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| Shergarh Fort | दिल दहला देने वाली शेरगढ़ किले की दास्तां,जिसमें दफन है सैकड़ों सुरंग और हजार कत्ल की कहानी!(Part-4)
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रोहतास के इतिहासकार डा. श्याम सुन्दर तिवारी हैं कि बताते हैं कि वर्तमान शेरगढ़ का नाम पहले भुरकुड़ा का किला था। इसका उल्लेख मध्यकालीन इतिहास की पुस्तकों तारीख-ए-शेरशाही और तबकात-ए-अकबरी में मिलता है। खरवार राजाओं ने अपने किले को रोहतासगढ़ की ही तरह अति प्राचीन काल में बनवाया था। लेकिन इस किले पर 1529-30 ई. में शेर खां (शेरशाह) ने कब्जा कर लिया। फ्रांसिस बुकानन के अनुसार यहां भारी नरसंहार हुआ था। इसी कारण यह किला अभिशप्त और परित्यक्त हो गया। लेकिन एक सवाल अब भी यहां उठ रहा है कि क्या स्वतंत्र भारत में भी इसका अभिशाप खत्म नहीं होगा? क्या किसी हुक्काम की नजरें अब भी इनायत नहीं होंगी?
फ्रांसिस बुकानन 13 जनवरी 1913 को यहां आए थे। उन्होंने चर्चा की है कि इस किले के सिंह द्वार के ऊपर आठ बुर्ज थे, उनमें से आज मात्र पांच बुर्ज ही बचे हैं। सिंहद्वार से दक्षिण की ओर रास्ता मुख्य भवन की ओर जाता है। उबड़-खाबड़ रास्ता अब जंगल व कंटीली झाड़ियों से भरा पड़ा है। सिंहद्वार से लगभग एक किमी दूर दक्षिण में दूसरी पहाड़ी है, जिसके रास्ते में ही एक तालाब बना हुआ है। यह रानी पोखरा के नाम से जाना जाता है। दूसरी पहाड़ी भी प्राचीर से घिरी है। इसके अंदर मुख्य महल है। प्राचीर के दरवाजे तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी हैं। दरवाजा अब गिरने की स्थिति में है। प्राचीर के भीतर दरवाजी के दोनों ओर दो खुले दालान हैं। कुछ दूर जाने पर भूमिगत गोलाकार कुआं है। भूमिगत कुएं से पूरब में चार मेहराब बनाते खंभों पर टिका चौकोर तहखाना है। इस तहखाने से पश्चिम-उत्तर में एक विशाल महल के ध्वंसावशेष बिखरे पड़े हैं।
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