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Chardham Yatra | Ep 12 | पैदल यात्रा : श्रीनगर का इतिहास | पहाड़ में बड़े बांध । Dhari Devi
श्रीनगर का इतिहास
पहाड़ में बड़े बांध
धारी देवी
श्रीनगर परमार वंश की राजधानी रही है। परमार वंश ने 1815 के बाद सिंगोली सन्धि के तहत अपनी राजधानी टिहरी स्थापित कर दी।श्रीनगर को अपनी राजधानी महाराज अजयपाल ने 16वीं शताब्दी में बनाई। उसके बाद करीब ढाई सौ साल तक यह गढ़वाल राज्य के राजधानी रही। श्रीनगर शहर जब गौणा ताल टूटने से तबाह हुआ उससे पहले यह सांस्कृतिक,धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से काफी समृद्ध था। यह गढ़वाल राज्य का सबसे बड़ा व्यापारिक केंद्र भी था।
1894 में अलकनंदा में आई भीषण बाढ़ ने राज महल, मंदिर सहित लगभग पूरे शहर को खत्म कर दिया केवल कमलेश्वर मंदिर ही बच पाया। उसके बाद इस शहर को दोबारा आधुनिक तरीके से असिस्टेंट कमिश्नर पौ ने बसाया। यह उत्तर भारत का आधुनिक तरीके से बसाया हुआ शहर है।जहाँ सड़के चौड़ी और प्लॉटिंग के अनुसार बसाया गया।
श्रीनगर शहर आज तो तहसील में बट गया है।गढ़वाल विवि का एक कैम्पस टिहरी जिले के कीर्तिनगर तहसील और दूसरा पौड़ी जिले के श्रीनगर तहसील में है। मेडिकल कॉलेज श्रीनगर में है जबकि रेलवे स्टेशन कीर्तिनगर में बनाया जा रहा है।यह वर्तमान में काफी बड़ा नगर है जो व्यापारिक और शैक्षणिक केंद्र बन चुका है। यहां पर एनआईटी, आईटीआई और पॉलिटेक्निक स्कूल भी है।
श्रीनगर से नेशनल हाईवे से होकर आगे बढ़ना होता है। मैंने चौरास कैम्पस से होते आगे का सफर शुरू किया। श्रीनगर से 2 किमी का सफर तय कर चौरास पुल पार कर आगे बढ़ा। चौरास से आगे सूपाणा गाँव के पास ही अलकनंदा जल विद्युत परियोजना बनाई गई है जो 330 मेगावट की run of the river project है।
श्रीनगर शहर की अपनी एक विशेष भू आकृति है।यहां पर घाटी करीब 3 किमी चौड़ी और करीब 9 किमी लम्बाई खुल जाती है।इस पूरे क्षेत्र में नदी एक s आकृति बनाती है।यहां हजारों साल से लाई मलबे के निशान दिख जाते है।जो नदी के दोनों तरफ मलबा फैलाया उसी पर आज का श्रीनगर और कीर्तिनगर बसा है।
धारी देवी श्रीनगर से 15 किमी की दूरी पर बसा है। धारी देवी अलकनंदा डैम के कारण डूब गया।इस प्राचीन सिद्ध पीठ में माँ की दक्षिण काली के रूप में पूजा की जाती है। पहले मंदिर अलकनंदा नदी के किनारे स्थित था और मात्र 15 मीटर नीचे नदी बहती थी। वर्तमान में नदी करीब 55 मीटर ऊपर नदी में पिलर डालकर उठाया गया है। और झील बनने के कारण नदी के बीच में मंदिर स्थित है।
पुराने समय में यात्री धारी देवी मंदिर में रुकते थे और स्थानीय पुजारियों के द्वारा भोजन की व्यवस्था की जाती थी। मान्यता है कि यहां पर माँ दक्षिण काली की कमर से ऊपर पूजा की जाती है जबकि कमर से नीचे कालीमाठ में होती है।
16 जून को जब लागातर पानी बढ़ने से जब मंदिर डुबने लगा और 17 जून को जैसे ही मूर्ति को हटाया गया उसके बाद ही केदारनाथ में चोराबाड़ी ताल फट गया। इसे अतिश्योक्ति कहे या भोलेनाथ का क्रोध चारों तरफ जल प्रलय आ गया।
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