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भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन दो भगवान!
Watch the video song of 'Darshan Do Bhagwaan' here - • दर्शन दो भगवान | Darsh...
संसार में यदि मनुष्य को कर्म के साथ धर्म के सही सामंजस्य को समझना हो तो इसके लिए श्रीमद् भगवत गीता से बड़ा ग्रंथ नहीं हो सकता। यह ग्रंथ दिव्य है इसीलिए विश्व में सनातन धर्म के अलावा अन्य धर्मों को मानने वाले मनुष्य भी श्री मद् भगवत गीता और श्री कृष्ण के अनुयायी है। सनातन धर्म में श्री भगवान कृष्ण को सोलह कलाओं से पूर्ण अवतार माना गया है। मानव जीवन से जुड़े सभी प्रश्नो का उत्तर आपको श्रीकृष्ण के जीवन से मिल सकता है। श्री भगवत् गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद व उपदेशों का संकलन है। इन उपदेशों को आप अपने जीवन में समाहित कर परमात्मा से जुड़ सकते है। “तिलक” अपने संकलन “दिव्य कथाएं” के इस चरण में श्री कृष्ण से जुड़े प्रसंगों को आपके समक्ष प्रस्तुत करेगा। भक्ति भाव से इनका आनन्द लीजिये और तिलक से जुड़े रहिये।
गुरु सांदिपनि आगे की कथा सुनाते हुए बताते है कि हिरण्यकश्यप ब्रह्मा जी से मिले वरदान की शक्ति से तीनों लोक को समस्त प्राणियों को अपने आगे नतमस्तक कर देता है, लेकिन उसका स्वयं का पांच वर्ष का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु की भक्ति में सदा लीन रहता था। इस बात पता चलने पर हिरण्यकश्यप प्रह्लाद को मृत्यु दण्ड का भय दिखाता है, तो प्रह्लाद कहता है कि उस पर श्री हरि की कृपा है, उसका कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ सकता है और वह हिरण्यकश्यप को भी श्री हरि की शरण में जाने के लिए कहता है, जिससे क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप अपने सैनिकों को प्रह्लाद की हत्या करने के लिए कहता है। जब सैनिकों के अस्त्र प्रह्लाद का शरीर पर एक खरोंच भी नहीं पहुंचा पाते है और तब वे हिरण्यकश्यप के आदेश पर प्रह्लाद को ऊंचे पहाड़ से नीचे फेंक कर मारने का प्रयास करते है, लेकिन गिरते हुए प्रह्लाद को श्री हरि अपने हाथों से थाम लेते है। प्रह्लाद को मायावी समझ कर हिरण्यकश्यप की बहन होलिका जिसे ब्रह्मा जी से अग्नि में भी सुरक्षित रहने का वरदान मिला हुआ था, वह प्रह्लाद को मारने के लिए जलती हुई लकड़ियों पर बैठ जाती है, जिसे श्री हरि के प्रभाव से प्रह्लाद बच जाता है और होलिका भस्म जाती है। इस घटना से हिरण्यकश्यप का क्रोध सातवें आकाश तक पहुंच जाता है और प्रह्लाद से पूछता है कि श्री हरि कहाँ है। प्रह्लाद कहता है कि कण-कण में श्री हरि विद्यमान है, सामने खंबे में भी। हिरण्यकश्यप अपनी गदा से खंबे पर प्रहार करता है, खंबे के टूटते ही भगवान विष्णु नरसिंह के अवतार में प्रकट होते है और अपनी जांधो पर लिटा कर हिरण्यकश्यप का पेट चीर कर उसका वध कर देते है। श्री हरि को नरसिंह अवतार को देख कर देवताओं सहित सभी उनकी आरती करने लगते है।
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