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अगस्त्येश्वर महादेव मंदिर उज्जैन में
हरसिद्धि मंदिर के पीछे स्थित संतोषी माता मंदिर परिसर में है। अगस्त्येश्वर
महादेव मंदिर की स्थापना ऋषि अगस्त्य, उनके क्षोभ और महाकाल वन में उनकी तपस्या से
जुडी हुई है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब दैत्यों का आधिपत्य देवताओं पर बढ़ने लगा तब निराश
होकर देवतागण पृथ्वी पर भ्रमण करने लगे। एक दिन जब देवतागण वन में भटक रहे थे तब
उन्होंने वहां सूर्य के सामान तेजस्वी अगस्त्य ऋषि को देखा। ऋषि अगस्त्य को देवताओं
ने दैत्यों से अपनी पराजय के बारे में बताया जिसे सुन कर अगस्त्य ऋषि अत्यधिक
क्रोधी हुए। उनके क्रोध ने एक भीषण ज्वाला का रूप लिया जिसके फलस्वरूप स्वर्ग से दानव जल कर
गिरने लगे। यह देख
कर ऋषि, मुनि आदि काफी भयभीत हुए और पाताल लोक चले गए। इस घटना ने अगस्त्य ऋषि को
काफी उद्वेलित किया। दुखी होकर वे ब्रह्माजी के पास गए और ब्रह्म हत्या के
निवारण हेतु ब्रह्माजी से विनय करने लगे कि दानवों की हत्या से मेरा सब तप क्षीण
हो गया है कृपया कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे मुझे मोक्ष प्राप्त हो।
ब्रह्मा जी ने कहा कि महाकाल वन के उत्तर में वट
यक्षिणी के पास एक बहुत पवित्र शिवलिंग है, वहां जाकर उनकी पूजा अर्चना कर तुम
समस्त पापों से मुक्त हो सकते हो। ब्रम्हाजी के कहे अनुसार अगस्त्य ऋषि ने उस लिंग
की पूजा की और वहां तपस्या की जिससे भगवान महाकाल प्रसन्न हुए। भगवान ने उन्हें
वरदान दिया कि जिस देवता का लिंग पूजन तुमने किया है, वे तुम्हारे नामों से तीनों
लोकों में प्रसिद्ध होंगे। तभी से यह शिव स्थान अगस्त्येश्वर नाम से विख्यात
हुआ।
अगस्त्येश्वर महादेव की आराधना साल भर में कभी भी की जा सकती है लेकिन श्रावण मास
में इसका अधिक महत्व होता है। साथ ही ऐसा माना जाता है कि अष्टमी और चतुर्दशी को
जो इस लिंग का पूजन करता है उसकी सम
दूषण नाम का राक्षस था उसको वर था , कि जहां
उसका रक्त गिरेगा वहां पर 84 रूप धारण कर लेगा । शिव पुराण के अनुसार 84 महादेव
शंकर भगवान की बहन थी श्री प्रिया अर्थात आज इसे क्षिप्रा नदी कहते हैं
।
दूषण राक्षस को मारने के लिए शंकर भगवान ने कहा कि , अगर श्री प्रिया जल के रूप
में आए , तो जैसे ही मैं राक्षस को मारूंगा तो इसका रक्त पानी में घुल जाएगा और
इसका जन्म नहीं होगा अर्थात यह 84 रूप में नहीं बनेगा , जैसे ही शंकर भगवान ने
दूषण राक्षस को मारा तो शिप्रा को आने में ,देरी हो गई तो राक्षस ने 84 रूप धारण
कर लिए ।
चारो और हाहाकार हो गया इसे देखकर बहन शिप्रा ने अपने भाई शंकर पर जल की वर्षा कर
दी , जैसे ही जल बहा , तो शंकर जी के 84 टुकड़े हो गए और दूषण राक्षस के
84 रूप , का संहार कर दिया यह टुकड़े पूरी उज्जैनी में , महादेव की रूप
मैं है ।
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स्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है और वह मोक्ष को
प्राप्त करता है।
अगस्त्येश्वर महादेव महाशिवरात्रि Agastyeshwar Mahadev Mahashivratri