Рет қаралды 1,121
भज मन भिक्खु स्याम्....
लय : फूल्यो फूल्यो फिरे.....
रचयिता : श्रमण सागर
भज मन भिखू स्याम, भिखू स्याम, विघन हरै आनन्द करे,
सांवरियै रै मंगल शरणै, परबारा सै काम सरै।
भज मन भिखू स्याम, भिखू स्याम, नांव लियां दुख दूर टरै ।। स्थायी ।।
कळजुग रो ओ कल्पवृक्ष है, ठंडी छांव सनूरी- अरे हां...
चिंतामणी-कामित फल दाता, राख आसथा पूरी - अरे हां...
ओ अचूक अनुभूत मंत्र है, बिगड़ी गति मति स्थिति सुधरै।।1।।
रोग-शोक में दुख-विजोग में, चित पर चोट करारी - लागज्या....
डाकण-शाकण भूत-प्रेत जद, लगै न कोई कारी- अरे हां...
चढज्या ज्योत-छोत झट उतरै, जो बाबलियै ने सिंवरै ॥ 2 ॥
नो- व्यंजन स्वर मिलकर भिखू स्याम नाम निर्मायो अरे हां...
कुण जाणै किण पुल में दीपां, मां ओ नांव कढायो- अरे हां...
तंत्र योग में गणित - शास्त्र में, नो को आंक अखंडित रै।।3।।
सहज योग ऊर्जा-प्रयोग में, तन छोड्यो सिरियारी - स्वामीजी...
आज समाधि स्थल पर घूमै, तेज वलय जयकारी - अरे हां...
पाखंड पापाचार कल्पना, करै अज्ञ कई जीभ झरै || 4 ||
नांव स्वाम रो ले हिन्दूजी, करी आंख री कारी - हेमरी...
तपसी भागचन्दजी सरीखा, नैया पार उतारी - संघ में '
ओ सिरियारी- जागरण 'सागर'' परिषद देख्या हियो ठरै।।5।।