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#BHARAT_DARSHAN #CHOGAN_RAMNAGAR_MANDLA
चौगान का अर्थ है चार खुटों वाला समतल भूमिभाग। जंगल के बीच में पहाड़ों की चोटी पर या आवासीय स्थल के बीच में किसी भी समतल भाग को चौगान कहा जाता है। चौगान की भूमि कृषि योग्य नहीं होती। भूमि का भाग सार्वजनिक रूप से उपयोग के लिए होता है, जहां पर मड़ई, मेला आदि लगाया जाता हो। आसपास के गांव के लोग भी उस स्थान पर एकत्रित होकर सार्वजनिक आयोजन कर सकते हैं । स्थानीय आवश्यकता के अनुसार यह छोटा- [-बड़ा भी हो सकता है। प्राचीन भारतीय सभ्यता के साथ ही आज भी बड़े-बड़े महानगरों की आवासीय कालोनियों के बीच में ऐसे स्थलों को सुरक्षित किया जाता है । मुगलों के समय में चौगान एक खेल का नाम था जो आधुनिक पोलो की तरह घोड़ों पर सवार होकर खेला जाता था गोंड राजा हिरदेसाहि के समय भी इसका बहुत महत्व था । जब सन् 1651 में गढ़ा मण्डला राज्य की नई राजधानी के रूप में रामनगर का चयन किया उसी समय सैनिक छावनी तथा सैनिक अभ्यास के लिए एक बहुत बड़े मैदान की आवश्यकता प्रतिपादित की गई और उसके लिए रामनगर से तीन मील दूर, तीन ओर से पहाड़ियों से संरक्षित घने जंगल के बीच एक चौगान का भी चयन किया गया । यह समतल मैदान लगभग दो मील लम्बा तथा दो मील चौड़ा है। यहीं पर युद्ध के लिए घोड़ों तथा हाथियों को प्रशिक्षित किया जाता था। चौगान वर्तमान समय में देवी की उपासना स्थल के रूप से प्रसिद्ध है ।
मण्डला नगर के पास रामनगर में गोंड राजाओं की राजधानी थी । उससे तीन मील दूर चौगान है । मण्डला नगर मुख्यालय से महाराजपुर, बंजर पुल, पुरवा, पदमी, मधुपुरी, रामनगर होते हुए चौगान पहुंचा जाता है । मण्डला से चौगान तक की दूरी 34 कि.मी. है । दूसरा रास्ता मण्डला मुख्यालय से मण्डला डिण्डौरी मार्ग में मण्डला से नौ किलोमीटर पर पादरीपटपरा से आगे दाहिने ओर से एक वनमार्ग जाता है जो आगे नर्मदा नदी पार कर रामनगर पहुंचता है । वहां से चौगान जाया जाता है । रामनगर में नर्मदा नदी पर पुल है ।पुराने समय में नर्मदा नदी पर नाव द्वारा पार कर रामनगर पहुंचा जाता था । ग्रीष्म ऋतु में यह नदी रामनगर के पास पैदल पार करने योग्य हो जाती थी। बाजार के दिनों में घोड़ा तथा बैलगाड़ियों से इसे पार किया जाता था । रामनगर पहुंचने का यह ही बहुत पुराना मार्ग है । इस रास्ते से चौगान पहुंचने में केवल 24 किलोमीटर का रास्ता तय करना पड़ता है। वर्तमान समय में चौगान मोहगांव विकासखंड के अंतर्गत आता है । रामनगर भुआ-बिछिया विकासखंड में सम्मिलित है।
मुख्य स्थल : देवी पूजा का स्थान
चौगान में आदिवासी गोंड़ जाति की देवी की प्रसिद्ध मढ़िया है । लगभग 1500 वर्गफुट में देवी का मुख्य स्थान तथा इसी से संलग्न लगभग 2000 वर्गफुट में पंडा पुजारी का आवास स्थल है। देवी जी का मुख्य स्थल चारों ओर से पत्थर तथा ईंट की दीवाल के परकोटे से सुरक्षित है, बीच में एक घास-फूस की मड़ैया में देवी की धूनी जलती है, पंडा वहीं पर बैठकर उसी की रक्षा करता तथा पूजा करता है । इसी धूनी के आसपास लोग श्रद्धा और भक्ति से पूजा करते धूनी पर झंडी लगाते तथा त्रिशूल चढ़ाते हैं । इसे ही मुख्य मढ़िया कहते हैं । इसके बाहर आंगन में एक चबूतरे पर एक लोहे की नसैनी लगभग 25 फुट ऊँची लगी है। इसमें एक लोहे की मोटी सांकल लटक रही है। दैनिक आपदा से पीड़ित व्यक्ति, पंडा के आशीर्वाद से निरोग हो जाता है, शारीरिक तथा मानसिक सभी व्याधियाँ दूर हो जाती हैं । प्रेत आत्माएं तथा अनिष्टकारी आत्माएं जिन्हें मृत्यु के उपरांत कोई अन्य योनि नहीं मिल पाती तथा जो किसी कारणवश यत्र-तत्र भटक रही होती है तथा सामान्य नागरिकों को कष्ट दे रही होती है। ऐसी सभी आत्माएं पंडा के आशीर्वाद से इस काल नसैनी में सांकल का सहारा लेकर ऊपर चढ़कर स्थित हो जाती है और पीड़ित व्यक्ति निरोग हो जाता है। यहां पर किसी जादू टोना, ब्लेक मेजिक आदि का कोई प्रभाव नहीं है, शुद्ध सात्विक ढंग से श्रद्धा, भक्ति और आस्था से युक्त होकर देवी की शक्ति और आशीर्वाद से लाभ होता है। यहां पर देवी की कोई मूर्ति नहीं है। अग्नि शिखा को ही देवी का विग्रह माना जाता है, आदिवासी समाज में अग्नि पूजा तथा देवी शक्ति की अराधना कब और कैसे प्रारम्भ हुई, इसकी कोई जानकारी नहीं है। आदिवासी समाज बहुदेवता वाद का मानने वाला है। देवताओं के साथ-साथ देवी पूजन का भी विशेष महत्व है। समाज में वर्णभेद तथा वर्गभेद दोनों हैं । गोत्र परम्परा भी है। एक देवता से लेकर सात देवता तक मानने वालों को विभिन्न श्रेणियों में रखकर उनके गोत्र निर्धारित किये गये हैं, गोत्रों की संख्या पचास से अधिक है ।
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