सतनाम साहिब बंदगी / साहिब जी . संत कबीर साहिब कि अटपटी चाल जिसने जाना वही हंस है जैसे कंचन को सुनार आग मे तपाकर शुद्ध करके फिर उसी का भाव होता है / वैसे हि मनुष्य सत्य से अगर अंदर बाहर से परख करके इंद्रीय मन बुद्दी को वश करके / जब अंदर से मन का अंधेरा खतम हो जाता है और तब मन और माया साफ साफ समज मे आती है / और आतम नि अक्षर परमारमा कि कृपा बनी रहती है और उस शब्द मे सुरती समाई जाने के बाद / मन माया का खेल हि खतम हो जाता है तो जीव अपने निज घर जाता है / अनुभव . मुझे अपने आप मे आया है दुसरी बात जबतक मन बाहर भटकता है तो वह भ्रम है और स्थीर होने के बाद खोजो तो धिरे धिरे सब समज मे आता है . गुरुजी आपने नरसिंव्ह अवतार का क्रिष्ण भगवान का उदाहरण दिया है बहोत सही लगा / गुरुजी मेरा रास्ता सही है या गलत कृपा करके बताईये