दुर्गा सप्तशती पाठ- 4 (संस्कृत ) - Durga Saptshati In Sanskrit Lyrics | Prem Parkash Dubey

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Ambey Bhakti

Ambey Bhakti

Күн бұрын

Пікірлер: 42
@mularamchoudhary6635
@mularamchoudhary6635 2 жыл бұрын
जय जय जगदम्बे भवानी परमेश्वरी आद्याशक्ति नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमो नम
@ShankarMallikMallik
@ShankarMallikMallik 12 күн бұрын
Jay maa durga
@artistshivangi267
@artistshivangi267 Жыл бұрын
अद्भुत ‌वाचन अभिभूत हूं।सटीक स्वर संधान। स्पष्ट उच्चारण। दैवीय अनुभूति। आभार।
@kajukavichoudhary7111
@kajukavichoudhary7111 12 күн бұрын
Jai Mata Di ❤❤
@nidhibhardwaj764
@nidhibhardwaj764 6 ай бұрын
जय माँ🙏🏻
@Stutishingh
@Stutishingh 7 күн бұрын
🙏🏻🙏🏻🌹🌹
@RajeshSingh-rk8pw
@RajeshSingh-rk8pw 12 күн бұрын
Jay maatade
@कविताभजनरागनी
@कविताभजनरागनी 2 жыл бұрын
शुद्ध उच्चारण , बहुत बढ़िया आचार्य जी
@priyarawat2673
@priyarawat2673 Ай бұрын
Jai mata ji ho 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
@SrinivasRao-gi5tg
@SrinivasRao-gi5tg 6 ай бұрын
बहोत ही सुंदर मैने अपना दुर्गा सप्तशती पाठ आपके शुद्ध संस्कृत उच्चारण के कारण ही कर पा रहें हैं।
@anilsingh8381
@anilsingh8381 Жыл бұрын
Kote kote naman❤
@sumanrani7448
@sumanrani7448 Жыл бұрын
Jay maadurga🌹🌹🙏🙏
@priyarawat2673
@priyarawat2673 Ай бұрын
Jai maa🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🍔
@mangaldasskhullarkhullarkh5404
@mangaldasskhullarkhullarkh5404 12 күн бұрын
Jai Mata rani di Jai 🎉❤
@sanskarsharma9264
@sanskarsharma9264 3 жыл бұрын
Jai mata di
@rishipalsingh6176
@rishipalsingh6176 6 ай бұрын
जय माता दी
@manojmanjarisethi2815
@manojmanjarisethi2815 2 жыл бұрын
Maa durga
@pankajgandhi7600
@pankajgandhi7600 3 жыл бұрын
अथ श्रीदुर्गासप्तशती चतुर्थोऽध्यायः इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति ॥ध्यानम्॥ ॐ कालाभ्राभां कटाक्षैररिकुलभयदां मौलिबद्धेन्दुरेखां शड्‌खं चक्रं कृपाणं त्रिशिखमपि करैरुद्वहन्तीं त्रिनेत्राम्। सिंहस्कन्धाधिरूढां त्रिभुवनमखिलं तेजसा पूरयन्तीं ध्यायेद् दुर्गां जयाख्यां त्रिदशपरिवृतां सेवितां सिद्धिकामैः॥ "ॐ" ऋषिरुवाच*॥१॥ शक्रादयः सुरगणा निहतेऽतिवीर्ये तस्मिन्दुरात्मनि सुरारिबले च देव्या। तां तुष्टुवुः प्रणतिनम्रशिरोधरांसा वाग्भिः प्रहर्षपुलकोद्‌गमचारुदेहाः॥२॥ देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या। तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां भक्त्या नताः स्म विदधातु शुभानि सा नः॥३॥ यस्याः प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्चम न हि वक्तुमलं बलं च। सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु॥