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He mere Sadguru Pyare... Tere Tan-man -dhan ki tapasya, tere jeevan ki kurbaani... | Sant Shri Asharamji Bapu | New Bhajan
Lyrics
ऐ मेरे सद्गुरु प्यारे, तेरा जन्म है कैसा रूहानी;
तेरे तन-मन-धन की तपस्या, तेरे जीवन की कुर्बानी ।
ऐ मेरे सद्गुरु प्यारे, तेरा जन्म है कैसा रूहानी;
तेरे तन-मन-धन की तपस्या, तेरे जीवन की कुर्बानी ॥
जब हम बैठे थे सुखों में, तू सुखा रहा था तन को;
जब हम बैठे थे घरों में, तू भुला रहा था मन को ।
जग में रह कर सब भूला, ना भोजन चाहा न पानी;
तेरे तन-मन-धन की तपस्या, तेरे जीवन की कुर्बानी ॥
गुरुदर पर सेवा थे करते, हाथों से खून था बहता;
पर गुरुसेवा में तत्पर, इस देह का भान था भूलता ।
संकल्प यही बस दृढ़ था, गुरुआज्ञा प्रथम निभानी;
तेरे तन-मन-धन की तपस्या, तेरे जीवन की कुर्बानी ॥
गुरुदेव के प्रेम की खातिर, हर दिन सहते थे तितिक्षा;
दिन रैन वो ज्वाला से थे, हर पल थी अग्नि-परीक्षा ।
हर मूल्य पे लक्ष्य को पाना, ये बात थी मन में ठानी;
तेरे तन-मन-धन की तपस्या, तेरे जीवन की कुर्बानी ॥
नगर सेठ कहलाने वाला, गुरुदर पे मरता मिटता;
तेरी मर्जी पूरण हो, ये ध्यान हृदय में धरता ।
बस निराकार ने थामा, ना होने दी कुछ हानि;
तेरे तन-मन-धन की तपस्या, तेरे जीवन की कुर्बानी ॥
वो कैसी रातें होंगी, प्रभु-प्रेम में जब तू रोया;
दुनिया थी नींद में सोती, तू अपने आप में खोया ।
अति दिव्य है और अलौकिक, तेरी महिमा न जाय बखानी;
तेरे तन-मन-धन की तपस्या, तेरे जीवन की कुर्बानी ॥
माँ का आँचल बिसराया, पत्नी का प्रेम ठुकराया;
किन-किन राहों पे चल के, इस ब्रह्मज्ञान को पाया ।
फिर आत्म में ही रहा तू, चालीस दिन की वो निशानी;
तेरे तन-मन-धन की तपस्या, तेरे जीवन की कुर्बानी ॥
था आसोज सुद दो दिन, और संवत् बीस इक्कीस;
मध्याह्न ढाई बजे, मिल गया ईश से ईश ।
पानी में मिल गया पानी, फिर दोनों हो गये फानी;
तेरे तन-मन-धन की तपस्या, तेरे जीवन की कुर्बानी ॥
ये रोशनी कैसे फूटी, जग गयी है सारी धरती;
अम्बर भी प्रकाश से फूटा, नस-नस में ज्योति भर दी ।
सब जड़ और चेतन जागा, लगे संत की बात फैलाने;
तेरे तन-मन-धन की तपस्या, तेरे जीवन की कुर्बानी ॥
गुरु सत्य का रस पिलाया, तन-मन-हृदय में समाया;
हर नस-नस में पहुँचा वो, हर रुह को ‘ॐ’ जपाया ।
वो रस मेरी आँखों से छलके, गुरुप्रेम का बनकर पानी;
तेरे तन-मन-धन की तपस्या, तेरे जीवन की कुर्बानी ॥
हर तरफ है आतम-दर्शन, हर तरफ है नूर नूरानी;
हर तरफ है तेरा उजाला, हर तरफ है तू ब्रह्मज्ञानी ।
सदियों तक जो गूँजेगी, है आज की तेरी कहानी;
तेरे तन-मन-धन की तपस्या, तेरे जीवन की कुर्बानी ॥
दरिद्र नारायण की सेवा करते, है अपना आप लुटाया;
गली-गली गाँव में जाकर, सबको ही सुख पहुँचाया ।
है विश्व-शिखर पर चमका, भारत का रत्न नूरानी;
तेरे तन-मन-धन की तपस्या, तेरे जीवन की कुर्बानी ॥
हम ना भूले उस तप को, कैसे तूने गुरु को रिझाया;
किन-किन राहों पे चल के, इस ब्रह्मज्ञान को पाया ।
जन्मों की तपन मिटाये, ये ब्रह्म को छूती वाणी;
तेरे तन-मन-धन की तपस्या, तेरे जीवन की कुर्बानी ॥
इन कठिन पलों में भी तू, किस शान से है मुस्काया;
जग को सत् राह दिखायी, कष्टों में तन को तपाया ।
रो-रो इतिहास कहेगा, दी तूने जो कुर्बानी;
तेरे तन-मन-धन की तपस्या, तेरे जीवन की कुर्बानी ॥
संकल्प मात्र से जिनके, सृष्टि भी बदले नजारे;
इतना कुछ होने पर भी, …(२) ना जाने मौन क्यों धारे ।
दुनिया ने इतना सताया, फिर भी मुस्काये ज्ञानी;
तेरे तन-मन-धन की तपस्या, तेरे जीवन की कुर्बानी ॥
संस्कृति के रक्षक को ही, दुनिया ने जेल पहुँचाया;
झूठे इल्जाम लगाकर, देखो संत को कैसे सताया ।
सूरज को कौन ढकेगा, वो स्वयं प्रकाश का स्वामी;
तेरे तन-मन-धन की तपस्या, तेरे जीवन की कुर्बानी ॥
ऐ मेरे सद्गुरु प्यारे, तू दे रहा कैसा इशारा,
जैसा तू ब्रह्म में स्थित है, वैसा हो बोध हमारा ॥ …(३)
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