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#eastnews24x7 ( समाज की खबर, समाज की नजर) सनातन जीवन मूल्यों के क्षरित होने वाले आधुनिक परिवेश में देवरिया जनपद स्थित पवहारी महाराज की गद्दी इन मूल्यों की थाती को बहुत ही संजीदगी के साथ संजोए हुए है। यह वैष्णव संप्रदाय की सबसे बड़ी पीठ मानी जाती है। कोई 300 साल के बेहद उथल पुथल वाले कालखंड की साक्षी इस गद्दी के पीठाधीश्वर अपनी कठिन साधना और दिनचर्या के लिए जनमानस में समादृत हैं। इस आध्यात्मिक पीठ से जुड़े पीठाधीश्वरों का साधना के साथ सामाजिक सरोकार उन्हें खास बनाता है। यहां उसी संत को इस पीठ के पीठाधीश्वर के रूप में अभिषिक्त किया जाता है जो काया क्लेश की साधना और वीतरागी होने के साथ पीड़ित और उपेक्षित लोगों का पालनहार बनने की क्षमता रखता हो। यही वजह है कि इस गद्दी के पीठाधीश्वरों को एक जगह स्थाई रूप से रहना वर्जित है। उनके साथ उनके अनुचरों की पूरी जमात चलती है और इस जमात के भोजन आदि का प्रबंध गद्दी से जुड़े गांवों के लोग करते हैं। इसके लिए साल के बारहों महीने पीठाधीश्वर अपनी जमात के साथ सतत भ्रमणशील रहते हैं। इस मामले में रमता योगी और बहता पानी की कहावत को वह पूरी तरह आचरण में लाकर चरितार्थ करते हैं। वर्तमान में कौशलेंद्र दास जी इस गद्दी के आठवें पीठाधीश्वर हैं और पूर्ववर्ती संत परंपरा का बहुत ही शुद्धता के साथ पालन कर रहे हैं। आइए आपको महान संत परंपरा की संवाहक इस गद्दी से जुड़े कुछ रोचक कहानियों से रबरू करा रहे हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी जनमानस के मुखारबिंद से चलती चली आ रही हैं :