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जब अमीर और ग़रीब के बीच की खाई की बात आती है, तो धरती पर कुछ ही देश नामीबिया के साथ तुलना कर सकते हैं। नामीबिया के 70 फीसदी भू-भाग पर मात्र छह प्रतिशत जनसंख्या का स्वामित्व है. वहीं जर्मन औपनिवेशिक काल के दौरान लगे घाव अब तक गहरे हैं.
नामीबिया का औपनिवेशिक अतीत हिंसक रहा है. स्थानीय नामा और हेरेरो लोगों ने जर्मन औपनिवेशिक शासकों की महत्वाकांक्षाओं का विरोध किया, जिसे क्रूरता से कुचल दिया गया. 1904 से 1908 के बीच नामा और हेरेरो जनजाति का नरसंहार 20वीं सदी का पहला नरसंहार है. जर्मनी की सरकार ने 2021 में जाकर आधिकारिक रूप से इसे स्वीकार किया.
ये भयानक घटनाएं नामीबिया के समाज को आज भी प्रभावित करती हैं. एक तरफ पीड़ितों के कई वंशज अवैध बस्तियों में रहते हैं, जिन पर बेदखली की तलवार हमेशा लटकती रहती है. वहीं जर्मन उपनिवेशवादियों के श्वेत वंशज आज भी ज्यादातर ज़मीन के मालिक हैं और इसे अपना अधिकार मानते हैं.
नामीबिया के अधिकांश विशाल प्राकृतिक संसाधनों का स्वामित्व या नियंत्रण विदेशियों के पास है. लंदन में मुख्यालय वाले अंतरराष्ट्रीय डि बीयर्स संघ का हीरा उद्योग में वर्चस्व है. निर्माण और यूरेनियम उद्योग पर चीन का क़ब्ज़ा है. ऐसा इसलिए, क्योंकि बीजिंग नामीबिया की सत्तारूढ़ स्वापो पार्टी का लगातार समर्थन करता आया है. स्वापो को व्यापक रूप से भ्रष्ट माना जाता है. 2021 में लीक हुए दस्तावेजों से पता चला कि उत्तर कोरिया को देश के स्टेट हाउस के निर्माण के लिए अवैध रूप से ठेका दिया गया.
नामीबिया का अधिकांश हिस्सा कम आबादी वाला है, जिससे प्रकृति फलती-फूलती रहती है. नामीबिया अब भी दुनिया में वन्यजीवों की सबसे बड़ी आबादी में से एक का घर है, जिसमें एकमात्र मुक्त घूमने वाले काले गैंडे भी शामिल हैं. लेकिन, चीनी अपराध सिंडिकेट द्वारा अवैध शिकार में वृद्धि दशकों के संरक्षण कार्य को मिट्टी में मिलाने की चुनौती पेश कर रही है। ग्लोबल वार्मिंग मरुस्थलीकरण बढ़ा देती है, जिससे स्थानीय समुदायों को खतरा है.
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