"न माना था कल, तो फिर क्यूँ आज माना ? " गुरुवर कृपया दास की विनय पर ध्यान दें ! आप से ही सुना है कि "कुपुत्रो जायते क्वचिदपि कुमाता न भवति " कुन्ती माँ ने जब राज छिपाया तब भी कर्ण से खरी-खोटी सुनना पड़ा, और कर्ण के मारे जाने की पीड़ा से व्यथित होकर युधिष्ठिर को राज बता दिया तब भी श्राप ही मिला | न राज छिपाने में भलाई और न बताने में | बिधि कृत सृजी नारि जग माहीं |पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं || श्री कृष्ण और पितामह भी तो कर्ण के बारे में सच्चाई जानते थे, लेकिन कभी कुन्ती को दोषी नहीं ठहराया वरन सदा कुन्ती को सम्मान दिया | लेकिन लानत है कुन्ती के पुत्रों को | दोषु देइ जननिहिं जड़ तेई |जे गुरु साधु सभा नहिं सेई || यह बात राम जी ने सिर्फ कैकेयी के लिए ही नहीं कही बल्कि समस्त मात्रशक्ति के लिए कही है |