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आदि पुराण | Aadi Puran | Amargranth Sahib by Sant Rampal Ji Maharaj
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ॐकार अपार समूलं, नाद बिन्द बिन है अस्थूलं। सत्यपुरुष कूँ सिरजी माया, शब्द स्वरूपी रूप बनाया।।3।।
संख लोचनी संख ज्ञाना, आदि अनादि पुरुष का ध्याना। मन से सिरजी मनसा नारी, उपजी माया आदि कुमारी।।4।।
अबला सुन्दरी नारी नरेशा, भग लिंग नाद नहीं प्रवेशा। परानंदनी मूला माया, दारुण देवी सिरजी राया।।5।।
कमल नयन कमलापति स्वामी, निरालंब निर्गुण निःकामी। कमल नयन कमलापति माई, कोटि कला रवि चंद्र उगाई।।6।।
अकल अलील सुरति से झीना, निरति रूप निरखत प्रवीना। लील का नाभि नाभि का कमलं, जामै उचरत बाणी बिंबलं।।7।।
मूल उच्चार होत तिस माहीं, सर्व कला समर्थ पद साई। पिंगुल बैन नयन मद नेहा, सुनों पिता सत्य पुरुष विदेहा।।8।।
कौन काज कीन्हा मोर अंगा, कहो पिता मोहि निज प्रसंगा। कह्या पुरुष जद बचन संभारी, कीर्ति लोक रचो संसारी।।9।।
बोली पुत्राी अति आधीना, कौन पुरुष हमरे संग दीन्हा। रजगुण सत्त्वगुण तमगुण संगी, क्षण में रच्या शब्द त्रिभंगी।।10।।...
Story of Shiv Ji and Parvati and Sukhdev :-
लिंग शरीर मोक्ष नहीं भाई, आगे जाकर देह उठाई। संखों देह धरी तन जूनी, नौ तत्त के का बीज न भूनी।।119।।
मोक्ष मुक्ति का लख्या न भेवा, भ्रमें पुत्रा व्यास शुकदेवा। सतगुरु मिल्या महादेव बंका, चौरासी की मिटी न शंका।।120।।
अठोतर जन्म गौरी भ्रमाई, शिव कूँ रुण्डमाल गल लाई। अर्ध शरीरी देवी गौरा, जिन का थीर भया नहीं भौरा।।121।।
नारद मुनि उपदेश बखाना, गिरिजा सुनों मोक्ष पद ज्ञाना। सुन हे देवी गौरा माई, अठसठ तीर्थ परबी न्हाई।।122।।
पिंड प्रदान किये कै बारा, खुल्हा नाहीं मुक्ति का द्वारा। रुण्डमाल शिव के गल माहीं, सो देवी तूं जानै नाहीं।।123।।
गरीब, रुण्ड माल शिव के गले, गिरिजा के सिर शीश। भक्ति दुराई देव कूँ, ना परस्या जगदीश।। 124।।...
Ramayan Story :-
परषुराम प्रवान प्रेरं, क्षत्री मार निःक्षत्री केरं। रामचंद्र और लक्ष्मण आये, भरत शत्रु पृथ्वी पर धाये।।273।।
अयोध्या वासी थे रघुराई, जाकी नारी हरी रे भाई। जाके हनुमान अधिकारी, पवन पुत्रा बलवंत बहु भारी।।274।।
जाके अंगद और सुग्रीवा, साज चढे़ दल बादल खीवा। जाके जाम्बवान बलवंता, रीछ अरु बंदर चढे़ अनंता।।275।।
जाके नल और नील संगाती, सेतु बांध लिये बहु साथी। जा दिन अंगद शिला फिराई, रावण दूत सबै थे भाई।।276।।
एकै दूत टर्या नहीं टार्या, रावण गर्व किया सो हार्या। जाके पौंनी हनुमंत बंका, सो तो कूदा लंक बिलंका।।277।।
जिन नौलखा बाग उजाड़या, सो तो डाला सिधु मंझारा । जिन सर्वस्व लंक जराई, तेरी नजर अजूं नहीं आई।।278।।
गरीब, कूदे अधर आधार गति, सेना सहित रघुबीर। रावण ऊपर साखती, सेतु बंध्या रणधीर।।279।।...
Kakabhushundi ki Katha:-
तब तेतीसौं बंध छुटाये, रामचंद्र सीता घर ल्याये। बूझै गरुड़ भुशंड बियाना, मोसे कहो भेद विधि नाना।।304।।
वचन सुशील दृष्टि अनुरागा, देवता की देह द्वार मुख कागा। कलंगी तीन शीश तिस साजै, शब्द कोलाहल हर्ष निवाजै।।305।।
गरीब, मधुकर बैन विलास बौह, सुख सागर आनंद। तहां वहां सुरति लाईले, सुनत कटै सब फंद।।306।।
मधुकर बैन सुनत हो शांति, कहो भुशंड याकी उत्पाति। श्रवण सुमरत वचन उमेदा, नाम रसायन सब तन बेधा।।307।।
वचन सुनत सुख होत आनंदा, भेद कहो निज परमानंदा। कमल कपोल मधुर बैन तोरे, सुनते शब्द कटें पाप मोरे।।308।।
आदि अनादि कथा विस्तारा, मो को भेद कहो तत्त सारा। परमभेद कहो बहु भांति, मिटे हमारे मन की कांती।।309।।
कौन देश को नगर निदाना, कहौ भुशंड आदि प्रवाना। कौन पिता को जननी जामा, कौन कुली कौन वंश बखाना।।310।।...
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