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भारत के कई सैन्य इतिहासकारों की राय है कि अगर ब्रिगेडियर उस्मान की समय से पहले मौत न हो गई होती तो वो शायद भारत के पहले मुस्लिम थल सेनाध्यक्ष होते. एक कहावत है कि ईश्वर जिसे चाहता है उसे जल्दी अपने पास बुला लेता है. बहादुरों की बहुत कम लंबी आयु होती है. ब्रिगेडियर उस्मान के साथ भी ऐसा ही था. जब उन्होंने अपने देश के लिए अपनी जान दी तो उनके 36वें जन्मदिन में 12 दिन बाकी थे. लेकिन अपने छोटे से जीवनकाल में उन्होंने वो सब हासिल कर लिया जिसको बहुत से लोग उनसे दोहरा जी कर भी नहीं पा पाते हैं. वो शायद अकेले भारतीय सैनिक थे जिनके सिर पर पाकिस्तान ने 50,000 रुपए का ईनाम रखा था जो उस ज़माने में बहुत बड़ी रक़म हुआ करती थी. 1948 में नौशेरा का लड़ाई के बाद उन्हें 'नौशेरा का शेर' कहा जाने लगा था.
विवेचना प्रस्तुति: रेहान फ़ज़ल
वीडियो एडिटिंग: देबलिन रॉय
ऑडियो मिक्सिंग: अजीत सारथी
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