Chhattisgarh Ka 700 Saal Prachin Shiv Mandir Sahaspur Bemetara

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PRERNA SAMAJIK SANSTHA

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Chhattisgarh Ka 700 Saal Prachin Shiv Mandir Sahaspur Bemetara
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जिला मुख्यालय से 24 किलोमीटर कि दुरी पर दुर्ग रायपुर मार्ग पर देवकर से 04 कि .मी. पर ग्राम सहसपुर में प्राचीन बजरंग बली मंदिर के निकट स्थित है|इस पूर्वाभिमुख मंदिर में गर्भगृह,अन्तराल एवं मण्डप है|आमलक एवं कलश युक्त शिखर भाग नागर शैली में निर्मित है, मण्डप का धरातल गर्भगृह से थोडा ऊँचा है|मण्डप षोडशखम्भी(सोलह स्तम्भों पर आधारित )है और प्रत्येक स्तम्भ पर नाग उकेरे गए है|द्वार के सिरदल पर ललाट बिम्ब में चतुर्भुज शिव एवं दाये छोर पर ब्रम्हा तथा बाये सिरे पर विष्णु आसीन है|
निचे नवग्रहो का विपरीत क्रम में अंकन किया गया है|मंदिर के गर्भगृह में जलधारी योनीपीठ पर शिवलिंग प्रतिष्ठापित है| नागर शैली में निर्मित यह मंदिर कवर्धा के फनिनागवंशी राजावो के राजत्वकाल में (13 वी14 वी शदी इस्वी )निर्मित हुवा है|मंदिर का वितान (छत)अलंकृत है|मंदिर कि बांयी ओर कि बाह्य भित्ति पर आले में नटराज शिव,पिछली भित्ति के आले में स्थानक सूर्य एवं दायी ओर के आले में चतुर्भुज नृतगपति कि प्रतिमाये है| यह मंदिर अपनी प्राचीन विरासत को खोती नजर आ रही है|मंदिर उपेक्षा का शिकार हो गया है| सावन माश में भारी मात्र में शिव भक्त मंदिर में भगवान को जल अर्पित करने को आते है| इस शिवलिंग कि खासियत यहाँ है कि यह शिवलिंग स्वयंभू है| व जितना जल डालो शिवलिंग को नहीं डुबाया जा सकता , पुरातत्व विभाग के द्वारा इसकी देखरेक किया जा रहा है मगर असामाजिक तत्वों के चलते मंदिर क्षेत्र को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है|ग्राम पंचायात को इस मंदिर कि सुरक्षा पर ध्यान देना चाहिए|मंदिर प्रांगन में प्राचीन बजरंग बलि मंदिर है|
हजारों गैलन पानी चढ़ाया फिर भी नहीं डूबा 13 वीं शताब्दी का प्राचीन शिवलिंग, तस्वीरों से जानिए जुड़वा मंदिर की अनोखी कहानी
बेमेतरा सहसपुर का जुड़वा मंदिर वास्तुकला की नायाब धरोहर है. फणी नागवंशी राजाओं के शासनकाल में निर्मित जुड़वा मंदिर प्रतिनिधि स्मारकों में से एक है. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि कवर्धा के फणी नागवंशी राजाओं ने 13-14 वीं शताब्दी में बनवाया है. माना जाता है कि गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग कभी नहीं डूबा
आठ दशक पहले गांव में भीषण अकाल पडऩे पर सहसपुर, नवकेशा, लालपुर, लुक, बुंदेली, गाड़ाडीह सहित आसपास क्षेत्र के ग्रामीणों ने महा शिवरात्रि के दिन गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग को जल अभिषेक कर डूबाने का निर्णय लिया था. योजना के मुताबिक मंदिर परिसर से लगभग 300 मीटर की दूरी पर स्थित जलाशय तक कतारबद्ध खड़े होकर जल अभिषेक किया. सुबह से शाम तक शिवलिंग पर हजारों गैलन जल चढ़ाया गया, लेकिन शिवलिंग को जल से डुबाने का प्रयास असफल रहा. हजारों गैलन पानी कहां गया किसी को पता नहीं चला. तब गांव वालों को यह लगा कि शिवजी को पानी से डुबाने का निर्णय एक अहंकार था.इसके बाद से गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग की आस्था बढ़ती चली आ रही है. तब से हर साल महाशिवरात्रि में मेला लगता है. आसपास के ग्रामीण शिवलिंग का जल अभिषेक करने पहुंचते हैं. परंपरा के मुताबिक अभी श्रद्धालु मंदिर के गर्भगृह से जलाशय तक कतारबद्ध खड़े होकर जलाशय के जल से शिवजी का अभिषेक करते हैं.
गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग के प्रति आस्था प्रदेश के बाहर से लोगों को भी यहां खींच लाती है. महाशिवरात्रि और सावन में आसपास के ग्रामीणों के अलावा दूर से भी लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं. जुड़वा मंदिर बेमेतरा जिले के देवकर से 7 किलोमीटर दूर स्थित है. देवकर, नवकेशा होते हुए सहसपुर पहुंचा जा सकता
जुड़वा मंदिर पूर्वाभिमुख है. एक मंदिर के गर्भगृह में स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है. दूसरे में प्रतिमा नहीं थी. बाद में गांव वालों ने हनुमान की प्रतिमा स्थापित की है. मंदिर में अंतराल, गर्भगृह और मंडप है. नागर शैली में आमलक एवं कलश युक्त शिखर है. मंडप का धरातल, गर्भगृह से लगभग 4 फीट ऊंचा है
शिव मंदिर के मंडप में पत्थर से बनें 16 पिल्लर(कॉलम) है. प्रत्येक पिल्लर में नाग उकेरे गए हैं. मंदिर के प्रवेश द्वार में चतुर्भुजी शिव एवं दाएं छोर पर ब्रम्हा और बाएं छोर पर विष्णु की प्रतिमा विराजमान है. नीचे में नवग्रह विपरीत क्रम में अंकित है
भोरमदेव मंदिर की तरह बाहरी हिस्से पर कोई कलाकृति नहीं है. स्वयंभू शिवलिंग मंदिर के धरातल पर गर्भगृह में तीन फुट नीचे है. मंदिर का छत कला से अलंकृत है. मंदिर के बांयी ओर के बाहरी हिस्से में नटराज शिव और दायीं ओर चतुर्भुजी गणेश की भित्ति चित्र है. यह नृत्य की मुद्रा में है
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