अगर ग़लत आदमी अपनी ग़लती समझ लें और मान लें तो स्वर्ग सा हो जाय मगर आज ऐसे कई मामले हो रहे हैं दूसरी बात यह है कि रिश्ते बराबर-बराबर के होते हैं थोड़ा सा ही अंतर ठीक होता है।तीसरी बात यह भी होती है कि कोई अपनी ग़लती को मानने की बजाए दूसरों पर जबरदस्ती थोपने की कोशिश करते हैं।