Рет қаралды 22
#bhagwadgeeta #gitagyan #gita #mahabharat #bhaktihriday
mahabharatkemaharathi/gitagyan/bhagwad gita/yatharoop geeta/ yatharoop gita/ shrimad bhagwat geeta yatharoop/ bhagavad gita yatharoop/ gita yatharoop
सञ्जय उवाच।
दृष्ट्वा तु पाण्डवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा
आचार्यमुपसङ्गम्य राजा वचनमब्रवीत्
संजय ने कहा: हे राजन, पांडु के पुत्रों द्वारा सैन्य
संरचना में व्यवस्थित सेना को देखने के बाद, राजा
दुर्योधन अपने गुरु द्रोणाचार्य के पास गए और ये कहा
धृतराष्ट्र जन्म से ही अन्धा था. दुर्भाग्यवश वह
आध्यात्मिक दृष्टि से भी वंचित था। वाह ये भी
जानता था कि उसके समान उसके पुत्र भी धर्म
के मामले में अंधे हैं और उसको विश्वास था कि
पांडवो के साथ कभी भी समझौता नहीं कर
पाएंगे क्यूंकि पांचो पांडव जनम से ही पवित्र थे.
फिर भी उसको तीर्थस्थान के प्रभाव के विषय
में सन्देह था। इसली संजय युद्धभूमि की स्थिति
के विषय में उनके प्रश्न के मंतव्य को समाज गया।
अत: वाह निरश राजा को प्रोत्साहन देना चाह रहा था
संजय ने धृतराष्ट्र को विश्वास दिलाया कि
उसके पुत्र पवित्र स्थान के प्रभाव में किसी
प्रकार का समझौता करना नहीं चाह रहे हैं।
उसने राजा को बताया कि उसका पुत्र
दुर्योधन पांडवो की सेना को देखकर, तूरंत
अपने सेनापति द्रोणाचार्य को वास्तविक
स्थिति से अवगत करा रहा है
यहाँ पर दुर्योधन को राजा कहकर सम्बोधित
किया गया है तो भी स्थिति की गंभीरता के
कारण उसे सेनापति के पास जाना पड़ा
यूं तो दुर्योधन, राजनीति बनाने के लिए पूरा
उपयुक्त है लेकिन जब उसके पांडवो की
व्यू रचना देखी तो उसका ये कूट नीतिक
व्यवहार उसका भय छुपा नहीं पाया
भगवत गीता यथारूप में द्रोणाचार्य को
सेना पति बताया है, पर कुछ गीता के
संस्करणों में पितामह भीष्म को भी सेना
पति बताया गया है और कुछ में दोनों
को ही सेना पति का दर्ज़ा दिया गया है,
तो स्पष्ट रूप से ये नहीं बताया जा सकता है कि
असल में सेना पति पितामह भीष्म थे या
गुरु द्रोणाचार्य,अथवा दोनों