चौधरी मुंशी राम जांडली जीवन परिचय Chaudhari munshiram ki jivani Haryanvi Kavi munshiram kaviyon ki

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चौधरी मुंशी राम जांडली जीवन परिचय Chaudhari munshiram ki jivani Haryanvi Kavi munshiram kaviyon ki
चौधरी मुंशी राम
आज़ाद कवि चौधरी मुंशी राम का जन्म 26 मार्च 1915 को गांव जंडली (छोटी जांडली), जिला फतेहाबाद (जो उस समय जिला हिसार में था) में एक किसान चौधरी धारी राम के घर हुआ। उनकी माता श्री का नाम शान्ति देवी था। उनकी प्रारम्भिक स्तर की शिक्षा उन्ही के पैतृक गाँव मे बाबा पंचमगिरी धाम के अन्दर हुयी। यहाँ उन्होंने चौथी कक्षा तक उर्दू की पढ़ाई की। गांव व दूर-दराज़ के क्षेत्र में कोई शिक्षण संस्थान ना होने के कारण वे आगे अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सके अपने पिता के साथ खेतों में हाथ बटाने लगे। इसी दौरान वे मनोरंजन के साधनों की तरफ आकर्षित होते हुए संगीत कला व हरियाणवी लोकसाहित्य की ओर मुड़ गए। शुरुआत मे तो मुंशीराम जी ने श्रृंगार-प्रधान रस की ही रचना की। अपने ही गाँव निवासी मान्य हरिश्चंद्रनाथ के सम्पर्क में आने पर व उनके विचारों एवं भावनाओं से प्रेरित होकर अंत मे उन्ही को उन्होंने अपना गुरु धारण कर लिया।
हरिश्चंद्र नाथ स्वयं वैद्य होने के साथ-साथ योग के भी ज्ञाता थे। दूसरी तरफ गुरु हरिश्चन्द्रनाथ एक ग़दर पार्टी के सदस्य भी थे, जिन्होंने अपने ही गाँव के दो युवकों को महान क्रांतिकारी सुभाष चन्द्र बोस की आई.एन.ऐ. सेना मे भी भर्ती करवाया था। फिर उस समय गुरु हरिश्चंद्र नाथ हमेशा अपने आसपास के क्षेत्रो मे आजादी की भावना का प्रचार प्रसार कर रहे थे। अपने गुरु की शरण मे आने से पहले चौ. मुंशीराम अपने मनोरंजन हेतु सिर्फ अपनी श्रृंगार रस की रचनाओं का ही गायन करते थे। फिर बाद मे गुरु हरिश्चंद्र नाथ ने अपने शिष्य मुंशीराम की लगन व श्रद्धा और प्रतिभा को देखते हुए इनकी जीवन धारणा को सामाजिक कार्यों और देशप्रेम की ओर मोड़ दिया, जो जीवनभर प्रज्वलित रही। गुरु हरिश्चंद्र नाथ का देहांत शिष्य मुंशीराम के देहांत के काफी लम्बे अर्से बाद ससन 1993 मे हुआ। इसीलिए वे अपने शिष्य मुंशीराम से जुडी हुई अनेकों यादों दोहराया करते थे।
चौ. मुंशीराम की आवाज बहुत ही सुरीली थी जिसके कारण उनके कार्यक्रम दूर-दराज के क्षेत्रों तक सुने जाते थे। फिर मुंशीराम जी के एक पारिवारिक सदस्य चिरंजीलाल ने बताया कि उनके दो विवाह हुए थे, जिनमे मे से उनकी पहली पत्नी रजनी देवी का कुछ समय पश्चात् निधन हो गया था। उसके बाद फिर चौ. मुंशीराम ने अपनी पहली पत्नी देहांत के बाद पारिवारिक अटकलों से उभरते हुए एक बार अपने ही गाँव मे कलामंच पर अपना कला-प्रदर्शन पुनः प्रारंभ किया तो गाँव के ही कुछ लोगों ने उनका मजाक उड़ाते तो मुंशीराम जी का अल्प जीवन सम्पूर्णतः ही संघर्षशील रहा है और विपतियों की मकड़ीयों ने हमेशा अपने जाल मे घेरे रखा, क्यूंकि एक तो आवश्यक संसाधनों की कमी, दूसरी आजादी के आन्दोलनों का संघर्षशील दौर और दूसरी तरफ गृहस्थ आश्रम की विपरीत परिस्थितियों के संकटमय बादल हमेंशा घनघोर घटा बनकर छाये रहे तथा अंत मे वे फिर एक झूठे आरोपों के मुक़दमे फांस लिए गए। उसके बाद तो फिर एक प्रकार से झूठे मुक़दमे ने उनकी जीवन-लीला को विराम देने मे अहम भूमिका निभाई थी, क्यूंकि इन्ही के पारिवारिक सदस्य श्री रामकिशन से ज्ञात हुआ कि उन्हें एक साजिशी तौर पर एक असत्य के जाल मे फंसाकर झूठे मुकदमों के घेरे मे घेर