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मां पार्वती ने शिव जी को अपने दस महाविद्या स्वरूप का दर्शन कराते हुए बताया कि,‘‘स्वामी! आपके समक्ष जो कृष्ण-वर्णा देवी स्थित हैं वह ‘काली’ हैं, आपके ऊपर महाकाल स्वरूपिणी जो
नील-वर्णा देवी हैं वह ‘तारा’ हैं, आपके पश्चिम में श्याम वर्णा और कटे हुए शीश को
उठाए जो देवी खड़ी हैं वह ‘छिन्नमस्तिका’ हैं, आपके बाईं तरफ देवी ‘भुवनेश्वरी’ खड़ी
हैं, आपके पृष्ठ पर शत्रु मर्दन करने वाली देवी ‘बगलामुखी’ खड़ी हैं, आपके अग्निकोण
में विधवा रूपिणी ‘धूमावती’ खड़ी हैं, नैऋत्य कोण में देवी ‘कमला’ खड़ी हैं, वायव्य
कोण पर ‘मातंगी’ खड़ी हैं, ईशान कोण पर देवी ‘त्रिपुरसुन्दरी, षोडशी’ खड़ी हैं
तथा भैरवी रूप होकर मैं
स्वयं उपस्थित हूं।’’
दसों महाविद्याएं आदि
शक्ति माता पार्वती की ही रूप मानी जाती हैं। दस महाविद्या विभिन्न दिशाओं की
अधिष्ठातृ शक्तियां हैं। भगवती काली और तारा देवी- उत्तर दिशा की, श्री विद्या
(षोडशी-त्रिपुर सुन्दरी)- ईशान दिशा की, देवी भुवनेश्वरी, पश्चिम दिशा की, श्री
त्रिपुर भैरवी, दक्षिण दिशा की, माता छिन्नमस्ता, पूर्व दिशा की, भगवती धूमावती
पूर्व दिशा की, माता बगला (बगलामुखी), दक्षिण दिशा की, भगवती मातंगी वायव्य दिशा
की तथा माता श्री कमला र्नैत्य दिशा की अधिष्ठातृ है।
ये सारा संसार शक्ति रूप
ही है। इस बात का विशेष ध्यान पाठक गण को चाहिये की प्रत्येक पूजा अराधाना ऐवम प्रयोग के पशच्यात इन अराधनओ मै हुइ त्रुटियों के लिये इष्ट देव, देवियो से छमा याचना अनिवार्य तोर पर दुहराये, अन्यथा हो सकता है कि "लेने के देने" कि नौबत आ जाये ।
पाठक गण को चाहिये की प्रत्येक पूजा अराधाना ऐवम प्रयोग के पशच्यात, उप्युक्त शांति पाठ अवश्यमेव करे जिससे कि जो वातावरण मै आई अनावश्यक बद्लाव, जो आपकि अराधना से उत्पन्न हुये है, वो शांत हो जाये ।
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Dash Mahavidya Gupt Navratri दश महाविद्या गुप्त नवरात्रि का वर्णन ऐवम लाभकारि मंत्रदि