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lyrics
बारहमासी
माता अंजनी को जायो ल्यायो संजीवन लक्ष्मण कारण।।
बैशाखा म विनायक सिमरु, हंस चढ़ी महामाई,
गुरु अपने की करूँ र म विनती, हाथ जोड़ सिर नाई,
द्रोना गिरी संजीवन ल्याबा,आप चले बलदाई,
आज्ञा ले रघुनाथ की हृदय धरियो न धीर,
द्रोना गिरी संजीवन ल्याबा, आप चले महावीर
नीर नैना ढल आयो। ल्यायो संजीवन….॥1॥
जेठ ठेठ पहुँचे द्रोनागिरी, हनुमान उस दिन म,
जाकर अनुज दनुज रावण का,दीपक जो दिया वन म,
जड़ी य न पाई उसी तो घड़ी में रोष उठा लियो तन म,
रोष उठायो जोध न किनो क्रोध अपार,
द्रोना गिरी क देइ ह परिक्रमा,लिनो कर पर धार,
उठा लियो पर्वत क्षण म। ल्यायो संजीवन….॥2॥
आषाढ़ महीने पर्वत लेकर, हनुमत लंका म आवे,
भरत शत्रुघ्न बैठे अवनी पर, ओ कोई अचरज आवे,
असुरन से संग्राम मंडयो है, ओ कोई दूत पठावे,
असुरन दूत पठायो यो पर्वत ले ज्यावे,
ले पर्वत सेना पर डार, सुर नर मुनि दब जाय,
जानकर चाप चढ़ायो।ल्यायो संजीवन…..॥3॥
श्रावन दूत जान रावण को,भरत बाण छिटकायो,
लागत बाण पड्यो धरणी पर, राम नाम मुख आयो,
भरत भयो जद अचरज मन म, मे कोई भगत सतायो,
भगत सतायो राम को कीनू बहुत अकाज,
निकट जाय बलबीर स पुछे,पुछे भरत महाराज,
पवन सुत कहाँ स आयो।ल्यायो संजीवन…..॥4॥
भादव भरत करत मन करुणां,हनूमत क्यूँ घबराता,
कहो रघुबीर भ्रात कैसे लक्ष्मण,साँची कह द्यो बाता,
द्रोनागिरी को कांई करस्यो,इसको कहाँ ले जाता,
ठाकुर के दरबार में कमी काहे की नाय,
ऐसो पर्वत जबर बजरंग ज्यान कर पर धर ले ज्यावे,
धन माता अंजनी को जायो। ल्यायो संजीवन……॥5॥
आसोजां म सेना चढ़ गई,रामचंद्रजी की सारी,
नल और नील कपि सुग्रीवा,अंगद से अधिकारी,
देव अरु दानां लड़े है अमाना,मंड गयो युद्ध अभारी,
लंकपति से युद्ध मंडयो सिया सती के काज,
शक्ति बाण लग्यो लक्ष्मण क जद आयो महाराज,
दुखी थारो लक्ष्मण भ्राता।ल्यायो संजीवन…..॥6॥
कार्तिक बात सुनी हनुमत की,भरत फिकर मन माही,
ओ बंकट संकट लक्ष्मण को, काटेंगे रघुराई,
आओ पवनसुत बैठो बाण पर, पल म देउॅं पहुँचाई,
पर्वत सेती बाण प बेठ गये हनुमान,
नेछो राख्यो राम धणी को खेच्यों धनुष कमान,
पूगाय दियो रण म छिन म।ल्यायो संजीवन….॥7॥
मिंगसर महीने हरि के चरनां, हनुमत शीश नवायो,
ल्यो महाराज आज संजीवन, पर्वत सेती ल्यायो,
अष्टकमल स करूँ र म विनती, कष्ट घणेरो पायो,
संजीवन पिवन लगे लक्ष्मण कीनूं चेत,
उठ रघुवीर भ्रात स मिलिया बजरंग न रंग देत,
भीड़ म आडो आयो।ल्यायो संजीवन…..॥8॥
पोष होष उड़ रावण का, सूर नर मुनि सब हरख्या,
ढोली ढोल बजावत गावत, पुष्पन हो रही वर्षा,
दर्शन करके परसन हो गया,लक्ष्मण रामचंन्द्र का,
रामचंद्र के नाम से सागर शिला तिराय,
जुगपती खगपती सूरपति ज्यान अंजनी कँवर सराय,
डरे लंका पति सरिसा।ल्यायो संजीवन…..॥9॥
माघ धाक नही देवे दानां, अब क्यूँ नाथ नचीता,
लंकपती भारत म अड़ग्यो,किण विध् झगड़ो जिता,
बिन रावण का प्राण हरे बिना,संकट मंड गयो सीता,
सीता म संकट पड़्यो तुरंत सुनी रघुनाथ,
भक्त विभीषण बेग बुलाया, नृप रावण का भ्रात,
बातां करता दीन बित्या।ल्यायो संजीवन…..॥10॥
फाल्गुन दूत जान रघुवर, को नाश लंका को कीनों,
चुगल स चुगल हुई रावण की, रामचंद्र सूण लिनों,
फूट स टूट हुई गढ़ लंका, हनुमान रंग भीनों,
फूट बुरी संसार म जानत सकल जहान,
नार मंदोदर की लाज गमाई, नृप रावण का प्राण,
भेद विभीषण दिनों।ल्यायो संजीवन…..॥11॥
चैत्र म जीत हुई रामचंद्रजी की,गढ़ लंका के माही,
हनुमान के तेल चढ़ है ,घर घर बँटत है बधाई,
भगत विभीषण राज करत है, दास कवि जश गाई,
गावे बजावे हंस ताल दे क्षण म करदे निहाल,
कर जोड़े बृजलाल कहत है, धर बजरंग को ध्यान,
मान राख जग माही।ल्यायो संजीवन…….॥12॥
॥समाप्त॥