लिया। उसके बाद फिर झूठी गवाही के चक्रव्यूह से निकलने के लिए सभी गवाहों से बारम्बार विशेष अनुरोध किया गया, लेकिन उन्होंने चौ. मुंशीराम के प्रति कभी भी सहमती नहीं दिखाई। फिर अपने न्याय के अंतिम चरणों मे उनसे उनकी अंतिम इच्छा पूछने पर चौ. मुंशीराम ने तीनों न्यायधीशों-जुगल किशोर आजाद एवं दो अंग्रेजी जजों के सामने अपने आप को निर्दोष साबित करने के लिए अपनी जन्मजात व निरंतर अभ्यास से बहुमुखी प्रतिभा का साक्ष्य देते हुए अपनी अदभुत कला द्वारा एक ऐसी प्रमाणिक व प्रेरणादायक रचना का बखान किया कि उस न्यायालय के जज पर ऐसा सकारात्मक प्रभाव पड़ा कि उसको चौ. मुंशीराम के न्यायसंगत मुक़दमे पर अपनी कलम को वही विराम देना पड़ा, जिससे विरोधियों के चक्षु-कपाट खुले के खुले रह गए। इसीलिए इसी मौके की उनकी एक रचना इस प्रकार प्रस्तुत है कि -
इस प्रकार इस रचना की चारों कली सुनके और उसकी दूरदर्शिता देखके चौ. मुंशीराम को उन जजों ने उसी समय बरी कर दिया। उसके बावजूद मुकदमा, पेशी, जेल, पुलिस, गृहस्थ विपदा आदि की मझदार मे फंसे हुए भंवर सैलानी के रूप मे देशभक्त चौ. मुंशीराम को अपने जीवन-तराजू के पलड़े मे बैठकर और भी महंगी कीमत चुकानी पड़ी और वो दूसरा अत्यधिक भारी पलड़ा था-तपेदिक का लाईलाज रोग। इस प्रकार मात्र 35 वर्ष की अल्पायु मे जनवरी-1950 को ये वैतरणी नदी को पार करते हुए उस निधि के बन्धनों से मुक्त हो गए और एक महान कवि के रूप मे अपने लोक साहित्य के स्वर्णिम अक्षरों को हमारी आत्माओं मे चित्रित कर गये।
अगर चौ. मुंशीराम के कृतित्व पर प्रकाश डाला जाये तो उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन मे अनेकों सांग/कथा और फुटकड़ कृतियों की रचना की, परन्तु उस मार्मिक दौर मे संरक्षित न हो पाने के कारण उनकी अधिकांश कथाएं काल के गर्त मे समा गई। वर्तमान मे उनकी लगभग कुछ प्रमुख कथाओं के साथ अन्य कथाओं की कुछ इक्की-दुक्की रचना ही संकलित हो पायी, जैसे- मीराबाई, चंद्रकलाशी, महाभारत, हीर-राँझा इत्यादि, जो ‘मुंशीराम जांडली ग्रंथावली’ नामक प्रकाशित पुस्तक मे संग्रहित है। उनके रचित इतिहासों का प्रमुख सार इस प्रकार है-राजा हरिश्चंद्र, पूर्णमल भगत, जयमल-फत्ता, पृथ्वीराज चौहान, अमरसिंह राठौड़, फुटकड़ रचनाएँ।

Пікірлер: 11
@rameshchandersihag1216
@rameshchandersihag1216 8 күн бұрын
Bhut bdia jankari di Bhai ne di
@Hindi.haryanvi
@Hindi.haryanvi 3 күн бұрын
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद जी
@DevenderSaharan-u7x
@DevenderSaharan-u7x Ай бұрын
❤❤❤❤❤❤❤❤🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉😢
@AkVlogs464
@AkVlogs464 Жыл бұрын
Very nice video
@Hindi.haryanvi
@Hindi.haryanvi 10 ай бұрын
Thank you ji
@रमेशकुन्डु
@रमेशकुन्डु Ай бұрын
ये रागनी नही थी वे रागनी 52 कली की थी
@Hindi.haryanvi
@Hindi.haryanvi Ай бұрын
राम राम सर जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद जी सर आपके पास वह रागनी हो तो क्या आप मुझे भेज सकते हैं सर 9050501998 मेरा व्हाट्सएप नंबर है जी
@अपनाहरियाणाहरियाणवीकविता
@अपनाहरियाणाहरियाणवीकविता Жыл бұрын
Nice video 👍👍
@Hindi.haryanvi
@Hindi.haryanvi 10 ай бұрын
Thank you ji
@RishirajkaushikRishirajkaushik
@RishirajkaushikRishirajkaushik 10 ай бұрын
Kavi.ki.koie.jatti.nahin.hoti.h.
@Hindi.haryanvi
@Hindi.haryanvi 10 ай бұрын
Thank you ji
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