ब्रह्मा ज्ञान संमसेर हमारी दिव्य रुप तु हो जा हालताल सब मिट जाने अब निर्भय हो कर सो जा परदेश अमर लोग है सकल विश्व का राजा नवलजीत कहे हवा पहुंचे कोई गिरि पुरि का ध्वजा अवगुण गन सब दुश्मन का उडायकर ले लिया रंन माहि पंगा श्री गुरु से चिलखत ले लिया हाथ में विवेक ज्ञान समसेरा हाथ में रंगा रन द्रुशट सुद्ध हो जाये गा रंन मे के लडत शुर किया चंगा नवलजीत कहे मै घरस्थी नहीं गिरी पुरी संन्यासी नंगा