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2006 में राजस्थान के अलवर जिले में 26 वर्षीया जर्मन टूरिस्ट का बलात्कार करने के जुर्म में बिट्टी को सात साल की जेल की सजा सुनाई गई थी. उसी साल दिसंबर में उसे पैरोल मिला और वह फरार हो गया. फरार होने के बाद वह लंबे समय तक लापता रहा और इस दौरान उसने अपना नया जीवन पहले टीचर, फिर एमबीए छात्र और अंत में बैंककर्मी के रूप में बिताना शुरू कर दिया. इस दौरान उसने आंध्र प्रदेश के पुट्टपर्थी और केरल के पास कन्नूर में रहते हुए फर्जी कागजातों और झूठ की मदद से अपने पिछले जीवन के बारे में मनगढ़ंत कहानी तैयार कर ली.
स्टेट बैंक ऑफ त्रावणकोर (एसबीटी) में काम करने वाले उसके 20 करीबी सहयोगियों को उसकी शराफत पर भरोसा था और वे उसे सही आदमी मानते थे. सबसे घुल-मिलकर नहीं रहने के बावजूद वह अनुशासित रहता था और सबसे शिष्ट व्यवहार करता था. लेकिन उसका रुख बहुत ज्यादा दोस्ताना नहीं था. कन्नूर के जिस चिन्मय इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से उसने राघव रंजन के नाम से एमबीए किया, वहां के अध्यापक उसे आध्यात्मिक विषयों में खास रुचि रखने वाला आदर्श और अनुशासित छात्र मानते थे. पुट्टपर्थी में उसके मेंटॉर भी उसे तेज बुद्धि और नौकरी की तलाश में शिद्दत से लगे युवा की तरह देखते थे.
सबूत जुटाने की चुनौती
कन्नूर में उसे हिरासत में लेने के लिए पहुंची राजस्थान पुलिस की टीम कांस्टेबल हेमेंद्र शर्मा के साथ आई थी. हेमेंद्र शर्मा उन पुलिसकर्मियों में से थे जिन्होंने 2006 में बिट्टी को गिरफ्तार किया था. कन्नूर के पुलिस अधीक्षक (एसपी) राहुल एन. नायर की ओर से आठ घंटे लंबी चली पूछताछ के बाद राघव की कहानी में अस्थिरता नजर आने लगी और यह लगने लगा कि राघव वास्तव में बिट्टी मोहंती है. इसके बावजूद भी यह साफ तौर पर तब तक नहीं कहा जा सकता था, जब तक फिंगर प्रिंटिंग, डीएनए परीक्षण या लाई डिटेक्टर जैसी किसी भी वैज्ञानिक तकनीक से कोई पुष्टि नहीं हो जाए. इसके बाद राघव को राजस्थान ले जाया गया, जहां से वह दिसंबर 2006 में अपनी बीमार मां को कटक जाकर देखने के लिए मिले 15 दिन के पैरोल के दौरान गायब हो गया था.
पूछताछ करने वाले पुलिसकर्मियों ने बताया कि राघव शुरुआत में इस बात से मुकर गया कि वह बिट्टी है. उसने ओडिसा में ली गई अपनी शिक्षा, आंध्र प्रदेश में बिताए गए अपने जीवन और अपने माता-पिता की शादी टूटने की कहानी विस्तार से बतानी शुरू कर दी. लेकिन जैसे ही पुलिस ने उसे अलवर बलात्कार कांड के आरोपी की तस्वीरें और वीडियो क्लिप दिखाए, वह टूटना शुरू हो गया.
राजस्थान पुलिस मानती है कि उसकी पहचान को तय करने का सबसे अच्छा तरीका उसके डीएनए का उसके माता-पिता के डीएनए से मिलान करना है. अगर ओडिसा के पूर्व डीजीपी और बिट्टी के पिता बी.बी. मोहंती और उसकी माता शुभ्रा ने खून के नमूने देने से इनकार कर दिया, तो ये एक बहुत लंबी कानूनी प्रक्रिया हो सकती है. बिट्टी को भी यह अधिकार है कि वह अपने खून का नमूना देने से मना कर दे.
ऐसे में दूसरा विकल्प वैज्ञानिक तरीकों से उसके चेहरे-मोहरे का पुलिस रिकॉर्ड में मौजूद उसकी तस्वीर से मिलान करने का होगा. इस बात की संभावना कम है कि पुलिस रिकॉर्ड में उसके फिंगरप्रिंट मौजूद हों क्योंकि पहली बार हिरासत में लिए जाने के वक्त उसकी पहचान को लेकर कोई विवाद नहीं था.
उसकी पहचान को तय करने का तीसरा और अंतिम तरीका इस बात पर आकर टिक जाता है कि केरल पुलिस कितनी बारीकी से उसके फर्जी दस्तावेजों को निशाने पर ले पाती है. एसपी नायर ने इंडिया टुडे को बताया, ''हमने इस मामले को लगभग सुलझा लिया है. निश्चित ही यह नकली भेष बनाने और धोखाधड़ी करने का मामला है.”
अब तीस साल के हो चुके बिट्टी ने अगर पहले तय की गई अपनी सजा काट ली होती तो वह कुछ महीने बाद रिहा हो जाने की स्थिति में होता. यहां से उसे ज्यादा कठोर और लंबी सजा मिलने की संभावना बढ़ गई है.
नई जगह, नई जिंदगी
बिट्टी के राघव रंजन में बदलने की शुरुआत 2007 में अनंतपुर जिले के तीर्थ शहर पुट्टपर्थी में पहुंचने के साथ हुई. रिटायर्ड आइएएस अफसर के.आर. परमहंस ने उसकी मुलाकात स्थानीय स्कूल के पूर्व हेडमास्टर एस.वी. रामा राव से कराई.