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Noha : Abbas Mar Gye Ali Akbar
Juda huwa
Kalaam :
Nohakhwan :
Venue :
Video By : / anjumanaarfibaghra
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Lyrics:
अब्बास मर गए अली अकबर जुदा हुआ
हमसे किसी ने ये भी न पुछा के क्या हुआ
अब्बास मर गए अली अकबर जुदा हुआ
हमसे किसी ने ये भी न पुछा के क्या हुआ
(1)
जब खून दिल से दाग़े पिसर धोते थे हुसैन
लाशों के बीच तन्हा खड़े रोते थे हुसैन
अब्बास को पुकार के जां खोते थे हुसैन
अकबर की लाश से ना जुदा होते थे हुसैन
फ़रयाद थी के टुकड़े दिले मुस्तफ़ा हुआ
हमसे किसी ने ये भी न पुछा के क्या हुआ
अब्बास मर गए अली अकबर जुदा हुआ
हमसे किसी ने ये भी न पुछा के क्या हुआ
(2)
यूँ बेक़सी को आलमे ग़ुरबत का घर मिला
मुझको मेरे बुढ़ापे में दाग़े पिसार मिला
घायल सिना की नोक से नूरे नज़र मिला
क्योंकर हमारे जानू पे बेटे का सर मिला
हम देखते ही रह गए सीना छिदा हुआ
हमसे किसी ने ये भी न पुछा के क्या हुआ
अब्बास मर गए अली अकबर जुदा हुआ
हमसे किसी ने ये भी न पुछा के क्या हुआ
(3)
सदमे का दर्द मिस्ले क़यामत गुज़र गया
हम लुट गए ये ग़म हमें बर्बाद कर गया
बरछी का फल हमारे भी दिल में उतर गया
आखिर तड़प तड़प के जवां लाल मर गया
अरमां हमारे जीने का बे आसरा हुआ
हमसे किसी ने ये भी न पुछा के क्या हुआ
अब्बास मर गए अली अकबर जुदा हुआ
हमसे किसी ने ये भी न पुछा के क्या हुआ
(4)
जब दाग बनके दिलको दुखाए पिसर का दाग़
फिर कैसे कोई बाप उठाए पिसर दाग़
कितना शदीद होता है हाय पिसर का दाग़
दुश्मन को भी खुदा न दिखाए पिसर का दाग़
हमने पिसार का देखा है दम टूटता हुआ
हमसे किसी ने ये भी न पुछा के क्या हुआ
अब्बास मर गए अली अकबर जुदा हुआ
हमसे किसी ने ये भी न पुछा के क्या हुआ
(5)
जिस दम निकाली सीने से टूटी हुई सिना
गोया हमारे दिल में भी चुभती थी बरछियाँ
अकबर रगड़ रहा था सरे दश्त एड़िया
वो इज़्तेराब था के न रूकती थी हिचकियाँ
हम हाथ मलते रह गए दिल था दुखा हुआ
हमसे किसी ने ये भी न पुछा के क्या हुआ
अब्बास मर गए अली अकबर जुदा हुआ
हमसे किसी ने ये भी न पुछा के क्या हुआ
(6)
बरछी का फल जवान के दिल से निकाल के
हम खून रोये अपना कलेजा संभाल के
जब रन से लाये लाश को कांधे पे डाल के
हम लड़खड़ा के गिर पड़े लाशे पे लाल के
हमपे ये बेकसी का सितम जा बा जा हुआ
हमसे किसी ने ये भी न पुछा के क्या हुआ
अब्बास मर गए अली अकबर जुदा हुआ
हमसे किसी ने ये भी न पुछा के क्या हुआ
(7)
जिसका कोई अजीज़ भी मर जाता है यहाँ
देते उसको लोग दिलासे तसल्लियाँ
मारा गया अभी मेरा फ़रज़न्द ऐ नातवाँ
लेकिन सिपाही शाम ने तानी है बरछियाँ
ये ताज़ियत का हक़ भी अनोखा अदा हुआ
हमसे किसी ने ये भी न पुछा के क्या हुआ
अब्बास मर गए अली अकबर जुदा हुआ
हमसे किसी ने ये भी न पुछा के क्या हुआ
-- मकता --
अकबर की लाश उठा के हुए बेक़रार हम
जब ठोकरे लगी तो गिरे बार बार हम
तड़पे कभी तो रोये कभी ज़ार ज़ार हम
' आरिफ ' जवान बेटे के है सोग़वार हम
ये दर्द ज़िंदगी के लिए नातवाँ हुआ
हमसे किसी ने ये भी न पुछा के क्या हुआ
अब्बास मर गए अली अकबर जुदा हुआ
हमसे किसी ने ये भी न पुछा के क्या हुआ