मुझे खुशी है कि मेरे देश का प्रजापति समाज भी नई टेक्नोलॉजी का उपयोग करके अपनी प्रगति तथा अपने देश के लिए कम कर रहे है।
@ClayOrigins-bq6el7 ай бұрын
Thank You Sir🙏🏻🙏🏻
@arpitpurohit96979 ай бұрын
Many many Congratulations 🎉
@sachintungariya44883 ай бұрын
Nice video sir ji
@pankajkumar-wp9qi9 ай бұрын
Congratulations From team IDFC
@krishanarya31299 ай бұрын
विश्व की सबसे प्राचीन और महान् प्रजापति जाति को भगवान् ब्रह्मा जी के पुत्र *दक्ष प्रजापति* की सन्तान माना जाता है। प्रजापति कर्तव्यनिष्ठ, परिश्रमी और स्वाभिमानी किस्म की जाति है। न तो कभी चोरी-डाका नहीं डालते हैं और ना कभी किसी से छीन-झपट और मांग कर खाते हैं। बेहद ईमानदार, धर्मनिष्ठ, संतोषी और भगवान् में गहरी आस्था रखने वाली हिन्दू जाति है, इसलिये प्राचीन काल में ही सर्वमान्य रूप से स्थापित हिन्दू मान्यताओं के अनुसार इन्हें *प्रजापति* के साथ-साथ *"भगत जी"* कह कर भी सम्मानित किया जाता है। इतिहास प्रसिद्ध *महाराजा शालिवाहन* और *मैसूर के वाडियार राजा* प्रजापति ही थे/हैं।। मिट्टी के बर्तन अत्यन्त पवित्र माने जाते हैं। आज आधुनिक युग में भी अनेक प्राचीन हिंदू मंदिरों, विशेष तौर पर *पुरी, ओड़िशा* के भगवान् जगन्नाथ मंदिर में भगवान् को भोग लगाने के लिए भोजन मिट्टी के पात्रों में ही पकाया जाता है। शताब्दियों से परम्परा रही है कि विवाह संस्कार के अवसर पर *मिट्टी के बर्तन बनाने वाले चाक* की पूजा किये बिना धार्मिक अनुष्ठान सम्पूर्ण नहीं माने जाते। क्योंकि भगवान् श्रीहरि विष्णु जी ने अपना सुदर्शन चक्र प्रजापति को दिया था, इसीलिये चाक पूजन करके एक तरह से प्रजापति जाति की श्रेष्ठता को स्वीकार किया जाता है और उसका सम्मान किया जाता है। बर्बर मुस्लिम आक्रांताओं के लगातार आक्रमणों ने हिन्दू धर्म की अनेकों महान् परम्पराओं को नष्ट कर दिया। सम्पूर्ण जानकारी के अभाव में आज इनका स्वरूप काफी हद तक बदल गया है। सृष्टि के आरम्भिक काल से ही निर्विवाद रूप से *प्रजापति* कहे जाते हैं अर्थात् यह कोई कमजोर अथवा दीन-हीन जाति नही है। *प्रजापति का अर्थ है - प्रजा का पालन करने वाला प्रजा का सरंक्षक।* प्रजापति को "आदि गुरु" भी माना जाता है, इसीलिये हिन्दू धर्म के मर्म और प्राचीन मान्यताओं को जानने-समझने वाले साधु-संत कभी किसी प्रजापति जाति के व्यक्ति को संन्यास आश्रम की दीक्षा देते समय उसके कानों का छेदन तक नहीं करते। विवाह (पाणिग्रहण संस्कार) एवं हवन-यज्ञ के शुभ अवसरों पर *ओम् प्रजापत्ये स्वाहा* जैसे मंत्रों का उच्चारण कुछ विशेष कारणों से ही किया जाता है। एक प्रचलित प्राचीन मान्यता यह भी है कि कोई भी गॉंव अथवा खेड़ा बिना प्रजापति जाति के बसा नहीं रह सकता अर्थात् जिस गॉंव में मिट्टी के बर्तन बनाने वाली जाति *"प्रजापति"* का कोई घर मकान नहीं है, वह गॉंव देर-सवेर उजड़ जाता है। प्रजापति जाति की पुनर्प्रतिष्ठा के लिए गहन शोध की आवश्यकता है। पैसे की चमक-दमक में अब पुराना बहुत कुछ खो सा गया है, अन्यथा प्रजापति कभी किसी समय में एक बेहद सम्मानित जाति मानी जाती थी और है भी। प्रचलित लोककथाओं के अनुसार द्रोपदी स्वयंबर से पहले पाण्डवों ने माता कुंती के साथ प्रजापति की कार्यशाला *(मिट्टी के पवित्र बर्तन बनाने का स्थान)* में ही प्रवास करना ठीक समझा था। द्रौपदी अपने ब्याह के बाद अपने पिता महाराज द्रुपद के राजभवन से निकल कर सर्वप्रथम प्रजापति के घर पर ही ब्याही आई थी। इतिहास प्रसिद्ध अमरत्व प्राप्त *भृतहरि और उनके भानजे गोपीचंद* ने गांव तिजारा, जिला अलवर (राजस्थान) में प्रजापति की कार्यशाला में १२ वर्षों तक प्रवास करके योगसाधना की थी। समुद्र मंथन के समय आयुर्वेद के जनक भगवान् धनवंतरि एक कलश (कुम्भ) में अमृत लेकर उत्पन्न हुये थे। इस कुंभ से अमृत की कुछ बूंदें नासिक, उज्जैन, प्रयागराज और हरिद्वार में छलकी थी। इन पवित्र स्थानों पर कुम्भ का मेला लगता है। कुम्भ को बनाने वालों को कुम्भकार (प्रजापति) कहा जाता है।
@arvindkumar-wt4el5 ай бұрын
Good to see u by doing such hard work....Wish for you to become an successfull entrepreneur.
@ClayOrigins-bq6el5 ай бұрын
Thank You Sir🙏🏻🙏🏻
@adarshsaini5619 ай бұрын
Nice mere bhai ❤❤❤
@NizaraGoldAssamTea6 ай бұрын
Very good video and information from Assam salute to you