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भक्तामर सर्व रोग नाशक
भक्तामर स्तोत्र के श्लोक नंबर 17 , प्रतिदिन 27बार उच्चारण सहित,
रिद्धि सिद्धि मंत्र सहित आपकी सुविधा के अनुसार
इस श्लोक का श्रद्धा से मनन करने से कई समस्याओं से आराम मिलता है।
#पेट से संबंधित समस्या।
#Scatica संबंधी।
#जोड़ो का दर्द।
#गतिया।
#कब्ज।
#कमर दर्द।
#घुटने में दर्द या knee replacement।
मूत्र संबंधी ,पेशाब में जलन,संक्रमण,अत्यधिक मूत्र,संयम ना रहना, यूरिन infections। #बच्चों का बिस्तर गीला कर देना।
#Protaste संबंधी
#किडनी और किडनी से संबंधित समस्याएं
#डाइबिटीज
#अपेंडिक्स
#लिवर और लिवर से संबंधित समस्याएं
#डायलिसिस
#गाल bleeder और उसमे पथरी
#अल्सर
#हाई ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने
#मणिपुर चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र,, और मूलाधार चक्र से संबंधित समस्याओं के निरवारण और चक्रों को संतुलित करने में चमत्कारिक रूप से लाभदायक है
इस श्लोक का प्रतिदिन27बार उच्चारण 21दिनों तक करें।और साथ ही साथ इसके द्वारा मंतित्र जल का सेवन करने से पेट से यह संबंधित समस्याएं और वायू शूल की समस्याएं दूर हो जाती हैं
यहां पर आपकी सुविधा के अनुसार 27 बार उच्चारण क्या गया है ताकि श्लोक को पढ़ने में कोई त्रुटि ना रहे
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• भक्तामर स्तोत्र श्लोक ...
भक्तामर स्तोत्र की रचना आचार्य मानतुंगजी ने की थी। इस स्तोत्र का दूसरा नाम आदिनाथ स्तोत्र भी है। यह संस्कृत में लिखा गया है तथा प्रथम शब्द ‘भक्तामर’ होने के कारण ही इस स्तोत्र का नाम ‘भक्तामर स्तोत्र’ पड़ गया।
भक्तामर स्तोत्र का जैन धर्म में बडा महत्व है। आचार्य मानतुंग का लिखा भक्तामर स्तोत्र सभी जैन परंपराओं में सबसे लोकप्रिय संस्कृत प्रार्थना है।
इस स्तोत्र के बारे में कई किंवदंतियाँ हैं। इसमें सबसे प्रसिद्ध किदवंती यह है कि आचार्य मानतुंग को जब राजा भोज ने जेल में बंद करवा दिया था। और उस जेल के 48 दरवाजे थे जिन पर 48 मजबूत ताले लगे हुए थे। तब आचार्य मानतुंग ने भक्तामर स्तोत्र की रचना की तथा हर श्लोक की रचना ताला टूटता गया। इस तरह 48 शलोको पर 48 ताले टूट गए।
मंत्र शक्ति में आस्था रखने वालो के लिए यह एक दिव्य स्तोत्र है। इसका नियमित पाठ करने से मन में शांति का अनुभव होता है व सुख समृद्धि व वैभव की प्राप्ति होती है। यह माना जाता है कि इस स्तोत्र में भक्ति भाव की इतनी सर्वोच्चता है कि यदि आपने सच्चे मन से इसका पाठ किया तो आपको साक्षात ईश्वर की अनुभति होती है।
भक्तामर स्तोत्र में 48 श्लोक हैं। हर श्लोक में मंत्र शक्ति निहित है। इसके 48 के 48 श्लोकों में ‘म’, ‘न’, ‘त’ व ‘र’ ये 4 अक्षर पाए जाते है
भक्तामर स्तोत्र का अब तक लगभग 130 बार अनुवाद हो चुका है। बड़े-बड़े धार्मिक गुरु चाहे वो हिन्दू धर्म के हों, वे भी भक्तामर स्तोत्र की शक्ति को मानते हैं तथा मानते हैं कि भक्तामर स्तोत्र जैसा कोई स्तोत्र नहीं। अपने आप में बहुत शक्तिशाली होने के कारण यह स्तोत्र बहुत ज्यादा प्रसिद्ध हुआ। यह स्तोत्र संसार का इकलौता स्तोत्र है जिसका इतनी बार अनुवाद हुआ, जो कि इस स्तोत्र के प्रसिद्ध होने को दर्शाता है। मंत्र थैरेपी में भी इसका उपयोग विदेशों में होता है, इसके भी प्रमाण हैं।
भक्तामर स्तोत्र के पढ़ने का कोई एक निश्चित नियम नहीं है। भक्तामर स्तोत्र को किसी भी समय प्रात:, दोपहर, सायंकाल या रात में कभी भी पढ़ा जा सकता है। इसकी कोई समयसीमा निश्चित नहीं है, क्योंकि ये सिर्फ भक्ति प्रधान स्तोत्र हैं जिसमें भगवान की स्तुति है। धुन तथा समय का प्रभाव अलग-अलग होता है।हमआपके साथ साझा करते हैं
काव्य 17 .
ऋद्धि- ‘‘ऊँ हृीं अर्हं णमो महानिमित्त-कुसलाणं।’’
मंत्र - ‘‘ऊँ णमो णमिऊण अट्ठे मट्ठे क्षुद्र विधट्ठे क्षुद्रपीड़ां जठरपीड़ां भंजय-भंजय सर्वीपड़ां सर्वरोग-निवारणं कुरू कुरू स्वाह।’’
‘‘ऊँ णमो अजित शत्रु पराजयं कुरू कुरू स्वाहा।’’
भक्तामर स्तोत्र का प्रसिद्ध तथा सर्वसिद्धिदायक महामंत्र है- ‘ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं अर्हं श्री वृषभनाथतीर्थंकराय् नम:।’
48 काव्यों के 48 विशेष मंत्र भी हैं
भक्तामर स्तोत्र का प्रतिदिन आराधन कर धर्मध्यान कर जीवन में सुख-शांति का अनुभव करें। इस मैसेज को जितना ज्यादा जैन ग्रुप को भेजोगे, भगवान आपकी हर मनोकामना पूर्ण करेगा।
भक्तामर स्तोत्र श्लोक नो 17 पार्ट 1
• भक्तामर स्तोत्र श्लोक ...