्त्रष्टा विश्वकर्मा हैं। यह महान उत्साही वानर अपने पिता के समान ही शिल्पकर्म में समर्थ हैं, अतः यह मेरे ऊपर पुल का निर्माण करे। मैं उस पुल का धारण करूँगा। श्री तुलसीदास जी द्वारा लिखित रामचरितमानस में नल और नील दोनों की बात समुद्र ने की है। जबकि श्री वाल्मीकि जी द्वारा लिखित रामायण में समुद्र ने केवल नल जी के बारे में कहा है, जो बता रहे हैं कि नल जी के पास ऐसी विद्या विश्वकर्मा जी के द्वारा प्रदान की गई है। अब प्रश्न यह उठता है, क्या रामायण में नील के बारे में कुछ नहीं लिखा? तो रामायण में नील के बारे में लिखा है। रावण का महान योद्धा सेनापति जिसका नाम प्रहस्त है, जब प्रहस्त युद्ध के लिए आया था तब इसका सामना नील जी ने किया और प्रहस्त का वध भी नील जी ने ही किया है। इन सभी बातों को देखें तो सार यह निकलता है, भगवान श्री राम की सेना में महान योद्धा के साथ-साथ महान अभियंता भी थे। जिनको आज के जमाने में बहुत बड़े इंजीनियर कह सकते हैं, जो इस तरह का पुल बना सकते हैं जिसमे पिलर की आवश्यकता न हो। पुल की लंबाई चौड़ाई देखें तो श्री वालमीकि जी की रामायण में लिखा है: (दशयोजनविस्तीर्णं शतयोजनमायतम्।) सौ योजन लंबा और दस योजन चौड़ा पुल बनाया। इसमें आश्चर्य नहीं करना चाहिए कि उस जमाने में कैसे बनाया होगा और ये भी नहीं सोचना चाहिए की सब चमत्कार से बना होगा। भारत में ताजमहल बना है जिसको आज हम देख रहे हैं, ताजमहल को चमत्कार से नहीं मजदूरों की मेहनत और बड़े-बड़े शिल्पकारीगरों की कार्य कुशलता से तैयार हुआ है। ताजमहल को देखकर लोग आश्चर्य करते हैं। हम सोचते हैं, नल और नील पत्थर पानी में फेंके तो पत्थर तैरते थे। ऐसा नहीं, वाल्मीकि की रामायण को पढ़ते हैं तो लिखा है पुल बनाने में सारी सेना का सहयोग रहता है सभी मिलकर पुल के लिए आवश्यक सामग्री इकट्ठा करते हैं और पुल बनाने में जुटे रहते हैं। इसमें नल मुख्य इंजीनियर हैं। नल नील इन्होंने ऋषियों से शिक्षा प्राप्त कर अपने अपने गुणों में पारंगत हुए थे। पहले जब कोई शिक्षा प्राप्त कर निपुण होता था, आज की बात करें तो डिग्री हासिल करना बोल सकते हैं। तो उन्हें ऋषियों का आशीर्वाद ही समझते थे। लोग भी यही कहते थे। इसीलिए श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने सुंदरकांड में नल और नील के बारे में लिखा है: (नाथ नील नल कपि द्वौ भाई। लरिकाई रिषि आसिष पाई॥) नल नील दोनों भाई जिन्होंने ऋषि का आशीर्वाद पाया है। आपके प्रश्न का उत्तर देने की पूरी कोशिश की है। उत्तर थोड़ा बड़ा है। कहीं पर मतभेद हो तो आप कह सकते हैं। हमे भी आप लोगो का आशीर्वाद चाहिए ताकि हम भी निपुण हो सकें। जय सिया राम 🙏🏻