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जिया कब तक उलझेगा संसार विकल्पों में... कवि श्री राजमलजी पवैया द्वारा रचित अनुपम रचना
Adhyatam Sanjeevani Part - 1 Audio album (Video form) showing collection of ancient adhyatmik bhajan's by various scholars. Composite by Ashit Desai & sung by Rekha Trivedi.
Composer - Ashit Desai
Studio - Ajivasan Studio, Mumbai
Singer - Rekha Trivedi.
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भावार्थ :-
हे मन! तुम कब तक इस असार संसार के विकल्पों में उलझोगे। जिन संकल्प और विकल्पों के जाल में उलझकर तुमने अनन्त भव व्यर्थ बिता दिये॥टेक॥
हे मन! मिथ्या मान्यता के कारण यह जीव चारों गतियों में भ्रमण करता रहता है और राग के स्वरुप को अपना मानकर हर पर्याय में दु:ख भोगता है।एक क्षण के लिये भी अपने आत्मा का ध्यान नहीं करता, इस जीव को निज आत्मस्वरुप तो पसंद नही आता और पर पदार्थ की रमणता ही सुहाती है। इस तरह यह संपूर्ण जीवन इन बाहर के झुठे पुरुषार्थ में ही व्यतीत होता जाता है॥1॥
हे चेतन! अब सम्यक् तत्वों का निर्णय कर अपने आत्मा के स्वरुप को देखो जिससे मिथ्यात्व का अभाव हो जायेगा और सुख स्वरुपी सम्यक दर्शन प्रगट होगा तथा इसी सम्यग्दर्शन के द्वारा अंतर परिणति में सम्यकज्ञान व सम्यकचारित्र रुपी रत्नत्रय की प्राप्ति होगी। जिसमे नियम से समस्त दुखों से छुटकारा रुपी मोक्ष की प्राप्ति होगी॥2॥
हे जीवराज! अब शुभ और अशुभ विभावी भावों का त्याग करो, क्योंकि ये सभी आस्त्रव होने से छोडने योग्य हैं। तुम तो संवर को साधन बनाकर अपने चेतन तत्व का अनुभव करो। तुम अनुपम और नित नवीन आनंद देने वाले इस शुद्धात्मा का चिन्तन करो, जिससे कर्मबन्धन की श्रृंखला का अभाव होगा और तुम स्वयं अपने ही पुरुषार्थ से अल्प समय में सिद्ध दशा की प्राप्ति करोगे॥3॥
हे मनुष्य! सुन… तू अभी भी जाग जा, सचेत हो जा तू क्यों पागल पशु की तरह मूर्ख बना हुआ है। अब तू अर्न्तमुख हो जा और अपने ज्ञान की पर्याय में आत्म स्वभाव की महिमा को ला, पराधीनता को छोडकर अपने स्वरुप का आश्रय कर। यदि पर की दृष्टि छोड देगा तो कुछ ही समय मे अतीन्द्रिय सुख की प्राप्ति होगी॥4॥
हे चेतन! तू कौन है, तेरा क्या स्वरुप है, और तेरा वास्तविक नाम क्या है, कहां से तू आया है और कहां तुझे जाना है? क्या कभी कुछ समय निकालकर तुने इन सब बातों पर विचार किया है कि यह शरीर तो जड पुद्गल का बना हुआ है और कुछ समय मात्र के लिये ही इसका साथ है। तुम तो स्वयं अतुल बल के धनी चेतन द्रव्य हो इसलिये जड पदार्थों को छोडकर निर्विकल्प सुख को शीघ्र प्राप्त करो॥5॥
हे जीव! यदि अब भी यह मनुष्य पर्याय का दुर्लभ अवसर चला गया तो तुझे न जाने कितने भवों तक पछताना पडेगा और फ़िर अनन्त काल तक भयंकर दु:खों को भोगना पडेगा। यदि इस दुर्लभता से प्राप्त मनुष्य पर्याय का सदुपयोग नहीं किया तो पता नहीं तुझे कौनसी गति प्राप्त होगी और यदि पुण्योदय से मनुष्य पर्याय प्राप्त भी हो गई तो जिनकुल और जिनवाणी प्राप्त नहीं होगी और फ़िर से अनन्त जन्मों और अनन्त कालों तक तुझे इस संसार में भटकना पडेगा॥6॥
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