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/ @iamruchirajpoot
भारत में विख्यात म.प्र. एवं बुंदेलखण्ड का प्रसिद्ध तीर्थ क्षेत्र सिद्धपीठ श्री जागेश्वरनाथ जी महादेव मंदिर दमोह जिले के बांदकपुर में स्थित है।
स्वयंभू शिवलिंग श्री जागेश्वरनाथ जी मंदिर दीवान बालाजी राव चाँदोरकर ने सन् 1711 में बनवाया था। महादेव जी मंदिर से पूर्वोन्मुख 100 फुट की दूरी पर माता पार्वती जी की मनोहारी भव्य प्रतिमा एवं मंदिर है। 2.25 हे. मंदिर परिसर में यज्ञ मण्डप, अमृतकुण्ड, श्री दुर्गाजी मंदिर, श्री काल भैरवजी मंदिर, श्री रामजानकी-लक्ष्मण-हनुमान जी मंदिर, नर्मदाजी मंदिर, सत्यनारायण, लक्ष्मीजी एवं राधाकृष्णजी मंदिर हैं। इसी परिसर में मंदिर कार्यालय संस्कृत विद्यालय है, तथा मुण्डन स्थल एवं विवाह मण्डप है। जागृत शिवलिंग श्री जागेशवरनाथ जी का उल्लेख स्कंद पुराण के गौरी कुमारिका खण्ड में है। यहां हांथा लगाने से मनोकामना की पूर्ति होती है |
बुंदेलखंड के बांदकपुर स्थित जागेश्वर धाम में विराजित शिवलिंग सालों से लोगों के आश्चर्य का केंद्र बना हुआ है। यह शिवलिंग हर साल चौड़ा यानी बढ़ता जा रहा है। इसके पीछे क्या कारण है, यह अब तक अज्ञात बना हुआ है।
बुंदेलखंड के दमोह में स्थित तीर्थ क्षेत्र जागेश्वरनाथ धाम बांदकपुर में भगवान शिव अनादिकाल से विराजमान हैं। इनकी ख्याति मप्र तक सीमित न रहकर संपूर्ण भारत वर्ष में है। यही कारण है कि चारों धाम की यात्रा करने वाला इस तीर्थ के दर्शन किए बिना नहीं रहता। जहां पर प्रथम श्रीनाथ जी का यह स्वयंभूलिंग है। इनके दर्शन करने से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
श्री स्वरुपानंद जी सरस्वती महाराज जैसी महान विभूतियों को भी दर्शनमात्र से शिव लिंग की जागृति का आभास हो चुका है। सन 1972 से लेकर अब तक शिवलिंग की महिमा प्रतिष्ठा दिन दूनी रात चौगुनी फैलती जा रही है। यहां पर बसंत पंचमी से लेकर महाशिव रात्रि जैसे पर्वों पर भक्तों की भारी भीड़ मेला का रूप धारण कर लेती है। श्री महादेव जी के मंदिर से लगभग 31 मीटर की दूरी पर सामने ही एक दूसरा मंदिर है। महादेव के ठीक सामने इस मंदिर में माता पार्वती की प्रतिमा है, जिसकी प्राण-प्रतिष्ठा सन 1844 ई में हुई थी। मंदिर के गर्भस्थल स्थल में ठीक श्री जागेश्वर नाथ जी महादेवजी के सामने माता पार्वती की मूर्ति विराजमान है। यह मूर्ति संगमरमर की है। माता की मूर्ति की दृष्टि ठीक जागेश्वरनाथ जी महादेव पर पड़ती है। इसमें अद्भुत कला के दर्शन होते हैं।
प्राचीन काल से ही बसंत पंचमी, शिवरात्रि के पर्वों पर लाखों की संख्या में कांवर में पैदल चलकर लाया गया नर्मदा मां का जल श्री जागेश्वरनाथ की पिंडी पर चढ़ाकर जलाभिषेक करते हैं। इसी कारण प्राचीन मान्यता है कि सवा लाख कांवर चढ़ने पर माता पार्वती एवं महादेव के मंदिरों के झंडे एक दूसरे के मंदिर तरफ झुककर आपस मिलकर अपने आप गांठ बंध जाती है। इन साक्षात चमत्कारों से अभिभूत श्रद्वालु महाशिव रात्रि पर्व पर भगवान शिव पार्वती के स्वयंवर का आनंद उत्सव बड़ी ही धूमधाम से मनाते हैं। इसमें दमोह तीन गुल्ली से भगवान शिव की बारात लेकर हजारों शिव भक्त आते हैं। माता पार्वती के गांव रोहनिया में बादकपुर धाम से बारात जाती है।
महाशिव रात्रि के पर्व पर भगवान शिव के दूल्हा बनने पर विशेष श्रृंगार सुबह चार बजे से पूजन अभिषेक शुरू होता है। इसमें भगवान को दोपहर 12 बजे भोग अर्पण करने के बाद रात्रि 7 बजकर 30 मिनिट पर महाआरती व रात्रि 10 बजे से 3 बजे तक महाभिषक पूजन होता है। इसमें भारी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में उपस्थित रहते हैं।
Credit by- government of Madhya Pradesh
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