४॥ या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः। श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम्॥५॥ किं वर्णयाम तव रूपमचिन्त्यमेतत् किं चातिवीर्यमसुरक्षयकारि भूरि। किं चाहवेषु चरितानि तवाद्भुतानि सर्वेषु देव्यसुरदेवगणादिकेषु॥६॥ हेतुः समस्तजगतां त्रिगुणापि दोषै- र्न ज्ञायसे हरिहरादिभिरप्यपारा। सर्वाश्रयाखिलमिदं जगदंशभूत- मव्याकृता हि परमा प्रकृतिस्त्वमाद्या॥७॥ यस्याः समस्तसुरता समुदीरणेन तृप्तिं प्रयाति सकलेषु मखेषु देवि। स्वाहासि वै पितृगणस्य च तृप्तिहेतु- रुच्चार्यसे त्वमत एव जनैः स्वधा च॥८॥ या मुक्तिहेतुरविचिन्त्यमहाव्रता त्व*- मभ्यस्यसे सुनियतेन्द्रियतत्त्वसारैः। मोक्षार्थिभिर्मुनिभिरस्तसमस्तदोषै- र्विद्यासि सा भगवती परमा हि देवि॥९॥ शब्दात्मिका सुविमलर्ग्यजुषां निधान- मुद्‌गीथरम्यपदपाठवतां च साम्नाम्। देवी त्रयी भगवती भवभावनाय वार्ता च सर्वजगतां परमार्तिहन्त्री॥१०॥ मेधासि देवि विदिताखिलशास्त्रसारा दुर्गासि दुर्गभवसागरनौरसङ्‌गा। श्रीः कैटभारिहृदयैककृताधिवासा गौरी त्वमेव शशिमौलिकृतप्रतिष्ठा॥११॥ ईषत्सहासममलं परिपूर्णचन्द्र- बिम्बानुकारि कनकोत्तमकान्तिकान्तम्। अत्यद्भुतं प्रहृतमात्तरुषा तथापि वक्त्रं विलोक्य सहसा महिषासुरेण॥१२॥ दृष्ट्‌वा तु देवि कुपितं भ्रुकुटीकराल- मुद्यच्छशाङ्‌कसदृशच्छवि यन्न सद्यः। प्राणान्मुमोच महिषस्तदतीव चित्रं कैर्जीव्यते हि कुपितान्तकदर्शनेन॥१३॥ देवि प्रसीद परमा भवती भवाय सद्यो विनाशयसि कोपवती कुलानि। विज्ञातमेतदधुनैव यदस्तमेत- न्नीतं बलं सुविपुलं महिषासुरस्य॥१४॥ ते सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां तेषां यशांसि न च सीदति धर्मवर्गः। धन्यास्त एव निभृतात्मजभृत्यदारा येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना॥१५॥ धर्म्याणि देवि सकलानि सदैव कर्मा- ण्यत्यादृतः प्रतिदिनं सुकृती करोति। स्वर्गं प्रयाति च ततो भवतीप्रसादा- ल्लोकत्रयेऽपि फलदा ननु देवि तेन॥१६॥ दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि। दारिद्र्यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता॥१७॥ एभिर्हतैर्जगदुपैति सुखं तथैते कुर्वन्तु नाम नरकाय चिराय पापम्। संग्राममृत्युमधिगम्य दिवं प्रयान्तु मत्वेति नूनमहितान् विनिहंसि देवि॥१८॥ दृष्ट्‌वैव किं न भवती प्रकरोति भस्म सर्वासुरानरिषु यत्प्रहिणोषि शस्त्रम्। लोकान् प्रयान्तु रिपवोऽपि हि शस्त्रपूता इत्थं मतिर्भवति तेष्वपि तेऽतिसाध्वी॥१९॥ खड्‌गप्रभानिकरविस्फुरणैस्तथोग्रैः शूलाग्रकान्तिनिवहेन दृशोऽसुराणाम्। यन्नागता विलयमंशुमदिन्दुखण्ड- योग्याननं तव विलोकयतां तदेतत्॥२०॥ 👇👇👇
@sunilkumarpandey9817
@sunilkumarpandey9817 2 жыл бұрын
Jay Mata Di
@khushitiwari1082
@khushitiwari1082 Жыл бұрын
जय माता दी 🙏🙏
