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अक्षर ब्रह्म की लीला योगमाया के ब्रह्माण्ड योगमाया में होती हैं --पारब्रह्म अक्षरातीत के सत् अंग-अक्षर ब्रह्म के चार अंतः करण (मन, चित्, बुद्धि, अहंकार) हैं
अक्षर ब्रह्म के मन (अव्याकृत )के स्वप्न में मोह सागर में नारायण का स्वरूप प्रगट होता हैं जिन्हे क्षर पुरुष कहते हैं ।चौदह लोक ,आठ आवरण ,आदि नारायण महाशून्य सभी क्षर पुरुष के अंतर्गत हैं -जिस प्रकार नींद टूटने पर सपना टूट जाता हैं उसी प्रकार से अक्षर ब्रह्म के मन का स्वप्न टूटते ही सम्पूर्ण जगत महाप्रलय में लीन हो जाता हैं --अक्षर ब्रह्म के इसी अन्तः करण में ही आख़िरत की तीन बहिश्ते होंगी --
सबलिक ब्रह्म (चित्)-यहीं पर अव्वल की ब्रज व रास लीला व् महमदी बहिश्ते अखण्ड है
केवल ब्रह्म (बुद्धि)- केवल ब्रह्म बुद्धि का स्वरूप है। यहाँ पर अखण्ड रास खेली गई थी परन्तु सबलिकब्रह्म में अखण्ड हुई
सत् स्वरूप(अहंकार )- यह उनके अहंकार का स्वरूप है-आख़िरत की पहली दूसरी बहिश्त यहाँ होंगी उन जीवों की जिनपर ब्रह्म सृष्टियों और ईश्वर सृष्टि की सुरता आयीं
साभार ---श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ
सच्चिदानंद स्वरूप
क्षर ब्रह्मांड
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