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मालती चौधरी का जन्म साल 1904 में हुआ था। उनके पिता का नाम बैरिस्टर कुमुद नाथ सेन और मां का नाम स्नेहलता सेन था। उनकी मां एक प्रख्यात लेखिका थीं, जिन्होंने ‘जुगलंजलि’ नामक पुस्तक लिखी थी और रवींद्रनाथ टैगोर की कुछ कृतियों का भी अनुवाद किया था। जब वे केवल ढाई साल की थीं तो उनके पिता का निधन हो गया और मालती के पालन-पोषण की जिम्मेदारी उनकी मां के कंधों पर आ गई। माँ ने भी इस ज़िम्मेदारी को भी बखूबी निभाया।
16 साल की उम्र में मालती को पढ़ने के लिए शांतिनिकेतन भेजा गया जहां उन्हें टैगोर द्वारा स्थापित विश्वभारती में भर्ती कराया गया। यहां उन्हें सीधे गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का सानिध्य प्राप्त हुआ। गुरुदेव उन्हें प्यार से ‘मीनू’ कहा करते थे। टैगोर के सिद्धांतों, शिक्षा और विकास और देशभक्ति के विचारों से मालती बेहद प्रभावित थीं। शांतिनिकेतन में मालती ने न केवल डिग्री प्राप्त की, बल्कि तमाम तरह की कला एवं संस्कृति में भी पारंगत हासिल की। यहीं पर वे नबाकृष्णा चौधरी से संपर्क में आईं, जिनसे आगे चलकर साल 1927 में वे विवाह के बंधन में बंध गईं। शादी के बाद वे उड़ीसा में ही बस गईं और ग्रामीण एवं कृषि विकास के लिए तमाम तरह के सामाजिक गतिविधियों की शुरुआत की। उन्होंने गन्ने की खेती को बेहतर बनाने में गरीब किसानों की मदद करने और आसपास के गांवों में वयस्कों को शिक्षित करने का काम किया।
नमक सत्याग्रह के समय मालती चौधरी और उनके पति भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और इस दौरान मालती को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। जेल में भी वे अपने रचनात्मक कार्यों जैसे कि साथी कैदियों को शिक्षित करने और गांधीजी के विचारों का प्रचार-प्रसार करने का काम करती रहीं। साल 1933 में उन्होंने अपने पति के साथ मिलकर ‘उत्कल कांग्रेस समाजवादी कर्म संघ’ नामक एक संगठन का गठन किया। बाद में इस संगठन को ‘अखिल भारतीय कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी’ की उड़ीसा प्रांतीय शाखा के रूप में जाना जाने लगा।
1946 में मालती चौधरी ने उड़ीसा के अंगुल में बाजीराउत छात्रावास और 1948 में उत्कल नवजीवन मंडल की भी स्थापना की। बाजीराउत छात्रावास की स्थापना का उद्देश्य स्वतंत्रता सेनानियों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, अन्य पिछड़े वर्गों और समाज के अन्य वंचित वर्गों के बच्चों को शिक्षित करना था, जबकि उत्कल नवजीवन मंडल का उद्देश्य उड़ीसा में ग्रामीण विकास और आदिवासी कल्याण के लिए काम करना था। मालती चौधरी ने चंपतिमुंडा में एक पोस्ट बेसिक स्कूल की भी स्थापना की थी।
मालती के जीवन पर गांधी जी के विचारों का भी खासा प्रभाव रहा था। साल 1934 में वे गांधी जी के साथ उड़ीसा में एक पदयात्रा के दौरान जुड़ीं। वे गांधीजी की नोआखाली यात्रा के दौरान भी उनके साथ थीं। गांधीजी प्यार से उन्हें ‘तूफानी’ कहा करते थे। वे तमाम कृषि आंदोलनों में शामिल थीं और बाद में आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन से भी जुड़ीं। साल 1946 में मालती चौधरी को भारत की संविधान सभा के सदस्य के रूप में चुना गया। आजादी के बाद भी उन्होंने पिछड़े वर्गों के लिए अपना संघर्ष जारी रखा। आपातकाल के दौरान उन्होंने तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार की नीतियों का खुलकर विरोध किया था, जिसकी वजह से उन्हें जेल में डाल दिया गया था।
राष्ट्र सेवा के लिए मालती को कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया, जिनमें बाल कल्याण के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार, जमनालाल बजाज पुरस्कार और उत्कल सेवा सम्मान समेत कई अन्य पुरस्कार शामिल हैं। साल 1997 में 93 साल की उम्र में संविधान निर्माण की इस नायिका का निधन हो गया।
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