"जगत के लोग लोकप्रियता के लिए चेष्टाशील हैं, वास्तविक सत्य को जानने के लिए नहीं।जो अपने को धर्मप्रचारक के रूप में दिखा रहे है, वे मनुष्य को वास्तविक सत्य के प्रति उन्मुख न कर केवल उनके मन को संतुष्ट कर अपने अस्तित्व की रक्षा में ही व्यस्त हैं।इसीलिए सत्य का प्रचार नहीं हो रहा हैं।जबकि सत्यकथा बोलने अथवा सत्यकथा सुनने पर लोकप्रियता नहीं हो सकती"
श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती ठाकुर प्रभुपाद
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