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Taatvik Satsang, Ahmedabad Ashram, 16-Jan-2011
सत्संग के कुछ मुख्य अंश:
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बहुत ध्यान से सुनना - ये ख़ास साधकों के लिये आज का सत्संग उपदेश है...
(भगवद् गीता में) श्रीकृष्ण कहते हैं: हे अर्जुन! तू मेरे में समर्पित नहीं हो सकता है, तो मेरी प्राप्ति के लिये तू अभ्यास योग कर;
अभ्यास योग जैसे एकाग्रता करते हैं या कुछ भी करते हैं, तो कुछ बनने के लिये नहीं, मुझे पाने के लिये (अभ्यास) कर;
रावण लंकाधिपती बनने के लिये अभ्यास करता है, हिरण्यकश्यपु हिरणपुर का मालिक बनने के लिये अभ्यास करता है; दोनों बुरी तरह फिसल गए, मार खा गए;
अगर तुम अभ्यास करते हो जप का, ध्यान का, और उद्देश्य भगवान को पाने का रखते हो, तभी भी आप लंकेश और हिरण्यकश्यपु से ऊँची स्थिति के धनी हो सकते हैं;
भगवान बोलते हैं कि अगर ये साधन भी तुम नहीं कर सकते हो तो, केवल मेरे लिये कर्म करके मेरे परायण हो जा;
इस प्रकार मेरे निमित्त कर्मों को करता हुआ भी मेरी प्राप्ति रूप सिद्धि को ही प्राप्त होगा;
चारों का फल एक है - या तो शरणागति योग, या तो अभ्यास योग, अथवा तो भगवद अर्थ कर्म (कर्मयोग)
इन तीनों योग में से जो तुझे अनुकूल पड़ता है, तेरे लिये बढ़िया लगता है, तू उसमें लग जा; कुल मिलाकर उद्देश्य मुझे पाने का रख; शाश्वत को पाने का रख, नश्वर को नहीं;
अपने प्रिय को और क्या कहेंगे (भगवान) ? सार बात ही तो कहेंगे...
अगर इन तीन साधनों में तेरी रूचि-गति नहीं है, तो और चौथा सरल साधन देता हूँ...
सर्व कर्म फलः त्यागः ...
मन बुद्धि आदि पर विजय प्राप्त करने वाला होकर सब कर्मों के फल का त्याग कर दे;
त्यागात् शान्ति निरंतरं ...
कर्म तो कर तत्परता से, लेकिन किसी को नीचा दिखाने के लिये अथवा कोई फल पाने के लिये नहीं...त्यागात् शान्ति निरंतरं ...निष्काम कर्म...
हँसते खेलते, खाते पीते, न समाधि लगानी है, न सब त्याग कर जाना है, न भोगी बनकर बर्बाद होना है, न त्यागी बनकर तितिक्षु होना है;
केवल कर्म के फल की इच्छा त्याग करके तू मुझ चैतन्य को ऐसे पा लेगा जैसे एक सरोवर और दूसरे सरोवर के बीच का जो पाल टूट जाती है, तो दोनों एकमय जल हो जाते हैं;
ऐसे ही जीव ब्रह्म हो जायेगा, और ब्रह्म जीव एकत्व हो जायेगा...
तो ये साधन नहीं तो ये, ये साधन नहीं तो ये, अथवा तो इस साधन से चलकर इसमें, इस से चलकर इसमें (ऐसा अभ्यास करे); पहले निष्काम कर्म कर ले, फिर भगवद अर्थ कर्म कर ले, फिर अभ्यास कर ले, और फिर शरणागति कर ले, भगवान की शरण...
बहुत सुन्दर तरीके से भगवान बताते हैं, और बहुत ऊँचा साधन है; और करने में सुगम भी है;
केवल इन्द्रियों पर थोड़ा संयम करे; केवल इस साधन की, इस उपलब्धि की महानता समझ जाये बस...
फिर तुम्हारा एक अमेरिका का राष्ट्र तो क्या, सारे धरती के राष्ट्र और इंद्र का पद भी बहुत छोटा हो जायेगा - ऐसा तुम्हारा वो आत्म वैभव जागृत होगा...
किसी पर तुम्हारी मीठी नज़र पड़ेगी तो वो निहाल हो जायेगा...
तुम्हारा दर्शन देवता कर के खुशहाल हो जायेंगे;
इस आत्मज्ञान की महिमा को कोई पूरा वर्णन कर ही नहीं सकता;
मत करो वर्णन हर बेअंत है...
भगवान अनंत हैं, तो भगवान को पाए हुए महापुरुष की कृपा और महापुरुष की ऊँचाई भी अनंत है;
ब्रहमज्ञानी की मति कौन बखाने...
जिसने अपने आत्म ब्रहम परमात्मा का ज्ञान पा लिया है, उसकी मति, उसको कोई तोल नहीं सकता;
ब्रहमज्ञानी की मति कौन बखाने...
ब्रहमज्ञानी की गति ब्रहमज्ञानी जाने...
ब्रहमज्ञानी को खोजे महेश्वर,
ब्रहमज्ञानी आप परमेश्वर...
ब्रह्मज्ञानी मुक्त जुगत का दाता,
ब्रह्मज्ञानी पूरण पुरुष विधाता...
ब्रहमज्ञानी का कथया न जाये आधा आखर,
नानक ब्रह्मज्ञानी सब का ठाकुर...
ब्रहमज्ञानी का भोजन ज्ञान,
ब्रहमज्ञानी का ब्रह्म ध्यान,
ब्रह्मज्ञानी मुक्त जुगत का दाता,
ब्रह्मज्ञानी पूरण पुरुष विधाता...
आप ऐसी ऊँचाई को छूएंगे...
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Uttarayan Dhyan Yog Shivir Satsang...
Bhagvad Gita mein Moksh ke 4 upaaye..
Endearingly called 'Bapu ji'(Asaram Bapu Ji), His Holiness is a Self-Realized Saint from India. Pujya Asaram Bapu ji preaches the existence of One Supreme Conscious in every human being; be it Hindu, Muslim, Christian, Sikh or anyone else. For more information, please visit -
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