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प्रियजन, जो परिवर्तनशील है, जो बदल रहा है वह भ्रम है कि इसकी कोई सच्चाई नहीं है। हमारा शरीर भी पल-पल बदल रहा है। इस शरीर में बैठकर आँखों से जो हम इस चलायमान दुनिया को देख रहे हैं वह भी मायारूप है। 'आए जाए सो माया' और इसमें लिप्त हमारा मन भी झूठा है। यानि जो चलायमान है, बदल रहा है, जो बनता और बिगड़ता है, वह मायारुप है। भ्रम है।
क्या माँगों कछु थिर न रहाई, देखत नैन चल्यो जग जाई ॥
श्री गुरु कबीर साहेब दयामेहर से वचन कर रहे हैं, असमंजस में जीव सोचता है कि उस परमात्मा से क्या मांगू, यहाँ तो कुछ भी शाश्वत नहीं है, स्थायी नही सब चलायमान है। हमारे देखते-देखते लोग सब कुछ यहीं छोड़कर एक-एक करके दुनिया से जा रहे हैं।
गुरुसाहेब आगाह कर रहे हैं कि जैसे बाजी हार जुहारी हाथ झाड़कर चल देता है, अंत समय आन पड़ा है, अब भी चेतो, ऐसा नहीं हो कि हम भी इस अनमोल मनुष्य जन्म को बर्बादकर चल दें।
कहैं कबीर अंत की बारी, हाथ झारि ज्यों चला जुवारी ॥
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