Рет қаралды 305
भाग बड़ौ वृन्दावन पायौ।
जा रज कौं सुर नर मुनि वंछित विधि संकर सिर नायौ॥ [1]
बहुतक जुग या रज बिनु बीते जन्म जन्म डहकायौ।
सो रज अब कृपा करि दीनी अभै निसान बजायौ॥ [2]
आइ मिल्यौ परिवार आपने हरि हँसि कंठ लगायौ।
स्यामा स्यामा जू बिहरत दोऊ सखी समाज मिलायौ॥ [3]
सोग संताप करौ मति कोई दाव भलौ बनि आयौ।
श्रीरसिकबिहारी की गति पाई धनि धनि लोक कहायौ॥ [4]