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हम आत्मनिरीक्षण द्वारा अपने आप को समझे और जिसको भी अपने मन में किसी प्रकार के खोट का एहसास हो, वह ये बोल कर अपनेमन का खोट स्वीकार सकता है - "मैं, चली कपटी, झूठ चतुराइयों द्वारा अपना स्वार्थ सिद्ध करने में माहिर, आज तक सबके समक्ष अच्छाई का मुखौटा लगाकर ठगता रहा |"
परन्तु अब जब समभाव समदृष्टि का सबक समझ में आ गया है, तो मैं इस आत्माधार की व्यवहारिक युक्ति को सहर्ष अपनाते हुए सच्चाई धर्म निष्काम रस्ते पर चलना स्वीकारता हूँ | और सबसे वैसा ही करने की प्रार्थना करता हूँ |