@arpanasrivastava4428
@arpanasrivastava4428 2 жыл бұрын
Jay shree mataji
@krishu_jha_8
@krishu_jha_8 Жыл бұрын
Jay Mata di🙏
@swarnapatnaik7457
@swarnapatnaik7457 3 жыл бұрын
जय माता दी आचार्य जी 🙏🙏❣️मनिहारी शुध्द उच्चारण
@nidhibhardwaj764
@nidhibhardwaj764 6 ай бұрын
🙏🏻🌹
@pankajgandhi7600
@pankajgandhi7600 3 жыл бұрын
अथ श्रीदुर्गासप्तशती ॥ चतुर्थोऽध्यायः॥ इन्द्रादि देवताओं द्वारा देवी की स्तुति ॥ध्यानम्॥ सिद्धि की इच्छा रखनेवाले पुरुष जिनकी सेवा करते हैं तथा देवता जिन्हें सब ओर से घेरे रहते हैं , उन ‘जया ’ नामवाली दुर्गादेवी का ध्यान करे । उनके श्रीअंगों की आभा काले मेघ के समान श्याम है । वे अपने कटाक्षों से शत्रुसमूह को भय प्रदान करती हैं । उनके मस्तक पर आबद्ध चन्द्रमा की रेखा शोभा पाती है । वे अपने हाथों में शंख, चक्र , कृपाण और त्रिशूल धारण करती हैं । उनके तीन नेत्र हैं । वे सिंह के कंधेपर चढ़ी हुई हैं और अपने तेज से तीनों लोकोंको परिपूर्ण कर रही हैं । ऋषि कहते हैं - ॥१॥ अत्यन्त पराक्रमी दुरात्मा महिषासुर तथा उसकी दैत्य - सेना के देवी के हाथ से मारे जाने पर इन्द्र आदि देवता प्रणाम के लिये गर्दन तथा कंधे झुकाकर उन भगवती दुर्गा का उत्तम वचनों द्वारा स्तवन करने लगे । उस समय उनके सुन्दर अंगों में अत्यन्त हर्ष के कारण रोमांच हो आया था ॥२॥ देवता बोले- ‘सम्पूर्ण देवताओं की शक्ति का समुदाय ही जिनका स्वरूप है तथा जिन देवी ने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त कर रखा है , समस्त देवताओं और महर्षियों की पूजनीया उन जगदम्बा को हम भक्तिपूर्वक नमस्कार करते हैं ।वे हमलोगों का कल्याण करें ॥ ३॥ जिनके अनुपम प्रभाव और बलका वर्णन करने में भगवान् शेषनाग , ब्रह्माजी तथा महादेवजी भी समर्थ नहीं है , वे भगवती चण्डिका सम्पूर्ण जगत् का पालन एवं अशुभ भय का नाश करने का विचार करें ॥४॥ जो पुण्यात्माओं के घेरों में स्वयं ही लक्ष्मीरूप से, पापियों के यहाँ दरिद्रतारूप से, शुद्ध अन्त:करणवाले पुरुषों के ह्रदय में बुद्धिरूप से , सत्पुरुषों में श्रद्धारूप से तथा कुलीन मनुष्य में लज्जारूप से निवास करती हैं , उन आप भगवती दुर्गा को हम नमस्कार करते हैं । देवि ! आप सम्पूर्ण विश्वका पालन कीजिये ॥५॥ देवि ! आपके इस अचिन्त्य रूपका , असुरों का नाश करनेवाले भारी पराक्रम का तथा समस्त देवताओं और दैत्यों के समक्ष युद्ध में प्रकट किये हुए आपके अद्भूत चरित्रों का हम किस प्रकार वर्णन करें ॥६॥ आप सम्पूर्ण जगत् की उत्पत्ति में कारण हैं । आपमें सत्त्वगुण , रजोगुण और तमोगुण - ये तीनों गुण मौजूद हैं ; तो भी दोषों के साथ आपका संसर्ग नहीं जान पड़ता । भगवान् विष्णु और महादेवजी आदि देवता भी आपका पार नहीं पाते । आप ही सबका आश्रय हैं । यह समस्त जगत् आपका अंशभूत है ; क्योंकि आप सबकी आदिभूत अव्याकृता परा प्रकृति हैं ॥