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भारतीय सेना को नेतृत्व प्रदान करने की बात आती है तो कोडांदेरा मदप्पा करियप्पा का नाम सबसे पहले लिया जाता है. वो भारतीय सेना के पहले कमांडर इन चीफ़ थे. उनको 'किपर' के नाम से भी पुकारा जाता है. कहा जाता है कि जब वो फ़तेहगढ़ में तैनात थे तो एक ब्रिटिश अफ़सर की पत्नी को उनका नाम लेने में बहुत दिक्कत होती थी. इसलिए उन्होंने उन्हें 'किपर' पुकारना शुरू कर दिया. 1942 में करियप्पा लेफ़्टिनेंट कर्नल का पद पाने वाले पहले भारतीय अफ़सर बने. 1944 में उन्हें ब्रिगेडियर बनाया गया और बन्नू फ़्रंटियर ब्रिगेड को कमांडर के तौर पर तैनात किया गया. फ़ील्डमार्शल करियप्पा की जीवनी लिखने वाले मेजर जनरल वी के सिंह बताते हैं, "उन दिनों एक गाँव से गुज़रते हुए करियप्पा ने देखा कि कुछ पठान औरतें अपने सिर पर पानी से भरे बड़े बड़े बर्तन ले कर जा रही हैं." "पूछताछ के बाद पता चला कि उन्हें रोज़ चार मील दूर दूसरे गाँव से पानी लेने जाना पड़ता है. करियप्पा ने तुरंत उनके गाँव में कुँआ खुदवाने का आदेश दिया. पठान उनके इस काम से इतना खुश हुए कि उन्होंने उन्हें 'ख़लीफ़ा' कहना शुरू कर दिया." रेहान फ़ज़ल की विवेचना.
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