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लक्षण-कवक लताओं के सभी हरे हिस्सों, पत्तियों, छोटे पौधों, तनों तथा तंतुओं पर आक्रमण करता है। हालाँकि, नए, तेज़ी से बढ़ने वाले ऊतक अधिक प्रभावित होते हैं। पत्तियों पर, ऊपरी लेमिना पर छोटे कत्थई धब्बे दिखाई देते हैं। जैसे-जैसे ये धब्बे बड़े होते हैं, ये असमान होते जाते हैं तथा इनका केंद्र धीरे-धीरे भूरे रंग का तथा परिगलित हो जाता है। अंततः मृत ऊतक चोट के कारण हुए छिद्र-सा प्रभाव बनाते हुए गिर जाता है। इसी प्रकार के धब्बे तथा घाव तनों और छोटे पौधों पर दिखाई देते हैं और उन्हें जकड़ लेते हैं जिसके कारण घावों का निर्माण होता है और पौधे अन्दर ही मर जाते हैं। फलों पर छोटे, बैंगनी रंग के धब्बे बन जाते हैं। वे धीरे-धीरे बड़े हो जाते हैं और दबे हुए कत्थई किनारों वाले राख जैसे भूरे रंग में बदल जाते हैं। जैसे ही ये खाल को ढक लेते हैं, अंगूर मुरझा जाते हैं और गुच्छों का कंकालीकरण हो जाताहै। राख जैसे भूरे केंद्र वाले विशिष्ट धब्बों से इस रोग को इसका नाम मिला है, पक्षी के आँख की सड़न।
🔺रासायनिक रोकथाम-हमेशा समवेत उपायों का प्रयोग करना चाहिए, जिसमें रोकथाम के उपायों के साथ जैविक उपचार, यदि उपलब्ध हो, का उपयोग किया जाए। एन्थ्राक्नोज़ को नियंत्रित किया जा सकता है यदि सुरक्षात्मक कवकरोधकों के छिड़काव के साथ खेती की अच्छी आदतों को शामिल किया जाए। द्रवीय लाइम सल्फ़र या बोर्डो के मिश्रण का कलियों पर बस खिलते समय ही छिड़काव एन्थ्राक्नोज़ की समस्या को कम कर सकता है। नई बढ़वार तथा फलों को सुरक्षित रखने के लिए पंजीकृत कीटनाशक केप्टान, क्लोरोथैलोनिल तथा मेंकोज़ेब हैं। कलियों के निकलने से ले कर फलों में रंग आने तक 2 सप्ताह के अंतराल पर छिड़काव करें।