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प्रियजन, हाथरस के परमसंत श्री गुरु तुलसी साहिब दयामेहर कर रत्नसागर से वचन फरमा रहे हैं 'उलये गर्भ रहा लटकाना आधे, मुख मलमुत्र समाना' कि सर्वप्रथम जन्म में आना दुखदाई, गर्भ में औंधे लटकना पड़ा, मुख मलमुत्र समाना। जन्म लेने पर बालपन में सुध-बुध की बोध नहीं। फिर लगी पढ़ाई की चिंता और फिर आजीविका को लेकर कॅरिअर की चिंता। युवावस्था में जीवनसाथी संग समय बिता दिया। इस प्रकार यह तीनों अवस्थाएँ बीत गई। फिर वृद्धावस्था में शरीर को रोग लग गए। गुरु साहिब अफ़सोस कर रहे हैं कि कुल-मालिक कर्त्ता से हेत करना नेक नहीं समझा।
अब तो मृत्यु की बारी आ गई। गलतफहमी के रहते प्राण निकल रहे हैं। 'अब क्या होवे बात बिचारे, नर बाजी जूवा में हारे' कि अब विचार करने से क्या होगा, मनुष्य जन्म व्यर्थ कर दिया। 'घर बाहर से काढ़े ढेरा। फिर नहिं आन किया नर फेरा' कि घर से काढ़ बाहर डेरा कर दिया। नर फेरा यानि मनुष्य जन्म में फिर से नहीं आना हुआ।🙏