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जय माँ काली🙏🙏🚩
राम राम🙏🙏🚩
जय माँ भगवती🙏🙏🚩
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अगर आप दुर्गाद्वात्रिंशन्नाममाला पाठ करने में असमर्थ है तो हमारी वीडियो के माध्यम से इसे सुन सकते है
इससे भी आपको उतना ही लाभ प्राप्त होगा जितना की आपके खुद पाठ करने से होगा
इसे प्रतिदिन 11 ,21, या 108 बार अवश्य सुने या पाठ करे
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भद्रा पंचक आदि और मंत्र तंत्र रत्न रुद्राक्ष की जानकारियां मिलेगी chat.whatsapp....
मां भगवती को अपने यह 32 नाम अति प्रिय हैं। इन्हें सुनकर वे पुलकित हो जाती हैं।
वर्षभर में आने वाली किसी भी नवरात्रि में अथवा प्रतिदिन श्री दुर्गा माता, भगवती की उपासना करने से हर व्यक्ति को मन इच्छित फल प्राप्त होते हैं।
कैसे करें दुर्गा के पावन नामों का जप -
* किसी भी दिन या नवरात्रि में स्नानादि कार्यों से निवृत्त होने के बाद कुश या कंबल के आसन पर पूर्व या उत्तर की तरफ मुंह करके बैठें।
* तत्पश्चात घी का दीपक जलाएं तथा सर्वप्रथम गणेश पूजन करे फिर मां दुर्गा को प्रिय उनके नामों की 5, 11 या 21 दुर्गा द्वात्रिंशन्नाममाला का जाप निरंतर नौ दिन तक करें।
या
दुर्गा द्वात्रिंशन्नाममाला 108 बार जाप नवरात्रि में प्रतिदिन करे इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी
जो मनुष्य मुझ दुर्गा की इस नाममाला का यह पाठ करता हैं, वह निःसंदेह सब प्रकार के भय से मुक्त हो जायेगा.’ यह देवी का वचन है
‘कोई शत्रुओं से पीड़ित हो अथवा दुर्भेद्य बंधन में पड़ा हो, इन बत्तीस नामों के पाठ मात्र से संकट से छुटकारा पा जाता हैं.
इसमें तनिक भी संदेह नहीं हैं. यदि राजा क्रोध में भरकर वध के लिए अथवा और किसी कठोर दंड के लिए आज्ञा दे दे या युद्ध में शत्रुओं द्वारा मनुष्य घिर जाए अथवा वन में व्याघ्र आदि हिंसक जंतुओं के चंगुल में फंस जाए तो इन बत्तीस नामों का एक सौ आठ बार पाठ मात्र करने से वह सम्पूर्ण भयों से मुक्त हो जाता हैं.
विपत्ति के समय इस के समान भयनाशक उपाय दूसरा नहीं हैं. देवगण! इस नाममाला का पाठ करने वाले मनुष्यो की कभी कोई हानि नहीं होती. अभक्त, नास्तिक और शठ मनुष्य को इसका उपदेश नहीं देना चाहिए.
जो भारी विपत्ति में पड़ने पर भी इस नामावली का हजार, दस हजार अथवा लाख बार पाठ करता हैं, स्वयं करता या ब्राह्मणो से कराता हैं, वह सब प्रकार की आपत्तियों से मुक्त हो जाता हैं.
सिद्ध अग्नि में मधुमिश्रित सफ़ेद तिलों से इन नामों द्वारा लाख बार हवन करे तो मनुष्य सब विपत्तियों से छूट जाता हैं.
इस नाममाला का पुरश्चरण तीस हजार का हैं पुरश्चरणपूर्वक पाठ करने से मनुष्य इसके द्वारा सम्पूर्ण कार्य सिद्ध कर सकता हैं.
मेरी सुन्दर मिट्टी की अष्टभुजा मूर्ति बनावे, आठों भुजाओं में क्रमशः गदा, खड्ग, त्रिशूल, बाण, धनुष, कमल, खेट (ढाल) और मुद्गर धारण करावें.
मूर्त्ति के मस्तक पर चन्द्रमा का चिन्ह हो, उसके तीन नेत्र हों, उसे लाल वस्त्र पहनाया गया हों, वह सिंह के कंधे पर सवार हो और शूल से महिषासुर का वध कर रही हो, इस प्रकार की प्रतिमा बनाकर नाना प्रकार की सामग्रियों से भक्तिपूर्वक मेरा पूजन करे. मेरे उक्त नमो से लाल कनेर के फूल चढ़ाते हुए सौ बार पूजा करे और मंत्र जाप करते हुए पुए से हवन करे. भांति-भांति के उत्तम पदार्थ का भोग लगावे. इस प्रकार करने से मनुष्य असाध्य कार्य को भी सिद्ध कर लेता हैं. जो मानव प्रतिदिन मेरा भजन करता हैं, वह कभी विपत्ति में नहीं पड़ता.’
देवताओं से ऐसा कह कर जगदम्बा वहीँ अंतर्धान हो गयीं. दुर्गा जी के इस उपाख्यान को जो सुनते हैं, उन पर कोई विपत्ति नहीं आती.
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