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आचार्य विशूद्ध सागर द्वारा आज आचार्य शांतिसागर जी महराज जी की पुण्य तिथि के लिए उदबोधन
सुनिए कितने आचार्यो की परंपरा के देश मे सभी साधु है
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पहले के समय में जब पहले मुनियो के आहार कराने के लिए भट्टारको को सिक्का (धन)देने पड़ते थे जहाँ भट्टारक जी बोले वहां जाना पड़ेगा आहार के लिए लेकिन आचार्य शांति सागर जी ने यह स्वीकार नहीं किया उन्होंने आहार के बाद कभी भी एक पैसा नहीं माँगा और उन्होंने ये भी नहीं कहा जहां11 लाख मिले, करोड़ मिले वही आहार लेने जाये उहोंने इस चर्या को कभी नहीं स्वीकारा बल्कि अपनी चर्या से सबको प्रभावित किया।।
जो मुनि यह कहते है मैं शांतिसागर की परंपरा के हूँ
👌 *हे मित्र !!शांतिसागर के नाम से उनकी परंपरा नही चलेगी उनके जैसी साधना और चर्या का पालन करके उनकी परंपरा चलेगी।।*👌
💐 मान के शिखर पर चढ़ जाना हे मानवों !! बहुत सरल है लेकिन मान से उतर कर के संयम की शुद्धि में जाना बहुत कठिन है।।