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बहुत ही खूबसूरत मंडाण। दोस्तो उम्मीद करता हूं आपको वीडियो देखकर मजा आएगा।
ढोल दमाऊं उत्तराखंड का प्राचीन वाद्य यंत्र है। उत्तराखंड की हर परंपरा में खास भूमिका निभाने वाले ढोल को लेकर दंत कथाओं में कहा गया है कि इसकी उत्पत्ति शिव के डमरू से हुई है। जिसे सबसे पहले भगवान शिव ने माता पार्वती को सुनाया था। कहा जाता है कि जब भगवान शिव इसे सुना रहे थे, तो वहां मौजूद एक गण ने इसे मन में याद कर लिया था। तब से ही ये परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से चला आ रही है। ढोलसागर में प्रकृति, देवता, मानव और त्योहारों को समर्पित 300 से ज्यादा ताल हैं। ढोल और दमाऊं एक तरह से मध्य हिमालयी यानी उत्तराखंड के पहाड़ी समाज की आत्मा रहे हैं। जन्म से लेकर मृत्यु तक, घर से लेकर जंगल तक कहीं कोई संस्कार या सामाजिक गतिविधि नहीं जो ढोल और इन्हें बजानेवाले ‘औजी’ या ढोली के बगैर पूरा होता हो।
जय जय माँ चण्डिका🚩
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