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शत्रुओं का नाश करता है पवित्र नील सरस्वती स्तोत्र
नील सरस्वती स्तोत्र के नित्य पाठ से साधक की बुद्धि तीक्ष्ण होने के साथ ही उसे विद्या, ज्ञान, कवित्वशक्ति भी प्राप्त होने लगती है। प्रतिदिन इसका पाठ सम्भव न हो तो अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी को भी इसका पाठ
करने से इन साधनों की प्राप्ति होने लगती है। संकटकाल में, मूढ़ता की दशा में, भय की स्थिति में भी इसका पाठ करने से निश्चित ही कल्याण होता है। अधिक क्या कहूँ? आप स्वयं इस स्तोत्र के माहात्म्य से भली भाँति परिचित हैं, तभी तो इसे बोलना चाहते हैं।
स्तोत्र के अन्त में देवी को प्रणाम करके योनिमुद्रा दिखानी चाहिये। योनिमुद्रा के अभ्यास से साधक की बुद्धि तीक्ष्ण होने लगती है, मस्तिष्क में तुरन्त निर्णय करने की शक्ति आने लगती है। यदि स्तोत्र कण्ठस्थ हो जाये तो योनिमुद्रा की स्थिति में नीलसरस्वती स्तोत्र का पाठ करना अधिक श्रेयस्कर है। यह मुद्रा अनेक प्रकार से लगायी जाती है, लेकिन मुख्यरूप से जो प्रचलित और सरल हैं, उसे आप जान लें।
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