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We are back again, guys, with another rap song that will break records and will give you goosebumps. The song traces the story of Draupadi and how Shree Krishna helped all his devotees when they surrendered themselves to him. And how this led to great war, and a message will come in the second part from Krishna to all, so stay tuned for that too. and keep supporting like you every time you all guys do.
Lyrics
महाराज ..!
हस्तिनापुर की राजसभा में
ये किस प्रकार का व्यवहार हो रहा है ?
मैं इस सारी सभा से प्रश्न करती हूँ
ये किस प्रकार का धर्म है ?
उत्तर दीजिए ! मौन मत रहिये
वो धर्म ही क्या...
जो शक्ति को निर्बलता बना दे
वो सत्य ही क्या...
जो दुष्टों के कार्यों को भस्म करने के बदले
बोलने वाले के साहस को ही जला दे
है गांडीव तुम्हारा मौन क्यूं,
है गदा भीम की शांत क्यूं ।
दिखती ना ज्वाला आंखों में,
है नेत्र तुम्हारे मौन क्यूं ॥
कुछ तो बोलो महारथियों,
ऐसे कौन सताना चाहेगा ।
भीख मांग रही ये द्रौपदी,
कौन लाज बचाने आएगा ॥
हे कृष्ण बचाओ कृष्णा को,
ये चीर को मेरे चीर रहे ।
तन पर लिपटा है वस्त्र एक,
उसे निर्दयी कौरव खींच रहे ॥
देखो आंखों देखा हाल मेरा,
घटित घटना का विवरण ।
ऐसी क्या विप्पति आई,
क्यूं घटा महाभारत का रण ॥
उस भरी सभा का देख दृश्य ,
रूहे तुम्हारी कांपेगी ।
ये ध्रुपद कन्या द्रौपदी,
वहां अपना गौरव हारेगी ॥
दुर्योधन बोला भरी सभा में
दासी को आदेश करो ।
हां केश पकड़ कर पांचाली के
सामने मेरे पेश करो॥
दुशासन खींचकर लाओ अभी
इंद्रप्रस्थ की पटरानी को ।
जंघा पर ला बैठाओ
अभी निर्वस्त्र करो पांचाली को ॥
उस भरी के चौसर में
ये कैसा अनर्थ कर डाला ।
हे धर्मराज के पुत्र तुमने
क्यूं मुझ पर दाव लगा डाला ॥
जब हार गए थे खुदको ही तो
मुझ पर ना अधिकार बचा ।
जब कौरव चीर को खींच रहे तब
एक ना मुझको बचा सका ॥
किस काम के मेरे पांच पति
जो लाज मेरी ना रख पाए ।
किस काम के हो गांडीवधारी
क्यूं चीख मेरी ना सुन पाए ॥
मछली का नेत्र भेद कर
स्वयंवर से ब्याह के लाए हो ।
गांडीव को धारण करने वाले
तुम क्यों शीश झुकाए हो ॥
अरे उठाओ अपना गांडीव अभी
और कार्य करो कुछ गौरव का ।
जैसे भेद दिया मछली का नेत्र
भेद दो सारे कौरव का ॥
हे भीम उठाओ गदा तुम भी
दिखा दो अपना शौर्य सभी ।
डगमग डगमग हिल जाए अभी
धर्तराष्ट्र का सिंहासन भी ॥
मैं कहती हूं फिरसे सबसे,
बचालो लाज कुरूवंश की ।
हे पितामाह कुछ बोलो,
मैं कुलवधु तुम्हारे वंश की ॥
तुम तो कुछ बोलो गुरु द्रोण,
तुम ऐसे चुप्पी ना साधो।
कब तक करोगे धारण मौन,
धनुष उठाओ प्रतंचया बांधो ॥
शस्त्र सारे छोड़े के,
मर्यादा अपनी लांघ रहे ।
भीषण दुष्कर्म देख के,
मृत्यु अपनी पुकार रहे ॥
कैसी नपुंसकता आई है
क्यूँ मर्द बने नामर्द यहां ।
सब क्यूं व्यर्थ लाचार बने
नारी का दर्द ना दिखा यहां ॥
साम्राज्ञी हस्तिनापुर की थी,
पल में दासी बना डाला।
चौसर में पकड़े पासो को,
युद्ध में पकड़ते थे भाला ॥
क्यूं ऐसा मेरे साथ हुआ,
मां कुंती ने मुझे बांट दिया।
हे भगवन मेरे जीवन में
ये कैसा तूने न्याय किया ॥
ना खेली चौसर क्रीड़ा मैं,
ना ही मैंने कोई पाप किया।
फिर मैं ही क्यों हूं पीड़ा में,
ये कैसा तूने इंसाफ किया ॥
मैं चीख चीख कर थक गई
कोई सुनता मेरी पुकार नहीं।
हे गोविंद तुम ही लाज रखो
मानहानि मुझे स्वीकार नहीं ॥
जब द्वापर में ये घटना घटी तो
सभी वीर बैठे है मौन।
कलयुग में ऐसा होगा तो
माधव वहां आएगा कौन ?
कौन रखेगा मान वहां
किस से होगी आस मेरी।
स्त्री का शौषण प्रतिदिन
तब कौन रखेगा लाज मेरी ॥
हे कृष्ण बची है आस नहीं
तुम ही बचाओ कृष्णा को ।
मान मेरा वापस लाकर(हां)
शांत करो मेरी तृष्णा को ॥
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