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bada dev HURANG NARAYAN KULLU YATRA 2024

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Western Himalayas

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Күн бұрын

हिमाचल प्रदेश में मंडी की चौहार घाटी देवी-देवताओं से भरी पड़ी है। यहां गांव-गांव में देवी-देवताओं के कई मंदिर बने हैं। चौहार घाटी में से एक हैं, जहां देवी-देवताओं के कई मंदिर हैं। यहां का विशेष स्थान है देव हुरंग नारायण। यहां इसे देवाधिदेव (बड़ा देव) के नाम से भी जाना जाता है। हुरंग नारायण को द्वापर युग के श्री कृष्ण भी माना जाता है। शिऊन गांव (तहसील पधर) हुरंग नारायण का प्रथम स्थान माना जाता है। कहा जाता है कि इस गांव में वह एक बालक के रूप में आए थे। तो आइए जानते हैं इनसे जुड़ी प्रचलित पौराणकि कथा-
घाटी से जुड़ी एक प्रचलित कथा
स्थानीय लोगों के अनुसार एक बार एक अनजान बालक शिऊन गांव में आया और गांव के एक स्थान पर बैठ गया। बालक को रास्ते में बैठा देखकर राह चलते दब गांव के लोग उससे नाम पूछते थे तो वह अपना नाम नारायण बता कर चुप हो जाता था।
शाम तक वह एक ही जगह बैठा रहा। जब रात होने लगी तब गांव के लोग उसके पास गए। पहले उससे उसका नाम पूछा तो वह नारायण कह कर चुप हो गया। लोगों ने उसके घर, गांव के बारे में पूछा तब भी वह बालकर चुप ही रहा। रात होते देख गांव के लोगों ने उससे पूछा कि क्या वह इस गांव में रहना पसंग करेगा।
बालर ने हां में सिर हिलाया था। वे लोग उसे गांव में ले आए और उसे एक बूढ़ी औरत के पास रहने की व्यवस्था कर दी। जाने से पहले गांव के लोगों ने बालकर से कहा कि वह गांव के सार पशुओं की जंगल में चराने ले जाया करें, जिसे बालक
ने खूशी खूशी मान लिया।
दूसरे दिन से नारायण सवेरे गांव के सारे पशुओं को चराने के लिए जंगल में ले जाने लगा। वह अपने पास एक छड़ी रखता था। गांव में पानी की समस्या थी। लोगों को दूर-दूर से पानी लाना पड़ता था परंतु नारायण को पशुओं को पानी पिलाने के लिए कोई समस्या नहीं थी।
जब पशु चरने के बाद पानी पीने के लिए आते तो नारायण अपनी छड़ी से जहां कहीं भी जमीन खोदते थे वहां पानी निकल जाता। सारे पशु वहां पानी पीकर अपनी प्यास बुझाते थे। फिर नारायण उसी पानी को ढंक देते थे और बहता पानी बंद हो जाता था।
गांव के चार व्यक्ति इसका पता लगाने के लिए छिप कर नारायण का पीछा करने लगे परंतु उन्हें एहसास हुआ कि नारायण साधारण व्यक्ति नहीं, देवता हैं और वे उनसे क्षमा मांगने के लिए उनके पास जाने लगे, तभी नारायण वहां से लोप हो गए। जल्दबाजी में नारायण वह पानी बंद करना भूल गए। वहां पानी बढ़ता गया और अब हिमरी गंगा बन गई है।
हुरंग गांव में बस गए
शिऊन गांव से लोप हो जाने के बाद नारायण हुरंग पहुंचे। वहां का शांत वातावरण पाकर वहीं बसने का निर्णय किया। हुरंग में स्थान लेने के बाद वह हुरंग नारायण बने और गांव को रक्षा की जिम्मेदारी ले ली। उनकी शक्ति तथा पुत्रदाता के रूप में पहचान बनी। यही बात मंडी राज दरबार में भी पहुंची। सन् 1534 से 1560 तक राजा साहेब सेन मंडी के राजा थे। उनकी पत्नी प्रकाश देवी धर्म-कर्म करने वाली रानी थी। उनकी संतान नहीं थी।
1547 मे राजा में हुरंग नारायण की पूजा-अर्चना की और रानी हुरंग नारायण के दरबार (मंदिर) गई। साल भर के भीतर रानी के पुत्र को जन्म दिया। पुत्र प्राप्त होने पर रानी ने देवता को चांदी का मोहरा भेंट किया जो उनके रथ में लग सकता है। हुरंग नारायण के मेले और उत्सव तो कई स्थानों पर होेते हैं लेकिन काहिक उत्सव का विशेष महत्व है। 5 वर्ष बाद यह उत्सव गांव सुराहण तथा देवता के मूल मंदिर में हुरंग में मनाया जाता है।

Пікірлер: 3
@virenderthakur1107
@virenderthakur1107 2 ай бұрын
Jai Ho Malik 🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾🙏🏾
@user-bg4ke6ed7e
@user-bg4ke6ed7e 2 ай бұрын
Jai ho king of mandi
@hp_wale9315
@hp_wale9315 2 ай бұрын
hurang narayan ji  bhubhu jot
14:55
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