७॥ देवि ! सम्पूर्ण यज्ञों में जिसके उच्चारण से सब देवता तृप्ति लाभ करते हैं , वह स्वाहा आप ही हैं । इसके अतिरिक्त आप पितरों की भी तृप्तिका कारण हैं, अतएव सब लोग आपको स्वधा भी कहते हैं ॥८॥ देवि ! जो मोक्षकी प्राप्तिका साधन है , अचिन्त्य महाव्रत स्वरूपा है , समस्त दोषों से रहित , जितेन्द्रिय , तत्त्व को ही सार वस्तु माननेवाले तथा मोक्ष की अभिलाषा रखनेवाले मुनिजन जिसका अभ्यास करते हैं ॥९॥ आप शब्दरूपा हैं , अत्यन्त निर्मल ऋग्वेद , यजुर्वेद तथा उद्गीथ के मनोहर पदों के पाठ से युक्त सामवेद का भी आधार आप ही हैं । आप देवी , त्रयी (तीनों वेद ) और भगवती (छहों ऐश्वर्योंसे युक्त ) हैं । इस विश्वकी उत्पत्ति एवं पालनके लिये आप ही वार्ता ( खेती एवं आजीविका ) - के रूपमें प्रकट हुई हैं । आप सम्पूर्ण जगत् की घोर पीड़ाका नाश करनेवाली हैं ॥१०॥ देवि ! जिससे समस्त शास्त्रों के सारका ज्ञान होता है , वह मेधा शक्ति आप ही हैं । दुर्गम भवसागर से पार उतारनेवाली नौका रूप दुर्गादेवी भी आप ही हैं । आपकी कहीं भी आसक्ति नहीं है । कैटभ के शत्रु भगवान् विष्णु के वक्ष:स्थल में एकमात्र निवास करनेवाली भगवती लक्ष्मी तथा भगवान् चन्द्रशेखर द्वारा सम्मानित गौरी देवी भी आप ही हैं ॥११॥ 👇👇👇
@dhirendranathmisra2757
@dhirendranathmisra2757 3 жыл бұрын
Nicely sung
@vaaniklashivaniranjan3810
@vaaniklashivaniranjan3810 4 жыл бұрын
Melodious out of scope beautiful thank u for this
@irongamer390
@irongamer390 5 жыл бұрын
Super song
@irongamer390
@irongamer390 5 жыл бұрын
Jai ma
@pankajgandhi7600
@pankajgandhi7600 3 жыл бұрын
दुर्वृत्तवृत्तशमनं तव देवि शीलं रूपं तथैतदविचिन्त्यमतुल्यमन्यैः। वीर्यं च हन्तृ हृतदेवपराक्रमाणां वैरिष्वपि प्रकटितैव दया त्वयेत्थम्॥२१॥ केनोपमा भवतु तेऽस्य पराक्रमस्य रूपं च शत्रुभयकार्यतिहारि कुत्र। चित्ते कृपा समरनिष्ठुरता च दृष्टा त्वय्येव देवि वरदे भुवनत्रयेऽपि॥२२॥ त्रैलोक्यमेतदखिलं रिपुनाशनेन त्रातं त्वया समरमूर्धनि तेऽपि हत्वा। नीता दिवं रिपुगणा भयमप्यपास्त- मस्माकमुन्मदसुरारिभवं नमस्ते॥२३॥ शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्‌गेन चाम्बिके। घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्यानिःस्वनेन च॥२४॥ प्राच्यां रक्ष प्रतीच्यां च चण्डिके रक्ष दक्षिणे। भ्रामणेनात्मशूलस्य उत्तरस्यां तथेश्वरि॥२५॥ सौम्यानि यानि रूपाणि त्रैलोक्ये विचरन्ति ते। यानि चात्यर्थघोराणि तै रक्षास्मांस्तथा भुवम्॥२६॥ खड्‌गशूलगदादीनि यानि चास्त्राणी तेऽम्बिके। करपल्लवसङ्‌गीनि तैरस्मान् रक्ष सर्वतः॥२७॥ ऋषिरुवाच॥२८॥ एवं स्तुता सुरैर्दिव्यैः कुसुमैर्नन्दनोद्भवैः। अर्चिता जगतां धात्री तथा गन्धानुलेपनैः॥२९॥ भक्त्या समस्तैस्त्रिदशैर्दिव्यैर्धूपैस्तु* धूपिता। प्राह प्रसादसुमुखी समस्तान् प्रणतान् सुरान्॥