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आदि शक्ति माँ दंतेश्वरी
छत्तीसगढ़ राज्य के दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय में डंकिनी एवं शंखिनी नदियों के संगम पर स्थित यह मंदिर महिषासुर मर्दिनी के एक रूप दुर्गा को समर्पित है। काकतियों के शासन काल के काफी पहले से ही शक्ति पूजा बस्तर स्थानीय आदिम जातियों में विभिन्न नामों से प्रचलित थी। वारंगल के प्रताप रूद्र के एक भाई अन्नमदेव ने नागवंशी शासको के ऊपर काकतीय प्रभुत्व स्थापित करने के पूर्व चौदहवीं शताब्दी में इसका पुनःनिर्माण करवाया था।
धार्मिक परम्पराओ के अनुसार शिव की पत्नी ''सती'' का एक दांत यहॉ पर गिरा था और इसी उपलक्ष्य में यह स्थल सम्पूर्ण भारत वर्ष में एक महत्वपूर्ण व प्रतिष्ठित शक्तिपीठ के रूप में प्रचारित हुआ । उपर्युक्त परम्परा मंदिर में श्याम पाषाण निर्मित षठभुजी प्रतिमा दंतेश्वरी के नाम से अभिहित होने पर प्रकाश डालती है। इस मूर्ति के विषय में यह तथ्य है, कि प्रतिमा के अर्धवृत्ताकार शीर्षखण्ड में नरसिंह द्वारा हिरण्यकश्यप वध का दृश्य उत्कीर्ण है। वैष्णव धर्म के साथ ऐसा समायोजन मंदिर के सामने स्थित परवर्ती कालीन गरूड़ स्तंभ से पूर्ण प्रमाणित होता है।
पूर्वाधिकोण मुखी यह मंदिर तीन अभिभूत भवनों के संयोंजन से बना है। पीठाशीखर युक्त दण्ड, गर्भगृह, स्तंभायुक्त, मुखशाला या सभागृह और स्तंभायुक्त नरमंडप । हिन्दु धर्म से संबंधित अनेको मूर्तियां जैसे विष्णु, गणेश, शिव, पार्वती, नरसिंह, भैरव एवं द्वारपाल आदि मंदिर के विभिन्न स्थानों में रखी है।
विगत शताब्दी के पूर्व दशको में बस्तर के राजवंश द्वारा बत्तीस काष्ठ स्तंभों एवं खपरैल की छत विस्तृत महामण्डप, सिंहद्वार, मुखप्रवेश द्वार का निर्माण किये जाने के पूर्व ही इस मंदिर का क्रमबद्ध रूप से पूर्व निर्माण किया गया था।