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धमेख स्तूप पार्क सारनाथ में प्रातः भ्रमण के समय नागपुर से आए ये बौद्ध भिक्षु मिले। इन्होने अपना नाम सुचित्त बोधि भंते बताया। इन्होने अरिहंत के बारे में बताया। गूगल सर्च किया तो अरिहंत के बारे में यह जानकारी मिली...
थेरवाद बौद्ध धर्म,
में अर्हत (Sanskrit; Pali: अरहत या अरहन्त; " जो योग्य है"[1]) "पूर्ण मनुष्य"[1][2] को कहते हैं जिसने अस्तित्व की यथार्थ प्रकृति का अन्तर्ज्ञान प्राप्त कर लिया हो, और जिसे निर्वाण की प्राप्त हो चुकी हो।[2][1] अन्य बौद्ध परम्पराओं में इस शब्द का अब तक 'आत्मज्ञान के रास्ते पर उन्नत लोगों' (जो सम्भवतः पूर्ण बुद्धत्व की प्राप्ति न कर सके हों) के अर्थ में प्रयोग किया गया है, ।[3]
अर्हत् (संस्कृत) और अरिहंत (प्राकृत) पर्यायवाची शब्द हैं। अतिशय पूजा-सत्कार के योग्य होने से इन्हें (अर्ह योग्य होना) कहा गया है। मोहरूपी शत्रु (अरि) का अथवा आठ कर्मों का नाश करने के कारण ये 'अरिहंत' (अरि=शत्रु का नाश करनेवाला) कहे जाते हैं। अर्हत, सिद्ध से एक चरण पूर्व की स्थिति है।