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मुक्तिधन (31.7.2020)
‘मुक्तिधन’ मुंशी प्रेमचंद की इसी नाम से लिखी गयी कहानी का रेडियो नाट्य-रूपांतर है | यह कहानी है गाँव के एक किसान रहमान की, जो अपनी गाय और माँ से बहुत प्रेम करता है | भारी आर्थिक कष्ट के समय उसे अपनी गाय बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है | लोग उसकी गाय की अधिक क़ीमत भी लगाते हैं किन्तु वह अपनी गाय लाला दाऊदयाल को कम क़ीमत में बेच देता है | गाय को उनके घर तक पहुँचाने भी जाता है और उनको कहता है कि अपने नौकरों को कह दीजियेगा कि कभी गाय को नहीं डांटे और यह भी कहता है कि मजबूरी नहीं होती तो अपनी प्रिय गाय को अपने से कभी अलग नहीं करता | लाला दाऊदयाल को कम क़ीमत में गाय बेचने की वज़ह यह भी थी वो गाय को उसकी तरह ही रखेंगे | अधिक कीमत देनेवाले कसाई थे या उन्हें बेच देंगे गाय को मारने के लिए | अपनी गाय को उसके ख़रीदार के घर पहुंचा कर रहमान गाय से गले मिलकर लौट जाता है | विधि का विधान ऐसा होता है कि रहमान को कभी अपनी माँ की हज-यात्रा तो कभी और वज़ह से बार-बार रुपयों की ज़रूरत पड़ती है और उसे सूद पर लाला दाऊदयाल से ही हर बार रुपये लेने पड़ते हैं | क़र्ज़ बढ़ता जाता है और खेती ख़राब होने की वज़ह से रहमान पूरी रक़म नहीं चुका पाता है | नाटक अंत तक सुनिए | अंत बड़ा मार्मिक है | नाटक के अंत में लाला दाऊदयाल रहमान से कहता है कि तुम नहीं , मैं ही तुम्हारा क़र्ज़दार हूं, क्योंकि तुम्हारी गाय मेरे पास है और गाय ने क़र्ज़ के धन से अधिक दूध दिया है और बछड़े नफ़े में अलग।’ यह कथा मजबूरी का फायदा न उठाने की प्रेरणा देती है अपने पाले हुए पशुओं के प्रति प्रेम का सन्देश भी देती है ।
Title : MUKTIDHAN
Writer : Munshi Premchand
Adaptation : B.S.Bhatnagar
Director : Sushil Banerjee
Assistance in Production : Gopal Saxena
Artists : Baqar Mujtaba, Rajendra Verma, Raees Mirza, H.K.Vaishya, L.N.Bhardwaj, R.H.Chishti, Qari Mohammad Iliyas, Mumtaj Mirza,Jai Mehta, Lalita Shankar
(Refurbished by Sh.Vinod Kumar, Programme Executive, CDU,DG; AIR. This play was first broadcast on 14-08-84)
A presentation of Central Drama Unit, DG; AIR.