३०॥ देव्युवाच॥३१॥ व्रियतां त्रिदशाः सर्वे यदस्मत्तोऽभिवाञ्छितम्*॥३२॥ देवा ऊचुः॥३३॥ भगवत्या कृतं सर्वं न किंचिदवशिष्यते॥३४॥ यदयं निहतः शत्रुरस्माकं महिषासुरः। यदि चापि वरो देयस्त्वयास्माकं महेश्वतरि॥३५॥ संस्मृता संस्मृता त्वं नो हिंसेथाः परमापदः। यश्च मर्त्यः स्तवैरेभिस्त्वां स्तोष्यत्यमलानने॥३६॥ तस्य वित्तर्द्धिविभवैर्धनदारादिसम्पदाम्। वृद्धयेऽस्मत्प्रसन्ना त्वं भवेथाः सर्वदाम्बिके॥३७॥ ऋषिरुवाच॥३८॥ इति प्रसादिता देवैर्जगतोऽर्थे तथाऽऽत्मनः। तथेत्युक्त्वा भद्रकाली बभूवान्तर्हिता नृप॥३९॥ इत्येतत्कथितं भूप सम्भूता सा यथा पुरा। देवी देवशरीरेभ्यो जगत्त्रयहितैषिणी॥४०॥ पुनश्चे गौरीदेहात्सा* समुद्भूता यथाभवत्। वधाय दुष्टदैत्यानां तथा शुम्भनिशुम्भयोः॥४१॥ रक्षणाय च लोकानां देवानामुपकारिणी। तच्छृणुष्व मयाऽऽख्यातं यथावत्कथयामि ते॥ह्रीं ॐ॥४२॥ इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे सावर्णिके मन्वन्तरे देवीमाहात्म्ये शक्रादिस्तुतिर्नाम चतुर्थोऽध्यायः॥४॥
@shashankshekher4141
@shashankshekher4141 6 жыл бұрын
जय माँ कामाख्या। धन्यवाद।
@pankajgandhi7600
@pankajgandhi7600 3 жыл бұрын
आपका मुख मन्द मुस्कान से सुशोभित , निर्मल , पूर्ण चन्द्रमा के बिम्ब का अनुकरण करनेवाला और उत्तम सुवर्ण की मनोहर कान्ति से कमनीय है ; तो भी उसे देखकर महिषासुर को क्रोध हुआ और सहसा उसने उस पर प्रहार कर दिया , यह बड़े आश्चर्य की बात है ॥१२॥ देवि ! वही मुख जब क्रोध से युक्त होनेपर उदयकाल के चन्द्रमा की भाँति लाल और तनी हुई भौंहों के कारण विकराल हो उठा , तब उसे देखकर जो महिषासुर के प्राण तुरंत नहीं निकल गये , यह उससे भी बढ़कर आश्चर्य की बात है ; क्योंकि क्रोध में भरे हुए यमराज को देखकर भला , कौन जीवित रह सकता है ? ॥१३॥ देवि ! आप प्रसन्न हों । परमात्मा स्वरूपा आपके प्रसन्न होनेपर जगत् का अभ्युदय होता है और क्रोध में भर जानेपर आप तत्काल ही कितने कुलों का सर्वनाश कर डालती हैं , यह बात अभी अनुभव में आयी है ; क्योंकि महिषासुर की यह विशाल सेना क्षणभर में आपके कोप से नष्ट हो गयी है ॥१४॥ सदा अभ्युदय प्रदान करनेवाली आप जिनपर प्रसन्न रहती हैं , वे ही देश में सम्मानित हैं , उन्हीं को धन और यशकी प्राप्ति होती है , उन्हीं का धर्म कभी शिथिल नहीं होता तथा वे ही अपने ह्रष्ट - पुष्ट स्त्री , पुत्र और भृत्यों के साथ धन्य माने जाते हैं ॥१५॥ देवि ! आपकी ही कृपा से पुण्यात्मा पुरुष प्रतिदिन अत्यन्त श्रद्धापूर्वक सदा सब प्रकार के धर्मानुकूल कर्म करता है और उसके प्रभाव से स्वर्गलोक में जाता है ; इसलिये आप तीनों लोकों में निश्चय ही मनोवांछित फल देनेवाली है ॥१६॥ माँ दुर्गे ! आप स्मरण करनेपर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरुषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं । दु:ख , दरिद्रता और भय हरनेवाली देवि ! आपके सिवा दूसरी कौन है , जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिये सदा दयार्द्र रहता हो ॥१७॥ देवि ! इन राक्षसों के मारने से संसार को सुख मिले तथा ये राक्षस चिरकाल तक नरक में रहने के लिये भले ही पाप करते रहे हों , इस समय संग्राम में मृत्युको प्राप्त होकर स्वर्गलोक में जायँ - निश्चय ही यही सोचकर आप शत्रुओंका वध करती हैं ॥१८॥ आप शत्रुओं पर शस्त्रों का प्रहार क्यों करती हैं ? समस्त असुरों को दृष्टिपातमात्र से ही भस्म क्यों नहीं कर देतीं ? इसमें एक रहस्य है । ये शत्रु भी हमारे शस्त्रों से पवित्र होकर उत्तम लोकों में जायँ - इस प्रकार उनके प्रति भी आपका विचार अत्यन्त उत्तम रहता है ॥१९॥ खड्गके तेज:पुंज की भयंकर दीप्ति से तथा आपके त्रिशूल के अग्रभाग की घनीभूत प्रभा से चौंधिया कर जो असुरों की आँखें फूट नहीं गयीं , उसमें कारण यही था कि वे मनोहर रश्मियों से युक्त चन्द्रमा के समान आनन्द प्रदान करनेवाले आपके इस सुन्दर मुखका दर्शन करते थे ॥२०॥ देवि ! आपका शील दुराचारियोंके बुरे बर्तावकी दूर करनेवाला है । साथ ही यह रूप ऐसा है , जो कभी चिन्तन में भी नहीं आ सकता और जिसकी कभी दूसरों से तुलना भी नहीं हो सकती ; तथा आपका बल और पराक्रम तो उन दैत्योंका भी नाश करनेवाला है , जो कभी देवताओं के पराक्रम को भी नष्ट कर चुके थे । इस प्रकार आपने शत्रुओं पर भी अपनी दया ही प्रकट की है ॥२१॥ वरदायिनी देवि ! आपके इस पराक्रम की किसके साथ तुलना हो सकती है तथा शत्रुओं को भय देनेवाला एवं अत्यन्त मनोहर ऐसा रूप भी आपके सिवा और कहाँ है ? ह्रदय में कृपा और युद्ध में निष्ठुरता - ये दोनों बातें तीनों लोकों के भीतर केवल आपमें ही देखी गयी हैं ॥२२॥ मात: ! आपने शत्रुओं का नाश करके इस समस्त त्रिलोकी की रक्षा की है । उन शत्रुओं को भी युद्धभूमि में मारकर स्वर्गलोक में पहुँचाया है तथा उन्मत्त दैत्यों से प्राप्त होनेवाले हमलोगों के भयको भी दूर कर दिया है, आपको हमारा नमस्कार है ॥२३॥ देवि ! आप शूल से हमारी रक्षा करें । अम्बिके ! आप खड्गसे भी हमारी रक्षा करें तथा घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार से भी हमलोगों की रक्षा करें ॥२४॥ 👇👇👇
@pankajgandhi7600
@pankajgandhi7600 3 жыл бұрын
चण्डिके ! पूर्व , पश्चिम और दक्षिण दिशा में आप हमारी रक्षा करें तथा ईश्वरि ! अपने त्रिशूल को घुमाकर आप उत्तर दिशा में भी हमारी रक्षा करें ॥२५॥ तीनों लोकों में आपके जो परम सुन्दर एवं अत्यन्त भयंकर रूप विचरते रहते हैं , उनके द्वारा भी आप हमारी तथा इस भूलोक की रक्षा करें ॥२६॥ अम्बिके ! आपके कर-पल्लवों में शोभा पानेवाले खड्ग , शूल और गदा आदि जो-जो अस्त्र हों , उन सबके द्वारा आप सब ओरसे हमलोगोंकी रक्षा करें ॥२७॥ ऋषि कहते हैं - ॥२८॥ इस प्रकार जब देवताओंने जगन्माता दुर्गाकी स्तुति की और नन्दन-वन के दिव्य पुष्पों एवं गन्ध-चन्दन आदि के द्वारा उनका पूजन किया , फिर सबने मिलकर जब भक्तिपूर्वक दिव्य धूपों की सुगन्ध निवेदन की , तब देवीने प्रसन्नवदन होकर प्रणाम करते हुए सब देवताओंसे कहा- ॥२९ - ३०॥ देवी बोलीं- ॥३१॥ देवताओं ! तुम सब लोग मुझसे जिस वस्तुकी अभिलाषा रखते हो , उसे माँगों ॥३२॥ देवता बोले- ॥३३॥ भगवती ने हमारी सब इच्छा पूर्ण कर दी , अब कुछ भी बाकी नहीं है ॥३४॥ क्योंकि हमारा यह शत्रु महिषासुर मारा गया । महेश्वरि ! इतनेपर भी यदि आप हमें और वर देना चाहती हैं ॥३५॥ तो हम जब - जब आपका स्मरण करें , तब - तब आप दर्शन देकर हमलोगों के महान संकट दूर कर दिया करें तथा प्रसन्नमुखी अम्बिके ! जो मनुष्य इस स्तोत्रों द्वारा आपकी स्तुति करे , उसे वित्त , समृद्धि और वैभव देनेके साथ ही उसकी धन और स्त्री आदि सम्पत्ति को भी बढ़ाने के लिये आप सदा हमपर प्रसन्न रहें ॥३६ - ३७॥ ऋषि कहते हैं- ॥३८॥ राजन् ! देवताओंने जब अपने तथा जगत् के कल्याणके लिये भद्रकाली देवी को इस प्रकार प्रसन्न किया , तब वे ‘तथास्तु’ कहकर वहीं अंतर्धान हो गयीं ॥३९॥ भूपाल ! इस प्रकार पूर्वकालमें तीनों लोकोंका हित चाहनेवाली देवी जिस प्रकार देवताओं के शरीरों से प्रकट हुई थीं ; वह सब कथा मैंने कह सुनायी ॥४०॥ अब पुन: देवताओं का उपकार करनेवाली वे देवी दुष्ट दैत्यों तथा शुम्भ - निशुम्भका वध करने एवं सब लोकोंकी रक्षा करनेके लिये गौरीदेवी के शरीर से जिस प्रकार प्रकट हुई थीं वह सब प्रसंग मेरे मुँह से सुनो । मैं उसका तुमसे यथावत् वर्णन करता हूँ ॥४१- ४२॥ इस प्रकार श्रीमार्कंडेयपुराणमें सावर्णिक मन्वन्तरकी कथाके अन्तर्गत देवीमहात्म्यमें ‘शक्रादिस्तुति’ नामक चौथा अध्याय पूरा हुआ ॥४॥
@jinaadhikariromanticgirl5620
@jinaadhikariromanticgirl5620 4 жыл бұрын
Thank you so much guru ji
@vikashMishraEntertainment
@vikashMishraEntertainment 6 жыл бұрын
Jai ma vindhyawasani
@saurabhmishra9995
@saurabhmishra9995 4 жыл бұрын
बहुत ही सुन्दर अनुपम पाठ👌👌👌👌 क्या आगे के अध्याय उपलब्ध नहीं हैं 🙏🙏🙏🙏🙏
@paridhiiagarwal20755
@paridhiiagarwal20755 4 жыл бұрын
Sir, aap shaloko ke no ke sath sunayen jab book me dekhte hai to sunne me problem hoti hai.
@anshujha3832
@anshujha3832 5 жыл бұрын
अध्याय 5,6,7,8,9,10,11,12,13 भी अपलोड करे जय माता दी
@रितेश-द4ट
@रितेश-द4ट 2 жыл бұрын
Aacharya ji mujhe sikhna hai durga saptsati ka paath karna kaise sambhav hai
@atultiwari9148
@atultiwari9148 3 жыл бұрын
जय माता दी
@hemantsingh1856
@hemantsingh1856 3 жыл бұрын
जय माता दी🙏
@saurabhpandey2970
@saurabhpandey2970 6 жыл бұрын
Jai ma
didn't manage to catch the ball #tiktok
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