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उडऩे के सपने तो सभी देखते हैं, लेकिन उड़ता वही है, जिसके पंखों से ज्यादा हौसलों में उड़ान होती है. मेहनत और हौसले से किसी भी कठिनाई से पार पाया जा सकता है. आज हम बात कर रहे हैं रांची के उस युवा की ,जो बचपन से ही सामान्य नहीं था, लेकिन वह मानता है कि यहां कोई भी परफेक्ट नहीं होता, बनना पड़ता है. इसी सोच को लेकर वो कड़ी मेहनत कर रहा है और आज वह खुद की जिंदगी संवारने के साथ दूसरों को भी कभी हार ना मानने की प्रेरणा दे रहा है. इस युवा का नाम है प्रमोद लकड़ा. जन्मजात दिव्यांग हैं. इनका बायां हाथ आम लोगों की तरह नहीं है. प्रकृति की मार देखिये कि प्रमोद अभी ढंग से बोलना भी नहीं सीखा था कि सिर से माता पिता का साया उठ गया. कहने को तो एक बड़ा भाई था मगर वो परवरिश न कर सका. सात-आठ साल की उम्र में एक रिश्तेदार दिल्ली ले गया. दिल्ली के एक एनजीओ में प्रमोद रहने लगा. वहीं से स्नातक की पढ़ाई पूरी की. स्नातक की पढ़ाई तक सब कुछ ठीक था मगर उसके बाद उसे वहां काम नहीं मिला. वह अब अपने पैरों पर खड़ा होना था. उसका सपना है कि वह सरकारी नौकरी में आए. दिल्ली में रहने-खाने की दिक्कत हुई तो वह रांची लौट आय़ा. पढ़ाई और घर का खर्च चलाने के लिए उसने फूड डिलेवरी का काम चुना. नौकरी तो उसे मिल गई पर उसके पास बाइक नहीं थी. इसका भी प्रमोद ने हल निकाला. स्मार्ट सिटी रांची के तहत चार्टेड साइकल को उसने अपना साधन बनाया और काम शुरू कर दिया. प्रमोद यह साबित करता है कि मन में दृढ़ इच्छा शक्ति व विश्वास हो तो कोई भी कार्य असंभव नहीं है.
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