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दशमद्वार कालीमठ मंदिर चमोली जिले में स्थित है.
जिसकी स्थापना टिहरी के राजा मानवेंद्र शाह ने की थी. इसी दशोली गढ़ में घने चीड़, बांज बुरांश के घने जंगलों के बीच सिद्धपीठ दशम कालीमठ मंदिर स्थित है. जो 9 गांवों (हिंडोली, नौली, कंडारा, चटक्याला, जैटी, बतौली, सुनाली, पुलफाड़ा, तल्ला जैटी) की आराध्य देवी हैं.
देवभूमि उत्तराखंड के तमाम मंदिर हैं जिनकी अलग-अलग पौराणिक मान्यताएं हैं जो उन्हें एक दूसरे से अलग बनाती है. उन्हीं में से एक है सिद्धपीठ कालीमठ, जो चमोली जिले के दशोलीगढ़ में स्थित है.
गढ़वाल के इतिहास में 52 गढ़ों का जिक्र आता है जिसमें से 25वां गढ़ दशोली गढ़ है. जिसकी स्थापना टिहरी के राजा मानवेंद्र शाह ने की थी. इसी दशोली गढ़ में घने चीड़, बांज बुरांश के घने जंगलों के बीच सिद्धपीठ दशम कालीमठ मंदिर स्थित है. जो 9 गांवों (हिंडोली, नौली, कंडारा, चटक्याला, जैटी, बतौली, सुनाली, पुलफाड़ा, तल्ला जैटी) की आराध्य देवी हैं. मंदिर में लगभग 300 सीढ़ियों को पार कर पहुंचा जाता है जिसके आसपास पूरा सुनसान इलाका है.
रावण को मिली थी यहां सिद्धियां!
मंदिर के पुजारी गिरीश पंत बताते हैं कि त्रेता युग में रावण ने यहां तपस्या करके अनेक प्रकार की सिद्धियां प्राप्त की थी. जिस कारण जिसे ‘सिद्धपीठ’ के नाम से जाना जाता है. बताते हैं कि मां काली को प्रसन्न करने के लिए रावण ने यहां अपने 9 सिरों की आहूति दी थी. जो मंदिर से लगभग 10 किमी की दूरी पर स्थित बैरास कुण्ड मंदिर स्थित हवन कुंड में जा गिरे. जिस कारण इस पूरे क्षेत्र को ‘दसमोली’ या दशोली गढ़ के नाम से भी जाना जाता है
गोरखाओं की फौज ने किया था हमला
स्थानीय हिंडोली गांव के सुनील पंत बताते हैं कि जब गोरखाओं की फौज ने गढ़वाल पर आक्रमण किया था. उन्होंने मंदिर में स्थित मूर्तियों को खंडित किया और आज भी माता के गर्भगृह के बाहर माता के अंगरक्षक शील सुशील की मूर्तियों के हाथ कटे हैं. साथ ही स्थानीय राजेंद्र सिंह रावत बताते हैं कि माता काली 9 गांवों की आराध्य देवी हैं. जहां सभी भक्त अपनी मनोकामना लेकर आते हैं और मां सभी की इच्छा पूरी करती है.
कैसे कालीमठ मंदिर पहुंचे?
बाय रोड : कालीमठ मंदिर के तीन मुख्य द्वार हैं जहां पहुंचने के लिए आपको NH 7 पर नंदप्रयाग से पहले सोनला वाले रूट पर जाना होगा. जिसके बाद कंडारा नामक गांव में आपको कालीमठ का पहला द्वार दिखेगा साथ ही मंदिर का दूसरा द्वार सुनाली गांव को पार कर पुल के नजदीक दिख जाएगा . मंदिर का अंतिम तीसरा द्वार भैणी (भैनी) गांव से नीचे प्रतीक्षालय के नजदीक दिखेगा. जहां से आप माता काली के दरबार में पहुंच सकते हो.
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